कहावत है कि ‘कुत्ते की पूंछ कई महीनों तक सीधी पुंगली में भी डाल कर रखी जाए, तो भी वह कभी सीधी नहीं होती.’ बद्जात पड़ोसी पाकिस्तान ऐसा ही मुल्क है, जो अपने यहां आतंकवादी कुत्ते पालता है …और उन्हें भौंकने-काटने या विध्वंस करने कश्मीर भेज देता है. पुलवामा में ‘प्रेम दिवस’ के दिन इसने हमारे 42 जवानों के खून से जिस प्रकार नफरत के शोले भड़काए, उससे भारत के बच्चे-बच्चे का खून खौल उठा है. देश भर में गम है, गुस्सा है, मातम पसरा है. हर भारतवासी का मन व्यथित है, व्याकुल है. जनता शोकाकुल है. अश्रुपूरित नेत्रों से हम सब सीआरपीएफ के 42 जवानों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
लेकिन सवाल है कि कब तक ऐसी निर्दोष मौतों का तांडव चलता रहेगा? कब तक ये आतंकवादी कुत्ते हमारे शेर जैसे जवानों की लाशें बिछाते रहेंगे? आखिर कब तक भारत माता की छाती विव्हल होकर लहूलुहान होती रहेगी? कहीं तो, कभी तो रुकना चाहिए हमारे जांबाज सैनिकों की रक्तरंजित शहादत का सिलसिला. मैं जानना चाहता हूं कि क्या हमारी वर्तमान सरकार निकम्मी है या वह पाकिस्तान का टेंटुआ दबाने में नाकाम हो रही है? इसका उत्तर सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी ही दे सकते हैं. उन्होंने 2014 के चुनाव प्रचार में सत्ता-प्राप्ति से पहले कई जनसभाओं में कहा था, ‘मित्रों, समस्या कश्मीर में नहीं है. दिल्ली दरबार में है.’ तो क्या अब मोदी बताएंगे कि असली समस्या कहां है? लेकिन उन्हें तो 2019 के चुनाव में ‘बीस’ होने का जुगाड़ करने से ही फुर्सत नहीं है. अगर वे देश की सीमा, सुरक्षा और कश्मीर समस्या पर शिद्दत से ध्यान देते, तो ये पुलवामा कांड नहीं होता. 42 परिवारों में से कई माताओं की कोख नहीं उजड़ती. कई वीरांगनाओं के माथे से सिंदूर नहीं मिटता. कई बच्चों के सिर पर से पिता का साया नहीं हटता.
इस फिदायीन हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन ‘जैश-ए-मोहम्मद’ ने ली है. इसके मुखिया मसूद अजहर को एनडीए की अटल सरकार के कार्यकाल में कंधार ले जाकर छोड़ा गया था. अब वही मसूद अजहर भारत पर आतंकी हमले करवा रहा है. मोदी सरकार अगर 56 इंची सीना ठोंकने की बात कहती है, तो क्यों नहीं वह पाकिस्तान की नकेल कसती? सिर्फ ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा छीन लेने, सर्वदलीय बैठक करने और उच्चायुक्त (राजदूत) को वापस बुलाने से क्या फायदा होगा? पाकिस्तान का कुछ नहीं बिगड़ने वाला है. देश के गुस्साए लोग पाकिस्तान को मिटाने की बात करते हैं, लेकिन यह इतना आसान नहीं है. युद्ध तो दोनों देशों के बीच हो ही नहीं सकता. वरना दोनों परमाणु संपन्न शक्तियां भस्म हो जाएंगी. इसलिए बेहतर यही है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव इतना बनाया जाए कि खुद कमीना पाकिस्तान दया की भीख मांगने मजबूर हो जाए.
लोग पूछते हैं कि हमारे पास पृथ्वी, अग्नि और ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें, सुखोई और राफेल जैसे लड़ाकू विमान तथा अर्जुन-अरिहंत जैसे टैंक क्यों हैं? क्या वे सिर्फ 26 जनवरी की परेड में भारत का जलवा दिखाने के लिए ही हैं? इसका जवाब यह है कि आत्मसुरक्षा के लिए इन्हें मुस्तैद रखना पड़ता है. लेकिन संयम की भी कोई सीमा होती है. पाकिस्तान की नापाक हरकतों ने अब संयम की सारी सीमाएं तोड़ दी हैं. इसलिए देश आतुर है अपने 42 जवानों के बलिदान का बदला लेने के लिए. जितनी जल्दी मोदी सरकार यह बदला लेगी, देश की तड़पती छाती को ठंडक मिलेगी. वरना देश यह सरकार बदलने के लिए भी आगे-पीछे नहीं सोचेगा.
अंत में फिर उन्हीं कुत्तों की बात, जिनका कोई मजहब नहीं होता. वे अपनी दाढ़ी की आड़ में आतंकवाद फैला कर इस्लाम को ही बदनाम कर रहे हैं. देश के हर सच्चे मुसलमान ने इनका ‘मुर्दाबाद’ किया है, लेकिन कश्मीर के कुछ गद्दार इनकी मदद भी करते हैं. पहले उनको ही दबोचना होगा. क्योंकि यहां ‘घर को आग लग रही है घर के चिराग से.’ अब यहां के और वहां के ….दोनों देशों के कुत्तों को ही उड़ाने का वक्त आ गया है. इनको ऐसा सबक सिखाना चाहिए कि उनकी सौ पुश्तें भी आतंक फैलाकर ‘जन्नत’ जाने की हिमाकत ना कर सके!
*कमर कसो हे भारत-पुत्रों,
*अब तो जान लड़ाना होगा.
*अगर कश्मीर बचाना हो,
*…तो पाकिस्तान मिटाना होगा!
सुदर्शन चक्रधर (संपर्क : 96899 26102)