कोरोना-काल जारी है, …भीषण महामारी है. देश में 60 हजार रोगी हैं,… और उससे दोगुने भुक्तभोगी हैं. करीब 800 लोगों की गई जान है, …फिर भी मेरा भारत महान है. क्योंकि देश के हर कोने-कोने में ‘सेवालय’ खुले हुए हैं. कई लोग फोटो खिंचवाने, अपनी तस्वीरें चमकाने मानव-सेवा कर रहे हैं, तो कई समाजसेवी पुण्य कमाने के लिए तन-मन-धन-धान्य गरीबों-मजदूरों पर अर्पण-समर्पण कर रहे हैं. देश की आर्थिक हालत खराब है, …इसे सुधारने सरकार की नजर में शराब है! मुझे तो लगता था कि देश में एक ऐसी मजबूत सरकार है, जो सारी आपदाओं-विपत्तियों को पार कर लेगी. लेकिन अब लगता है कि हमें इस सरकार के भरोसे नहीं रहना चाहिए, क्योंकि यह खुद शराब और शराबियों के भरोसे है!
आप माने या ना मानें, इस देश के शराबी तो दिव्यात्मा हैं. जब मुफ्त में पीते हैं, तो सरकार बदल देते हैं और जब खरीद कर पीते हैं, तो अर्थव्यवस्था बदल सकते हैं! देश में ‘तबलीगी जमात’ का उत्पात थमते ही ‘तलब लगी जमात’ का तूफान देखने मिला. यहां एक बोतल शराब के लिए आम आदमी कतार में जिंदगी लेकर खड़ा हो गया, …मौत का डर तो वहम था, इनके लिए नशा ही… जिंदगी से बड़ा हो गया! ये वही लोग हैं, जिनमें से कई तो नोटबंदी के दौरान बैंक के सामने लाइन में खड़े रहने से चक्कर खाकर गिर जाते थे. वह भी दिसंबर माह में, शीतकाल में! मगर इस मई की भीषण झुलसाती गर्मी में यही लोग शराब के लिए दो-दो किलोमीटर दूर-दूर तक लंबी-लंबी लाइनों में धकापेल करते हुए दिखाई दिए. …और मजा यह कि इनमें से किसी को भी चक्कर नहीं आया. जय हो शराबियों की!
मदिरालय खोलने का आदेश मंत्रालय से निकला था. संभवतः इसी मंत्रालय को लगा होगा कि हमारे लोग जब तक शराब पीने बैठेंगे नहीं, तब तक देश की अर्थव्यवस्था अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाएगी! लेकिन मदिरालय खोलने वाले मंत्रालय को क्या यह नहीं मालूम कि गुजरात और बिहार जैसे कुछ राज्यों में पूर्ण शराबबंदी है, फिर भी वे अपने पांवों पर खड़े हैं! बहरहाल, मंत्रालय से निकला मदिरालय खोलने का मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया. न्यायालय ने सुझाव दिया कि शराब की होम डिलीवरी शुरू की जा सकती है. ऐसा हुआ तो आने वाले समय में ऐसा दृश्य भी देखा जा सकता है, जैसा कि रोज सुबह कचरे की गाड़ी हर मोहल्ले, हर कॉलोनी और हर गली में जाती है, वैसे ही शराब की बोतलों से लदी गाड़ियां हर जगह घूम-घूम कर यह गाना बजाएगी- ‘दारू वाला आया, घर से बेवड़े निकल…!’
यह बात मजाक में जरूर कही गई है, लेकिन कड़वा सच यही है कि देश के 16 बड़े राज्यों का शराब से आने वाला आबकारी राजस्व दो लाख करोड़ रुपयों का है. लिहाजा, कहा जा रहा है कि अगर शासन का पहिया चलाना है, तो यह राजस्व जरूरी है. लेकिन यह कहां का न्याय है कि जिस देश में विद्यालय और देवालय बंद हों, वहां मदिरालय खोल दिए जाएं! इस पर शराब-प्रेमी जवाब देते हैं कि मदिरालय खोलने से सरकार को राजस्व में मोटी रकम मिलेगी, देवालय खोलने से सरकार को क्या मिलेगा? लेकिन जिस देश में सात्विकता, सदाचार, भक्ति-भाव, त्याग, ईश्वरीय आस्था और श्रद्धा पर ही ताले लगे रहेंगे, वह देश इस भारी विपदा का सामना कैसे करेगा? काशी विद्वत परिषद सहित हर देशवासी का सवाल है कि जब मदिरालय खुल सकते हैं, तो सभी धर्मों के देवालय क्यों नहीं, जहां आत्मिक शांति मिलती है!
आप यकीन नहीं करेंगे, मगर सच तो यही है कि ‘ऊपर वाले’ की भक्ति में बहुत बड़ी शक्ति है. भगवान, ईश्वर, अल्लाह, गॉड, वाहेगुरु, बुद्ध, यीशु आदि…. अगर प्रसन्न नहीं हुए, तो कोरोना जैसी महामारी फैलती ही रहेगी. एक के बाद एक समस्याएं आती ही रहेंगी. दुर्घटनाएं होती ही रहेंगी. कहीं गैस लीकेज से और कहीं रेल से कटकर दर्जनों मौतें होती ही रहेंगी. अब भी समय है, मंत्रालय ने तमाम देवालयों को खोल कर उनके खजाने से अपनी खाली तिजोरी भरनी चाहिए… और देश की आर्थिक पटरी पर जन-जन की गाड़ी दौड़ानी चाहिए. सच ही कहा गया है- ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान.’