ऐसी एक नहीं, पचासों कहावतें आजकल महाराष्ट्र में चरितार्थ हो रही हैं. भाजपा ने देवेंद्र फडणवीस को दोबारा मुख्यमंत्री (और अजित पवार को उपमुख्यमंत्री) बना कर यह साबित कर दिया कि वह ‘सौ सुनार की’ (शिवसेना की) चोट पर ‘एक लुहार के बड़े प्रहार’ से रातों-रात सत्ता की बाजी पलटने में माहिर है. यहां कहा जा सकता है कि ‘मोदी है तो मुमकिन है!’ वैसे अजित पवार के दोनों हाथों में लड्डू थे. वे महाशिव-आघाड़ी की सरकार में भी उपमुख्यमंत्री बनने ही वाले थे, लेकिन स्थिर और स्थायी सरकार के नाम पर भाजपा की नवगठित देवेंद्र सरकार में उपमुख्यमंत्री बन गए. यहां केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का वह बयान काबिलेगौर है, ‘राजनीति और क्रिकेट में अंतिम समय तक कुछ भी हो सकता है. जब लगता है कि आप हार रहे हों, तब बाजी पलट जाती है!’ गडकरी के इस बयान वाले दिन ही यह तय हो गया था कि महाराष्ट्र की राजनीति अंतिम क्षणों में नई करवट लेगी. और रातों-रात यह सब हो गया.
बचपन में जुम्मन मियां की एक कहानी पढ़ी थी. उसमें रातों-रात एक ‘सांड’ ने पूरी पटकथा ही घुमा दी थी. महाराष्ट्र में भी ‘सत्ता के एक सांड’ ने बाजी पलट दी. अब चिल्लाते रहो, ‘पीठ में खंजर घोंप दिया, दगाबाजी कर ली… अथवा पार्टी तोड़ दी!’ याद करो, शरद पवार ने 80 के दशक में क्या किया था? अपनी ही पार्टी (कांग्रेस) तोड़ कर गैरों के साथ ‘पुलोद सरकार’ बनाकर देश के सबसे युवा (38 साल के) मुख्यमंत्री होने का गौरव हासिल किया था. आज अगर उनके भतीजे अजित पवार ने भी अपने चाचा का वही पुराना दांव साकार किया, तो क्या गुनाह कर लिया? कहावत है, ‘जैसा बोओगे, वैसा पाओगे.’ मराठी में भी कहा गया है, ‘जे गत मले, तेच गत तुले!’ अब महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में यह गीत बज रहा बज रहा है, “बुरे काम का बुरा नतीजा… सुन भाई चाचा, हां भतीजा!”
दरअसल, महीने भर से महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए चर्चा पर चर्चाएं चल रही थीं. कभी चाय पर चर्चा, कभी नाश्ते पर चर्चा, कभी डायनिंग टेबल पर चर्चा! कभी होटल में चर्चा, कभी रिसोर्ट में चर्चा, कभी ‘मातोश्री’ में चर्चा! कभी मुंबई में चर्चा, कभी जयपुर में चर्चा और कभी दिल्ली में चर्चा! इतनी सारी चर्चाओं से महाराष्ट्र की जनता त्रस्त हो गई, तो बेचारे अजित पवार भी तंग आ गए. उन्होंने सारी चर्चाओं को लात मारकर भाजपा के साथ जाना तय कर लिया. अब लगाते रहिए अंदाज कि क्या यह सिनेरियो को-ऑपरेटिव बैंक घोटाले और सिंचाई घोटाले में जांच एजेंसियों के दबाव का असर है? क्या अब जेल-यात्रा से बच जाएंगे ‘घड़ी-घड़ी’ भाजपा को गालियां देने वाले? जवाब में कहा जा सकता है कि जब एक ‘तड़ीपार’ बेदाग होकर देश का गृह मंत्री बन सकता है, तो महज एक-दो घोटाले का आरोपी राज्य का उप मुख्यमंत्री और गृहमंत्री क्यों नहीं बन सकता? सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि क्या यह सारा खेल मराठा क्षत्रप शरद पवार की मर्जी से हुआ है? या उन्हें वाकई अंधेरे में रखा गया था? वैसे सच तो यही है कि ‘ये तो केवल झांकी है… अभी पूरी पिक्चर बाकी है!’
वैसे ‘दि ग्रेट मराठा’ शरदराव पवार पर पूरी की पूरी कांग्रेस पार्टी भरोसा नहीं कर पा रही है. अभिषेक मनुसिंघवी का ट्वीट है, ‘पवार, तुस्सी ग्रेट हो! अब भी अविश्वसनीय!’ जबकि शरद पवार की पुत्री का ट्वीट है, ‘पार्टी और परिवार …दोनों टूट गए!’ आखिर सच क्या है? इसका पता कुछ ही दिनों में चल जाएगा. लेकिन ‘मी पुन्हा येईन’ कहने वाले ने आखिरकार यह साबित कर ही दिया कि ‘मी पुन्हा आलोय!’ उधर, शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस वाले कह रहे हैं, ‘हम सोचते ही रह गए और प्यार (सरकार) हो गया!’ इधर, भारी मान-मनौवल के बाद जैसे-तैसे उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने तैयार हुए ही थे कि रातों-रात फडणवीस कुर्सी खींच ले गए! दरअसल, ये वो राजनीति है, जिसमें मुद्दों, नीतियों और उसूलों की कोई बात नहीं होती. बात होती है सिर्फ सत्ता में भागीदारी और पैकेज की. अजित पवार ने इसी ‘पैकेज’ का लाभ उठा लिया. अब शिवसेना के ‘शायर’ संजय राऊत यह ‘शेर’ ट्वीट कर सकते हैं-