बचपन में हमने पढ़ा था कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. समाज में रहता है. फलता-फूलता है …और यहीं मरता है. कलमुंहे चीन की पैदाइश कोरोना वायरस ने इस अवधारणा को बदल दिया है. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी नहीं रहा. वह घरों में कैद हो गया है. मुंह पर कपड़ा-गमछा (मास्क) बांधता-लपेटता है. मुंह छुपाता है. समाज में पहले जैसा विचरण नहीं करता. किसी के घर नहीं जाता. किसी को घर नहीं आने देता. वह एकाकी हो गया है. यह सब कोरोना की कु-कृपा के कारण हो रहा है. वाकई यह महामारी बड़ी गजब है. किसी के लिए यह पीड़ा है, त्रासदी है, तो किसी के लिए व्यापार! कोई इस बीमारी में भी नाम कमा रहा है, तो कोई दाम! भगवान ना जाने इस कोरोना-काल में और क्या-क्या दिन दिखाएगा!
हमारे देश में सदियों तक छुआछूत प्रथा रही है. वह बीते 5 महीने से फिर देखी जा रही है, लेकिन जो भेदभाव पहले होता रहा, इस महामारी ने उसे मिटा दिया है. अब तो महारथी भी मानने लगे हैं कि ऐसी महामारी, नस्ल, जाति, धर्म, लिंग और देश चुनकर नहीं आती. वह शहर, कस्बे, जिले और प्रांत नहीं देखती. वह अमीर-गरीब में कोई फर्क भी नहीं कर रही है. उसके लिए सब एक समान हैं. चाहे वह ‘बिग बी’ हो या कोई ‘स्मॉल बी’. बड़े-छोटे का भेद भी इसने मिटा दिया है. जय हो.
पहले-पहल आम गरीब जनता को कोरोना संक्रमण शुरू हुआ. फिर बड़े-बड़ों को इसने घेर लिया. विश्व स्तर पर सबसे पहले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन कोरोना संक्रमित हुए. फिर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की पत्नी सोफी ट्रूडो को इसने घेर लिया. फिर ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो को भी हो गया. ऐसे वीवीआईपी लोगों की सूची काफी लंबी है, जिन्हें कोरोना ने घेरा. उनमें ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स, ऑस्ट्रेलिया के गृहमंत्री पीटर डटन, अमेरिकी सीनेटर रैंड पॉल, स्पेन के उपप्रधानमंत्री कारमेन काल्वो, मोरक्को के प्रिंस अल्बर्ट, अमेरिका के मियामी के मेयर फ्रांसिस सुराज, पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर शाहिद अफरीदी से लेकर हॉलीवुड अभिनेता डेनियल डी-किम और टॉम हास्क समेत कई मशहूर हस्तियां शामिल हैं.
भारत की चर्चित हस्तियों में सबसे पहले गायिका कनिका कपूर के कोरोना ने कोहराम मचाया. फिर तो भारतीय सफेदपोशों को कोरोना होने का सिलसिला चल पड़ा. इसमें भाजपा के ज्योतिरादित्य सिंधिया और संबित पात्रा भी शामिल हुए. महाराष्ट्र के दो मंत्री जितेंद्र आव्हाड और अशोक चव्हाण तथा उत्तरप्रदेश के दो मंत्री चेतन चौहान और शर्मा आदि कोरोना से संक्रमित हुए. लद्दाख के कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री पी. नामग्याल की तो बलि ही कोरोना ने ले ली. अब तो महाराष्ट्र और बिहार के राजभवन के भीतर भी कोरोना जा पहुंचा है. यानि क्या आम और क्या खास…. सबको कोरोना बना रहा है ग्रास!
इधर, हमारे एक परिचित रामू काका को भी कोरोना हुआ. किसी मीडिया ने उनका कहीं कोई जिक्र नहीं किया. जबकि सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को कोरोना क्या हुआ, मीडिया ने आसमान सिर पर उठा लिया. लोग पूजा-पाठ, होम-हवन करने लगे. किसी के स्वास्थ्य के लिए दुआ मांगना अच्छी बात है, लेकिन मीडिया कैमरों-चैनलों और अखबारों में तस्वीरें चमकाने के लिए फर्जी पूजा-पाठ करके दिखावा करना गलत बात है. ये वही अमिताभ बच्चन हैं, जिन्होंने ‘साहेब’ के एक आह्वान पर 22 मार्च को ताली-थाली बजाई थी. फिर 5 अप्रैल के रविवार को इन्होंने सपरिवार दीये, मोमबत्ती, टॉर्च भी जलाए थे. इन दोनों इवेंट्स में अमिताभ की धर्मपत्नी जया बच्चन शामिल नहीं हुई थीं. संभवत: इसीलिए वे कोरोना संक्रमण से बच गयीं. काश! हमारे रामू काका ने भी दीये नहीं जलाए होते, ताली-थाली नहीं बजाई होती, तो वे भी आज स्वस्थ होते. मगर दुख है कि उनके और उन जैसे 11 लाख मरीजों के बारे में किसी ने नहीं लिखा.
किसी लीडर को अभी जरा-सा बुखार आया,
छपा अखबारों में संवेदना का ज्वार आया।
गरीबों को कोरोना में तड़पते महीनों बीते,
ना किसी का पत्र, ना किसी का तार आया।
(संपर्क : 96899 26102)


