महाराष्ट्र के पालघर में दो संतों की चिता की राख अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि पंजाब के होशियारपुर में शुक्रवार की रात अपने आश्रम में बैठे स्वामी पुष्पेंद्र महाराज पर हमला हो गया. दो अज्ञात लोगों ने उन्हें हाथ-पांव बांधकर बेदम मारा-पीटा और चाकू से घायल कर दिया. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है. इससे पहले 16 अप्रैल की रात पालघर के गढ़चिंचले गांव में 2 साधुओं और उनके ड्राइवर को भीड़ ने पुलिस की मौजूदगी में पीट-पीटकर मार डाला. मृतकों में 35 वर्षीय सुशील गिरी महाराज, 70 वर्षीय कल्पवृक्ष गिरी महाराज और उनके ड्राइवर 30 वर्षीय निलेश तेलघने शामिल हैं. मॉब लिंचिंग कि यह घटना दुखद है, निंदनीय है. लेकिन इस जघन्य वारदात में भी कुछ लोग और राजनेता अपने-अपने तरीके से अपनी-अपनी रोटियां सेंकने लगे हैं. यह सर्वाधिक धिक्कारणीय है.
पालघर में हुए इस पाप से देश भर के संतों में संताप है. अखिल भारतीय संत समाज ने तो 28 अप्रैल को देशव्यापी प्रदर्शन करने का ऐलान भी कर दिया है. महंत परमहंस तो कई साधु-संतों के साथ आमरण अनशन पर बैठ चुके हैं. भाजपा वाले न सिर्फ कांग्रेस को, बल्कि उद्धव सरकार को भी आड़े हाथों ले रहे हैं, जबकि कांग्रेस वाले इस प्रकरण के लिए भाजपा को जिम्मेदार मान रहे हैं. क्योंकि उस गांव में सरपंच भाजपा का है. कांग्रेस के अनुसार, ये मृतक साधु (गोसावी) भाजपा से ही जुड़े थे. तो क्या तब भी उनकी हत्या को जायज ठहराया जा सकता है? धर्म को परे रखें, तो भी साधु-संतों का कोई मानवाधिकार है या नहीं?
दिल्ली में चर्च का कांच टूटता है, तो डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में हंगामा मच जाता है. दिल्ली के बटाला हाउस में जब दो आतंकवादी मुठभेड़ में मारे जाते हैं, तो 10-जनपथ की महारानी को रोना आता है. ऐसे में सवाल उठता है कि दो संतों की निर्मम हत्या पर वह सेक्युलर गैंग कहां है, जो बात-बात पर तख्ती लेकर खड़ी होती रहती है? ट्विटर पर युद्ध करने लगती है? कहां गए वे लोग, जो अफजल गुरु जैसे आतंकवादी की फांसी पर दहाड़े मार कर रोने लगे थे? जब यहां आतंकवादी मारे जाते हैं, या कहीं और मॉब लिंचिंग होती है, तो कुछ नमकहरामों को यह देश असुरक्षित लगने लगता है. अब क्यों ऐसे महान लोग अपने नकाब में छुप रहे हैं? पालघर में दो निर्दोष संत और घर का इकलौता कमाऊ-पूत ड्राइवर बेवजह मारा गया, तो इन लोगों को देश असुरक्षित क्यों नहीं लग रहा? अब साधु-संतों का पूरा समाज इंसाफ मांग रहा है, तो झूठे-मक्कारों की सेक्युलर गैंग सन्नाटे में क्यों है? कहां गायब हो गई वह? क्या इस देश में मजहब देख कर विरोध होता है?
सवाल उठता है कि क्या संतों की इस भूमि पर गेरुआ-भगवा पहनना कोई अपराध है? सवाल यह भी है कि क्या इसी तरह किसी पादरी, भन्ते या मौलाना को भीड़ मार डालती, तो सेक्यूलर गैंग इसी तरह खामोश रहती? अगर सब कुछ सही था, तो 4 दिनों तक इस घटना को क्यों छुपाया-दबाया गया? कहीं संतों के हत्यारों को राजनीतिक शह तो नहीं मिल रही है? राज्य सरकार कहती है कि हमने 100 लोगों को गिरफ्तार किया है, यह तो उसका फर्ज ही था. उधर, एक संत ने तो यहां तक आरोप लगा दिया कि पालघर में पुलिस वालों ने सुपारी लेकर ही इन संतों की हत्या करवाई! अगर ऐसा नहीं है, तो 10-12 पुलिस वालों ने इन संतों को 300 नरभक्षी भेड़ियों के सामने क्यों धकेल दिया? वहीं, स्वामी जितेंद्र सरस्वती का आरोप है कि इस हत्याकांड में पीटर डिमेलो का हाथ है. यह पीटर यूपीए शासनकाल में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद का सदस्य भी था.
जिस महाराष्ट्र में संत एकनाथ, संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर और संत तुकड़ोजी महाराज हुए, उसी महाराष्ट्र के माथे पर दो संतों की हत्या का पाप लग चुका है. संतों की धरती पर संतों के कत्ल का कलंक अब कौन धोयेगा? जब-जब देश में कहीं भी मॉब लिंचिंग होती है, तब-तब देश कलंकित होता है. अब इन संतों की आत्मा को न्याय तभी मिलेगा, जब सभी हत्यारों को फास्ट ट्रैक कोर्ट में फांसी की सजा सुनाई जाएगी. इसके लिए सीबीआई जांच होनी भी जरूरी है.
वैसे मॉब लिंचिंग के लिए देश में सख्त कानून है. मगर अब उन पर सख्ती से अमल भी करना पड़ेगा. सिर्फ सीआईडी को मामला सौंप देने से या दो इंस्पेक्टर को सस्पेंड करने से यह आग नहीं बुझेगी. जब तक कानून का डर इन हरामखोरों में नहीं समाएगा, ऐसी घटनाएं होती ही रहेंगी. क्योंकि अब बात अकेले पालघर मॉब लिंचिंग की नहीं है, बल्कि अखलाक, तबरेज अंसारी, पहलू खान और जुनेद से लेकर चंदन गुप्ता तक की है. यह बात हिंदू-मुस्लिम की भी नहीं है. यहां न कोई हिंदू मर रहा है, ना मुस्लिम! यहां हिंदुस्तान मर रहा है, कानून का डर मर रहा है… और इंसान के भीतर का ईमान मर रहा है. आओ, हम सब मिलकर बचा लें इसको.