मन अशांत है, विव्हल है, दुखी है और आक्रोशित भी! महाराष्ट्र में इस सप्ताह घटित चार दर्दनाक घटनाओं ने समाज के एक पक्ष की विकृति को ही सार्वजनिक कर दिया है. वर्धा जिले के हिंगणघाट में एक युवा महिला लेक्चरर के ‘अग्निस्नान’ ने समूचे देश को दहला दिया है. उसे एकतरफा प्रेम में एक बच्ची के बाप (सिरफिरे आशिक) विकेश नगराले ने कॉलेज के सामने सड़क पर पेट्रोल डालकर जिंदा जलाने का प्रयास किया. यह युवती 40 प्रतिशत से अधिक जल गई. उसकी जुबान, आंखें और चेहरा झुलस गया. वह बोल नहीं पा रही है. 6 दिन बाद भी उसकी हालत गंभीर है. वह जीवन और मृत्यु से संघर्ष कर रही है. वहीं, औरंगाबाद जिले की सिल्लोड तहसील के अंधारी गांव में संतोष मोहिते नामक एक बीयर बार मालिक ने अपनी प्रेमिका को उसके ही घर में घुसकर केरोसिन डालकर जला दिया. अस्पताल में अगले दिन उसकी मौत हो गई. जबकि मुंबई के सांताक्रूज में एक महिला की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गयी. वहीं, अहमदनगर जिले में बलात्कारी राजू सोनवणे को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला. आखिर कहां जा रहा है यह समाज?
मात्र दो सप्ताह पहले ही मैंने इसी स्तंभ में ‘सुधारो बेटे… बचेंगी बेटियां’ शीर्षक से इस सामाजिक विकृति और विडंबना पर प्रहार करने का प्रयास किया था. लिखा था कि ऐसे रेपिस्टों, दरिंदों और हैवानों को फांसी या सख्त सजा होने का (यानि कानून का) भी कोई खौफ नहीं है. यही कारण है कि नागपुर-वर्धा सहित सभी जिले के लोग मोर्चा निकालकर हिंगणघाट के हैवान का ‘हैदराबाद स्टाइल एनकाउंटर’ करने की मांग कर रहे हैं. संताप सर्वत्र है और यहां न्याय मिलने में बहुत देर हो जाती है. दिल्ली के निर्भया रेप-हत्याकांड का लटकता फैसला और न्यायप्रणाली में व्याप्त ‘छेद’ इसका जीवंत उदाहरण है. इसलिए पुनः कहता हूं कि जब तक हम अपने बेटे व भाइयों को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा और संस्कार नहीं देते, समाज में ऐसी विकृत-दुखद घटनाएं होती ही रहेंगी!
‘तू मेरी नहीं, तो किसी की भी नहीं हो सकती!’ ऐसा कह कर किसी लड़की/युवती को जलाना या उस पर तेजाब डालना, मानसिक विकृति नहीं तो और क्या है? क्या सच्चा प्रेम करने वाले युवक ऐसा करते हैं? कदापि नहीं! सच्चे प्रेम में तो ‘समर्पण और त्याग’ किया जाता है. अपने साथी के उज्ज्वल जीवन के लिए खुद को न्योछावर किया जाता है. लेकिन आजकल सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो रहा है. यही कारण है कि आरोपी को फांसी देने या उनका एनकाउंटर करने की मांग सर्वत्र हो रही है. त्वरित न्याय का अभाव भी ऐसी मांग को बल देता है.
हिंगणघाट की घटना हृदयद्रावक तो है ही, साथ ही कंपकंपा देने वाली भी है. ऐसी क्रूर घटनाओं को रोकने मूकदर्शक बने समाज के लोगों ने तत्काल सामने आना चाहिए. यूं भी आज भारत की लड़कियां-युवतियां अपनी जान हथेली पर रखकर घर से बाहर आ-जा रही हैं. सरकार, प्रशासन और पुलिस… सिर्फ खानापूर्ति के लिए हैं. ये लोग घड़ियाली आंसू बहा कर दो-पांच पैसे की मदद कर देते हैं. लेकिन जिस परिवार में ऐसा हादसा होता है, उसकी कल्पना कौन करेगा? आज भी निर्भया की मां, टीवी कैमरे पर रोती-बिलखती नजर आती है. तब कोई आंसू पोंछने नहीं आता. अब इस विकृत-नृशंसता की सिर्फ निंदा करने से काम नहीं चलने वाला है. जहां भी ऐसे हैवान दिखे या मिले आपको, या उनकी मंशा का पता चले, तुरंत पुलिस पर दबाव डालकर उन्हें गिरफ्तार करवाना चाहिए.
दरअसल, हमारे देश का कानून इतना लचर और लाचार हो गया है कि ऐसे पापियों-दरिंदों और नराधमों-पिशाचों के मन में फांसी या उम्रकैद की सजा का कोई खौफ ही नहीं है. पुलिस-प्रशासन की लापरवाही और अकर्मण्यता भी लेटलतीफ मिलते न्याय के साथ दोषी है. इसी कारण हवस के भेड़िए खुलेआम घूम रहे हैं. इन्हीं कारणों से क्रूरता की सारी हदें पार करने वाले ऐसे भयावह-दर्दनाक दुष्कृत्य सर्वत्र हो रहे हैं. सवाल है कि क्या लड़कियां,युवतियां, महिलाएं अकेली घर से बाहर ही नहीं निकलें? महिला सुरक्षा के लिए बने कानून भी अब चुल्लू भर पानी में डूब चुके हैं. अतः सबसे हाथ जोड़कर निवेदन है कि… अपनी ही नहीं, बल्कि पास-पड़ोस की और सभी परिचित-अपरिचित महिलाओं को बचाइए. अपनी सभ्यता और संस्कृति की रक्षा कीजिए.