न तो यह शीर्षक उचित है, ना इस तरह के कोई विचार. हम उस देश के वासी हैं, जो भाईचारा, सदभाव, सर्वधर्म समभाव और अमन की बुनियाद पर शान से खड़ा है. फिर भी वोटों के भूखे भेड़िए हम भारतीयों को सांप्रदायिकता की आग में झोंकना चाहते हैं, हमें आपस में लड़ाना चाहते हैं. ऐसे भड़काऊ सफेदपोश आज हर दल-संगठन में मौजूद हैं, जिनके बयानों ने समय-समय पर आग में घी डालने का काम किया है. ऐसे तमाम लोगों का तिरस्कार होना चाहिए, बहिष्कार होना चाहिए, धिक्कार होना चाहिए. चाहे वह छात्र नेता शरजील इमाम हो, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर हो, सांसद प्रवेश वर्मा हो, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह हो, पूर्व मंत्री आजम खान हो, सलमान खुर्शीद हो, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हो, एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी हो, उनका विधायक भाई अकबरुद्दीन ओवैसी हो, ….अथवा उनकी पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता वारिस पठान हो!
कर्नाटक के गुलबर्गा में बीती 15 फरवरी को सीएए विरोधी रैली में वारिस पठान ने बिना किसी का नाम लिए कहा था, ‘देश में हमारी संख्या भले ही 15 करोड़ हो, लेकिन जरूरत पड़ने पर हम 100 करोड़ लोगों पर भारी पड़ेंगे! अभी तो हमारी शेरनियाँ बाहर निकली हैं, तो तुम्हारे पसीने छूट गए हैं. जब पूरा समुदाय एकजुट होकर बाहर निकलेगा, तब क्या होगा? यह याद रख लेना!’ वारिस ने जब यह लावारिस बयान दिया, तो उसी मंच पर बैठे उसके नेता ओवैसी परेशान हो गए. उन्होंने बाद में पठान के बयान पर नाराजगी जताकर उसे फटकार भी लगाई. यही नहीं, वारिस पर मीडिया से बोलने पर प्रतिबंध भी लगा दिया. इस भड़काऊ बयान को लेकर मुंबई, पुणे सहित कई शहरों में पठान के खिलाफ शिकायत भी दर्ज कराई गई है. देश के अनेक बड़े नेताओं ने वारिस को गिरफ्तार करने की मांग भी की है.
बात यहीं खत्म नहीं होती. तीन दिन बाद ही बेंगलुरु में सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) के विरोध में एक और रैली असदुद्दीन ओवैसी की प्रमुख उपस्थिति में हुई, जिसमें चिकमगलूर निवासी 19 वर्षीया अमूल्या लियोन नामक एक हिंदू लड़की ने ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए. बेंगलुरु के एनएमकेआरवी कॉलेज से पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही इस छात्रा के हाथ से तब खुद ओवैसी और अन्य लोगों ने माइक छीना और पुलिस ने तत्काल उसे पकड़ लिया. अमूल्या के पिता ने बेटी के बयान और नारे की निंदा करते हुए उसे कड़ी सजा देने की मांग की. बाद में अमूल्या को बेंगलुरु की कोर्ट में पेश किया गया, जहां अदालत ने उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. इस घटना की भी ओवैसी ने निंदा करते हुए कहा कि ऐसे लोग पागल हैं, इनको देश से कोई मोहब्बत नहीं है. इस तरह की हरकत को कभी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. ये वही असदुद्दीन ओवैसी हैं, जो खुद कई बार भड़काऊ बयान दे चुके हैं. इनके विधायक भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने भी कुछ वर्ष पहले भरी जनसभा में कहा था, ‘सिर्फ 15 मिनट के लिए पुलिस हटा दो, सौ करोड़ हिंदुओं को बता देंगे कि हम क्या हैं?’ अकबरुद्दीन को इस बयान के लिए जेल में भी डाला गया था. दरअसल, इस तरह के बयान न केवल निंदनीय और शर्मनाक हैं, बल्कि सांप्रदायिक सदभाव के चीथड़े भी उड़ाते हैं. ऐसे लोग समाज और देश को तोड़ने का काम करते हैं. ऐसे बयानों से देश कभी जुड़ता नहीं, कभी एकता और भाईचारे का माहौल बनता नहीं. लेकिन सभ्य समाज ऐसे बयानों को कभी स्वीकारता भी नहीं. ऐसे बयान देने वाले सफेदपोश, देश में दंगे करवाकर उसकी आग में अपने-अपने वोटों की रोटियां सेंकना चाहते हैं.
भायखला (मुंबई) के पूर्व विधायक वारिस पठान और जर्नलिज्म की छात्रा अमूल्या लियोन ने भले ही आवेश में अनर्गल व देशविरोधी बयान या नारा दिया हो, लेकिन यह भी समझना जरूरी है कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा? मेरी नजर में यह किसी क्रिया की प्रतिक्रिया-स्वरूप हुआ है. लेकिन प्रतिक्रिया का मतलब देश तोड़ने या दंगे भड़काने वाले बयान देना हरगिज़ नहीं है. देश के अमनपसंद 15 करोड़ मुसलमानों ने एक स्वर में वारिस और अमूल्या के बयान को ठोकर मार कर यह जता दिया है कि वे भारत के सच्चे नागरिक हैं ….और दुनिया की कोई ताकत उन्हें इस देश से जुदा नहीं कर सकती. मोदी-शाह-ओवैसी या उनके लोग देश को कितना भी भ्रमित कर लें, भारत की 130 करोड़ जनता अब बहकने वाली नहीं है. ऐसी भड़काऊ भाषा बोलने वाले सभी को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, ताकि औरों की ‘गंदी जुबान’ पर भी लगाम लग सके. जहां नफरत के मसले मोहब्बत से सुलझाए जाते हैं, उसी को हिंदुस्तान कहते हैं. जय हिंद…