‘तबला’ एक वाद्ययंत्र है. इसे बड़े-बड़े समारोहों में बजाया जाता है, लेकिन लॉकडाउन में सार्वजनिक रूप से तबला बजाने पर पाबंदी है. फिर भी देशभर में कई तबलची नियम-कानून की धज्जियां उड़ाकर जहां देखो वहां तबले बजा रहे हैं. इन तबले वालों में कई ‘जमानती’ भी हैं, जो भारत के लिए अब बला बन गए हैं. इससे कोरोना से युद्ध लड़ने वालों को मुश्किलें हो रही हैं. महाराष्ट्र का नागपुर हो या मध्यप्रदेश का इंदौर, राजस्थान का टोंक हो या उत्तरप्रदेश का मुरादाबाद और बरेली, जम्मू-कश्मीर का बारामुला हो या बिहार का औरंगाबाद और दरभंगा,… हर जगह ये तबले वाले पुलिस और स्वास्थ्य कर्मियों को ठोक-बजा रहे हैं. इन हमलावर-हरामखोरों की सर्वत्र निंदा हो रही है. आखिर ये तबले वाले कौन हैं, जो देश का भला नहीं चाहते? अब पुलिस इनको पकड़-पकड़ कर बजा रही है. तो कई की भृकुटियां भी तन गई हैं.
‘दबंग’ कहलाने वाले मशहूर बॉलीवुड एक्टर सलमान खान ने तबले वालों को ‘जोकर’ कहा है. सलमान की कला से पूरा भारत वाकिफ है. उनके जज्बे को समूचा देश सलाम करता है. जोकरों के इस समूह को उन्होंने खूब खरी-खोटी सुनाई है. सलमान की तरह ही कई बुद्धिजीवी लोग, बुरे को बुरा और गलत को गलत कह रहे हैं, लेकिन आज भी कई ‘रद्दीजीवी’ लोग ऐसे तबले वालों का साथ दे रहे हैं. क्या ‘मरघट’ से लौटे ये तबले वाले किसी साजिश के तहत पूरे भारत को ही मरघट में बदल देना चाहते हैं? क्या यह देश के स्वास्थ्य और भविष्य के लिए अच्छा है?
आखिर जान बचाने वालों के खिलाफ इस तरह की हिंसक प्रवृत्तियां क्यों पैदा हो रही हैं? क्योंकि अगर कोरोना प्रारंभ होने से अब तक स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिसकर्मियों पर हमले की घटनाओं की सूची बनाई जाए, तो वह इतनी लंबी हो जाएगी कि एक महाग्रंथ ही लिखा जा सकेगा. कई लोग ऐसी घटनाओं पर विश्वास नहीं करते और इन्हें ‘फेक न्यूज़’ करार देते हैं. लेकिन यकीन मानिए कि दुनिया भर में भारत ही ऐसा देश है, जहां इस तरह की घटनाएं हो रही हैं. कड़वा सच यह भी है कि अधिकांश हमले, तबले वाले जमानतियों या उनके समर्थकों द्वारा ही किए जा रहे हैं. कई बुद्धिजीवी, पूछने पर ऐसी घटना की निंदा तो करते हैं, मगर बेकसूरों को पुलिस द्वारा प्रताड़ित किए जाने का कुतर्क भी देते हैं. जबकि कई ‘रद्दीजीवी’ तो ऐसी सत्य घटना बताने-दिखाने वालों को मोदी-संघ या भाजपा समर्थक बताने से भी नहीं चूकते!
यह सच है कि मीडिया के कुछ लोग पक्षपाती हो सकते हैं. इन्हें ‘गोदी मीडिया’ कहा जाता है. इस मुश्किल घड़ी में कई समाजसेवी संस्थाएं और सरकार… खाना, पैसा और हमदर्दी बांट रही हैं, मगर ‘गोदी मीडिया’ सिर्फ नफरत बांट रहा है. वह एक वर्ग की गलतियों को बार-बार बढ़ा-चढ़ा कर दिखा रहा है, मगर दूसरे वर्ग की खामियों को एक-दो बार दिखा कर ही शांत बैठ जाता है. जैसे कि गोरखपुर में एक व्यापारी ने अपनी शादी की सालगिरह जोर-शोर से मनाई, जिसमें 70 लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाईं. बेंगलुरु में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के पोते और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के बेटे निखिल की शादी में सौ से ज्यादा मेहमान आए, जिन्होंने न तो मास्क पहना, ना सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया. उसी तरह मुंबई के बांद्रा में जुटे हजारों मजदूरों की भीड़ के मामले को भी कुछ चैनल वाले ‘सांप्रदायिक रंग’ देने से बाज नहीं आये. सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाने वाले गरीब- मजदूर, देश भर की बैंक शाखाओं पर जन-धन खातों से पैसा निकालने टूट पड़ते हैं, तब यही मीडिया केंद्र/ राज्य सरकार की विफलता पर सवाल क्यों नहीं उठाता? जब हजारों-लाखों मजदूर किसी शहर से पैदल अपने घर-गांव की ओर चलते हैं, तब उनके पांव में पड़े छालों को ये मीडिया क्यों नहीं दिखाता?
इन सबके बीच उन घटनाओं का भी धिक्कार होना चाहिए, जो समाज में नफरत बांटती हैं और कोरोना का संक्रमण फैलाती हैं. जैसे कि यूपी, दिल्ली और महाराष्ट्र के कुछ शहरों में थूक लगाए गए नोट सड़कों पर फेंके गए. गाजियाबाद में एक बुर्काधारी महिला ने कोल्ड ड्रिंक खरीदने के बाद अपना थूक लगाकर नोट दुकानदार को दिया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया. वह कोरोना-पॉजिटिव निकली. सलमान खान ने ऐसे ही ‘जोकरों’ से सवाल पूछा है कि जो खुद अपनी ही मौत को न्योता दे, उनका इलाज कौन करेगा? सौ बात की एक बात यही है कि मानवता के लिए कलंक बने कोरोना- प्रसारकों को कड़ा दंड दिया जाना चाहिए और कोरोना-योद्धाओं को सैल्यूट करना चाहिए. तभी भारत बचेगा! जय हिंद.