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चक्रव्यूह-‘धर्म संकट’ में ”संकट मोचक…!

Tez Samachar by Tez Samachar
December 22, 2018
in Featured, विविधा
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चक्रव्यूह-‘धर्म संकट’ में ”संकट मोचक…!

भारतीय राजनीति का वर्तमान परिवेश जिस प्रकार धर्म और जाति आधारित हो गया है, उससे लगता है कि आने वाले दिनों में यह एक परंपरा बन जाएगी, जो देश के भविष्य के लिए न केवल चिंताजनक, बल्कि घातक भी होगी. आजकल हमारे देश की सियासत में रामायण के पात्रों/चरित्रों की खूब चर्चा हो रही है. कोई राम मंदिर बनाने की बात करता है, तो कोई रावण को पूजनीय बताता है, लेकिन सबसे चिंताजनक यह कि अब हनुमान जी की जाति पर भी चर्चा होने लगी है. इससे भारतीय राजनीति के चाल, चरित्र और चेहरे पर सवालिया निशान लगने लगे हैं.

_आमतौर पर हिंदू धर्म में हनुमान जी को ‘संकट मोचक’ कहा और समझा जाता है. मगर हमारे देश के कुछ नेताओं द्वारा उनकी जाति बताने से स्वयं हनुमान जी ‘धर्म संकट’ में होंगे कि भारत में उनकी जाति को लेकर इतना बवाल क्यों मचा हुआ है? जबकि उन्होंने तो कभी जाति-भेद नहीं किया था. वे कभी जाति-बंधन में बंधे ही नहीं थे. सबसे पहले उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें ‘वनवासी, गिरिवासी, वंचित और दलित’ बताकर एक नई बहस को जन्म दे दिया था. उसके बाद तो हनुमान जी की जाति बताने वालों की बाढ़-सी आ गई. बाद में भाजपा नेता नंदकुमार साय ने हनुमान जी को ‘आदिवासी और अनुसूचित जाति’ का बता दिया. केंद्रीय राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह ने तो उन्हें ‘आर्य’ बता कर सबको चौंका ही दिया.

मामला यहीं नहीं रुका. जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया, वैसे-वैसे हनुमान जी की जाति की नई नई व्याख्या उनकी बढ़ती पूंछ की तरह होने लगी. ताजे प्रकरण में उत्तरप्रदेश के भाजपा विधायक बुक्कल नवाब ने यह कहकर उन्हें ‘मुसलमान’ बता दिया कि उनके समाज में रहमान, सुलेमान, रमजान, फरमान आदि नाम हनुमान जी के नाम पर ही रखे जाते हैं. इस पर हिंदू धर्म के ठेकेदारों को बहुत आपत्ति हुई. भाजपा के असंतुष्ट सांसद कीर्ति आजाद ने तो उन्हें ‘चीनी’ तक बता दिया. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने दावा किया कि हनुमान जी ‘ब्राम्हण’ थे. योगगुरु स्वामी रामदेव ने हनुमान जी को सिद्ध और ज्ञानी बताते हुए उनके ‘क्षत्रिय’ होने का दावा किया. योगी सरकार के मंत्री लक्ष्मीनारायण चौधरी का तर्क है कि किसी को मुश्किल में देखकर जाट व्यक्ति उससे जान;पहचान के बिना भी उसे बचाने के लिए कूद पड़ता है. ऐसा हनुमान जी भी कर चुके हैं, इसलिए वे ‘जाट’ ही थे. वहीं, गोपाल नारायण सिंह नामक एक नेता ने उन्हें ‘बंदर’ बताया था. जबकि तीन वर्ष पहले समाजवादी पार्टी की एक जनसभा में मुलायमसिंह यादव की उपस्थिति में उन्हीं की पार्टी के तत्कालीन विधायक राजेंद्र यादव ने हनुमान जी को ‘आतंकवादी’ तक कह दिया था!

हद हो गई यह तो. हनुमान जी भी यह सोच रहे होंगे कि भारत में विकास, नोटबंदी, जीएसटी, कृषि समस्या, रुपए का अवमूल्यन, महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे को बगलगीर करके यहां के नेतागण उनकी जाति की खोज करने पर क्यों आमादा हैं? हमें तो यह लगता है कि राम मंदिर मुद्दे को जीवित रखने के लिए ही ‘भगवा ब्रिगेड’ जानबूझकर हनुमान जी की जाति पर चर्चा करवा रही है. इस बहस से कई लोग मजा भी ले रहे हैं और ‘बिकाऊ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया’ भी इस की आग में घी डाल रहा है. होना तो यह था कि इस पर कोई बहस या चर्चा ही नहीं होनी चाहिए थी, मगर अफसोस कि इसे एक बड़ा मुद्दा बना दिया गया.

‘भगवा ब्रिगेड’ से इतर कोई अन्य अगर हनुमान जी की जाति पर बोलता, तो अब तक देशभर में बवाल मच जाता. दंगे-फसाद की स्थिति बन जाती. मगर विडंबना यह कि भगवा पार्टी (राम दल) से जुड़े मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक या धर्मगुरु ही हनुमान जी की जाति बताने में लगे हुए हैं. जब अपने ही आराध्य की वर्ण-व्यवस्था पर वे स्वयं एकमत नहीं हैं, तो भला देश को वे कैसे एकजुट रख पाएंगे? इन लोगों ने अब तक देश के सुप्रीम कोर्ट, सीबीआई, रिजर्व बैंक और इन्सानों को तो बांट ही दिया है, अब भगवान को भी जाति में बांट रहे हैं. हमें तो डर है कि हनुमान जी नाराज होकर कहीं इनकी ‘लंका’ ही न जला बैठे! हो सकता है, तभी रामराज्य आए…!

(सुदर्शन चक्रधर -संपर्क : 96899 26102)

Tags: #चक्रव्यूह #सुदर्शन चक्रधर #नागपुर समाचार
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