दूर का कोई परिचित आपके घर मेहमान बनकर आए और अपने ही गांव-शहर की बुराई करने लगे, तो आपके मन में उस व्यक्ति के प्रति क्या भावनाएं पनपेगी? यही कि इसके हित वहां नहीं सध रहे हैं, इसीलिए यह अपनी ही ‘माटी’ को कोस रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी जर्मनी और लंदन जाकर इसी तरह की कमअक्ली का परिचय दिया है. लगता है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सब अपने-अपने तरीके से उपयोग कर रहे हैं. जिसके जी में जो आए, वह बोले जा रहा है. कोई भारत के टुकड़े करने के नारे देता है, कोई ‘भारत माता की जय’ या ‘वंदे मातरम’ नहीं कहने पर अड़ा है, तो कोई राष्ट्रगान के समय खड़ा नहीं होना चाहता. कोई तानाशाही चला रहा है, तो कोई हुकुमशाही! इससे लोकशाही की धज्जियां उड़ रही हैं.
इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए राहुल गांधी द्वारा विदेशी धरती से भारत देश की बुराई करना क्या उचित है? उनके द्वारा भारतीय भूमि पर केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ आग उगलना तो समझ में आता है, लेकिन विदेशों में जाकर मोदी सरकार के विरोध में अनाप-शनाप बोलने से क्या उनको वोट मिलने वाले हैं? यही गलती शुरुआत में नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं. मोदी ने भी अमेरिका जापान, रूस आदि देशों के मंचों पर कांग्रेस की जमकर बुराई की थी. लगता है राहुल गांधी भी उन्हीं के पदचिन्हों पर चल रहे हैं, लेकिन लोग इन बड़े नेताओं की ऐसी हरकतों पर हंसते हैं. उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते. राहुल ने जर्मनी के एक समर स्कूल में कहा कि भारत की बीजेपी सरकार ने विकास की प्रक्रिया से आदिवासियों, दलितों और अल्पसंख्यकों को बाहर रखा है. इससे भविष्य में बड़ा खतरा पैदा हो सकता है. ऐसे ही कारणों से ‘आईएसआईएस’ जैसे आतंकवादी संगठन का गठन हुआ था.
यहां राहुल की बुद्धि पर प्रश्न उठते हैं, क्योंकि ‘आईएसआईएस’ का जन्म विकास से वंचित होने के कारण नहीं, बल्कि धार्मिक उन्माद की वजह से हुआ है. पेट या विकास की भूख के कारण न तो ‘आईएसआईएस’ के और न ही कश्मीर के आतंकवादी किसी को मारते हैं, ना आतंक फैलाते हैं. क्योंकि ‘आईएसआईएस’ के नाम में ही ‘इस्लामिक स्टेट’ की भावना निहित है. हालांकि संघ का एजेंडा ‘हिन्दू राष्ट्र’ है, लेकिन उसकी तुलना ‘आईएसआईएस’ से कतई नहीं हो सकती, क्योंकि वह कत्लेआम नहीं करता. इसलिए राहुल की मानसिक सोच पर सवाल उठना स्वाभाविक है. दरअसल, वोट बैंक की भूख ने ही राहुल एंड कंपनी की सोच को निम्नस्तरीय बना दिया है. तभी तो उन्होंने जर्मनी से लंदन जाकर बीजेपी और आरएसएस (संघ) पर जमकर निशाना साधा. उनके अनुसार आरएसएस भारत की संस्थाओं पर कब्जा करना चाहता है. उनका यह आरोप भी किसी के गले नहीं उतरा कि आरएसएस की सोच ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ जैसी है. बता दें कि ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ 1928 में गठित मिस्र का सबसे पुराना संगठन है, जो देश का शासन इस्लामी कानून (शरिया) के अनुसार चलाने का हिमायती है.
बहरहाल बीजेपी, राहुल गांधी के आरोपों से तिलमिला गई है. वह राहुल से पूछ रही है कि क्या उन्होंने भारत के खिलाफ कोई ‘सुपारी’ ली है? क्या राहुल गांधी भारत में ‘कॉन्ट्रैक्ट किलर’ हैं? क्या भारत पर किसी आतंकी संगठन का राज है? भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा का एक गंभीर आरोप यह भी है कि राहुल गांधी और उनके परिवार को ऐसा कहने-करने के लिए चीन सरकार से पैसे मिलते हैं! अगर यह सच है, तो भाजपा सरकार इसकी उच्चस्तरीय जांच क्यों नहीं करवा लेती? दरअसल, भाजपा की चिंता यही है कि जर्मनी में दो दर्जन से अधिक अन्य देशों के लोग भी राहुल को सुनने के लिए कैसे पहुंच गए? चाहे राहुल हों या मोदी, ….कांग्रेस हो या बीजेपी! सब के सब 2019 के चुनाव में अपने-अपने वोट बैंक की जुगाड़ में लगे हुए हैं, किंतु इससे देश का भाईचारा नष्ट हो रहा है. देश को ऐसे राहुलों या मोदियों की नहीं, बल्कि सद्भावना बढ़ाने वाले नेताओं की जरूरत है.