हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी राज्य के ‘सफेदपोश बगुले’ सैलानियों (पर्यटकों) की तरह पिकनिक मनाने और ‘पार्टियों को पार्टी’ देने विदर्भ रुपी ‘सुसाइड जोन’ में पधारे और घूम-फिर कर उड़ गए. मात्र छह मंत्री होने के कारण इस महा-विकास आघाड़ी सरकार को हम अब ‘सहा-विकास आघाड़ी सरकार’ इसलिए भी कह सकते हैं, क्योंकि यह सिर्फ छह दिनों के लिए ही यहां आयी थी. यह उनकी मजबूरी का ‘मनोरंजन स्थल’ ही है, जहां किसान आत्महत्या से बुरी तरह भयाक्रांत ‘विदर्भ’ में चाहे-अनचाहे उन्हें आना ही पड़ता है. ऑरेंज सिटी की संतरामयी और पिछड़े विदर्भ की अभावग्रस्त /अकालपीड़ित जनता उनका बड़ी उम्मीदों से स्वागत तो करती है, किंतु हमारी आशाओं पर तब तुषारापात हो जाता है, जब ये ‘सफेदपोश बगुले’ केवल 5-6 दिनों में सैर-सपाटा करने के बाद ‘फुर्र’ से उड़ जाते हैं! …और जिस जनता की गाढ़ी कमाई (टैक्स) से ढाई-तीन सौ करोड़ के तमाशे का आयोजन होता है, वही हाथ मलते रह जाती है!
‘हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े-लिखे को फारसी क्या’! उपराजधानी में हुए सफेदपोश बगुलों का छह दिवसीय ‘शीतकालीन महासम्मेलन’ का फलित क्या होगा? यह सर्वविदित है. फिर भी तमाशा हुआ. रोज-रोज के हंगामे से इन सफेदपोशों को आखिर क्या हासिल होता है? अब तक हुए तमाम महा-सम्मेलनों में ‘विपक्षी पंछी’ ही हंगामा कर सदन स्थगित करवाते थे, मगर इस बार तो सत्ताधीशों ने भी कई दफा हंगामा बरपा दिया. खुद मंत्रीगण ही अपने साथियों को हंगामा करने उकसाते देखे गए. पक्ष और विपक्षी सदस्य के बीच हुई शर्मनाक धक्का-मुक्की से भी महाराष्ट्र के सम्मान को ठेस (चोट) पहुंची है. वैसे, जब सरकार को जवाब देना दूभर होता है, तो सत्ताधारी बगुले ही ‘वेल’ में पहुंचकर न्याय मांगने लगते हैं! जब पूर्व मुख्यमंत्री ही न्याय मांगने लगे, तब जनता कहां जाएगी? आम जनता और किसानों के हितैषी होने का दावा करने वाले विपक्षी दलों ने महा-विकास बनाम ‘सहा-विकास आघाड़ी सरकार’ के खिलाफ भड़ास निकालकर घड़ियाली आंसू तो बहा दिए, लेकिन यह सवाल कायम है कि जब ये सत्ताधारी थे, तो उन्होंने जनता और किसानों के लिए क्या किया?
तब आज के सत्ताधारी, विपक्ष की भूमिका में थे और ‘हल्लाबोल मोर्चे’ निकालते थे, क्योंकि इनको सत्ता में आना था. अब जो विपक्ष में है, वे सरकार की नाक में दम कर के जनता और किसानों का दिल (वोट) जीतने के लिए ही यह सारी नौटंकी कर रहे हैं! क्योंकि इनको सत्ता में आना है. अगली बार अपनी सरकार बनानी है. इसीलिए ये लोग बार-बार बोल रहे हैं, ‘मी पुन्हा येणार’…! अर्थात दोनों ही (पक्ष और विपक्ष) ‘एक ही थैली के चट्टे बट्टे’ हैं. विडंबना देखिए कि सदन से लेकर सड़कों तक आपस में लड़ने का दिखावा करने वाले ये ‘सफेदपोश बगुले’ अपनी पेंशन के लिए एकजुट होकर ‘नया पेंशन बिल’ भी गुपचुप तरीके से पारित करा लेते हैं! तब कोई भी पक्ष, हंगामा क्यों नहीं करता? हंगामा सिर्फ जन समस्याओं और किसानों के नाम पर ही क्यों होता है? किसानों की कर्जमाफी सहित अनेक मुद्दों पर ‘हाथ-घड़ी और धनुष-बाण’ वाले सफेद पंछी’ घिरे हुए हैं ….और ‘कमल’ वाले विपक्षी उनसे भिड़े हुए हैं! किंतु सफेदपोश पंछियों के इस विशाल झुंड में जनता के कितने काम हुए? यह कोई नहीं सोच रहा. काश! कि जनहित की बात करने वाले ये बगुले मुद्दों की मछलियों को झपटना छोड़, शीत-सम्मेलन कि कल-कल में अच्छे से काम-काज होने देते! छह दिनों में से तीन दिन बढ़िया काम हुआ. किसानों के लिए घोषणा भी हुई, मगर यह ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ नहीं तो और क्या है? बड़ी उम्मीद थी नई-नवेली ‘दुल्हन’ से, लेकिन वह भी धोखेबाज ही निकली.
मित्रों, ….आप जिसे अपना नेता, विधायक, सांसद या मंत्री अथवा हितैषी समझते हैं, वे दरअसल आपके ‘रक्तशोषक’ हैं! ये मोटी खाल वाले ‘गैंडे’ हैं, जो विदर्भ की बची-खुची हरियाली भी चट करने आए हैं! जनता की कमाई में से वेतन लेने वाले हमारे ये ‘नौकर’ रोज रात को हमारे ‘सुसाइड जोन’ में पिकनिक मनाते भी देखे गए! छहों दिन इन्होंने ‘पार्टियों के साथ पार्टी’ का आनंद उठाया. हमारा दावा है कि ये सफेदपोश, कभी भी विदर्भ रुपी ‘सुसाइड जोन’ को ‘प्रोग्रेसिव जोन’ में तब्दील नहीं कर पाएंगे! न ये कभी विदर्भ को स्वतंत्र राज्य बनाएंगे,… और न कभी इस का संपूर्ण विकास कर पाएंगे! क्योंकि इनकी बुनियाद ही ‘सहा-विकास’ के पत्थर से बनी है. जनता इनकी इज्जत करके बहुत बड़ी गलती करती है. जबकि ये हमेशा जनता को हेय दृष्टि से देखते हैं. इनको भाव देना बंद कीजिए. तब देखना, ये ‘मगराए सांड’ खुद-ब-खुद घुटनों पर आकर आपके सामने गिड़गिड़ाने लगेंगे! जय हिन्द!