अपने को यह माजरा कुछ समझ में नहीं आया. एक ओर तो राज्य में ‘मेगा भरती’ शुरू होने की खबरें आ रही हैं, वहीं दूसरी तरफ भरती करने वाले ही खुद कह रहे हैं कि हमारे यहां ‘हाउसफुल’ हो चुका है. आज तक हमने ‘हाउसफुल’ का बोर्ड सिर्फ सिनेमाघरों या थियेटरों में ही देखा था, मगर पॉलीटिकल ड्रामे में पहली बार ‘हाउसफुल’ का बोर्ड लटकता दिख रहा है. मैं हैरान-परेशान हूं कि राजनीति में कोई पार्टी ‘हाउसफुल’ कैसे हो सकती है? देश की जनसंख्या ना-ना करते हुए 135 करोड़ तक पहुंच गई, मगर विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाले ‘भगवा दल’ के नेता सिर्फ 12 करोड़ की सदस्य संख्या पार करते ही ‘हाउसफुल’ कैसे बोलने लगे हैं? अभी तो इन्हें पूरी 123 करोड़ की आबादी को अपने ‘दल-दल’ में समेटना है. इसलिए अपने को उनके ‘हाउसफुल’ होने पर ही शक है.
यह भी पड़े : इतिहास के पन्नो से – वे पन्द्रह दिन…. 1 August, 1947
इतिहास के पन्नो से – वे पन्द्रह दिन : 2 August 1947
इतिहास के पन्नो से – वे पन्द्रह दिन 3 August 1947
शिरपुर :मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को 21 लाख राखियां की जाएंगी भेंट
पहले बात करते हैं ‘मेगा भरती’ की. सवाल है कि ये ‘मेगा भरती’ नौकरियों में होनी चाहिए …या राजनीतिक दल में? सरकारी नौकरियों में ‘मेगाभरती’ करने की कूवत तो इनमें है नहीं! सो चले हैं ये ‘दीड़ शहाणे’ अपनी ही पार्टी में ‘मेगा भरती’ करने! लेकिन इस ‘मेगा भरती’ के चक्कर में जब उन्होंने देखा कि दूसरे दलों का ‘कचरा’ भी इनके दल में आने लगा है, तो इन्होंने पार्टी ऑफिस के बाहर ‘हाउसफुल’ का बोर्ड लगा दिया. अब ‘हाउसफुल’ का ये बोर्ड देखकर आम लोग तो गेट के बाहर से ही उल्टे पांव लौट रहे हैं, लेकिन सत्ता की ‘मलाईदार चाशनी’ का स्वाद चखने पर आमादा वीवीआईपी, ब्लैक में टिकट लेकर भी ‘हाउस’ में जाने को लालायित हैं. जैसे तिरुपति बालाजी या शिर्डी के साईं मंदिर में 500-1000 रुपए देकर वीआईपी दर्शन कर लिए जाते हैं, वैसे ही ‘हाउसफुल’ होने के बावजूद अन्य दलों के कई सफेदपोश ‘दान-दक्षिणा’ चढ़ाकर ‘दल-दल’ में घुस रहे हैं.
वैसे हमने कई बार ‘हाउसफुल’ सिनेमाघरों में ‘एक्स्ट्रा चेयर’ लगाकर फिल्म का आनंद लेने वाले दर्शकों को देखा है. उसी तरह प्राइवेट ट्रैवल्स की बसों में भी सीटें फुल (यानि हाउसफुल) होने के बाद प्लास्टिक के छोटे-छोटे स्टूलों पर बैठकर भी सफर करना पड़ता है. कई बार भारतीय रेलों में संबंधित ट्रेन के ‘हाउसफुल’ होने पर भी कई वेटिंग टिकट वाले दो निचली बर्थों के बीच बैठ कर या लेट कर जैसे-तैसे यात्रा करते हैं, वैसा ही कुछ नजारा ‘भगवा दल की प्राइवेट बस’ में देखा जाने वाला है. कई लोग तो गंतव्य पर पहुंचने के लिए ‘हाउसफुल काली-पीली टैक्सी’ के पीछे लटके-लटके खड़े होकर यात्रा करते हैं. सत्ता की मलाई खाने के लिए राज्य के कई सफेदपोश अगर ऐसा करने भी तैयार हो जाएं, तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा.
बहरहाल, राज्य के पश्चिम क्षेत्र में धुआंधार-मूसलाधार बारिश हुई है …और वहां के डैम, नदी, तालाब सब लबालब यानी ‘हाउसफुल’ हो चुके हैं. जबकि विदर्भ और मराठवाड़ा के लगभग सभी डैमों, नदियों और तालाबों का ‘हाउसफुल’ होना बाकी है. इसलिए हमारे भगवा-कर्णधारों का कहना है कि विदर्भ में ‘हाउसफुल’ होने तक ‘मेगा भरती’ जारी रहेगी. वाकई सत्ता-सुंदरी का वरण करने के लिए ये कर्णधार कुछ भी कर सकते हैं. इन के लिए ‘साम-दाम-दंड-भेद’ से सत्ता हासिल करना मामूली बात है. उसके लिए नीति, नियम, अनुशासन, ईमान और सिद्धांत भाड़ में जाए, तो भी चलेगा! हर कीमत पर सत्ता-प्राप्ति ही इनका धर्म है! बाकी सब अधर्म है! बताइए, क्या मैं झूठ बोल रहा हूं?
(संपर्क : 96899 26102)