नई दिल्ली (तेज समाचार डेस्क). चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम आज यानी शुक्रवार की मध्यरात्रि रात 1.30 से 2.30 बजे के बीच चांद के दक्षिण ध्रुव पर उतरेगा. विक्रम में से रोवर प्रज्ञान सुबह 5.30 से 6.30 के बीच बाहर आएगा. मिशन के आखिरी घंटों में इसरो चीफ के सिवन ने कहा कि अभी तक सबकुछ योजना के मुताबिक चल रहा है. इसरो के वैज्ञानिकों ने कहा कि यह ऐसा मिशन है, जैसे किसी बच्चे को पालने में रखना हो.
– 60 बच्चों के साथ प्रधानमंत्री भी देखेंगे ऐतिहासिक पल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए इसरो मुख्यालय में मौजूद रहेंगे. उनके साथ पिछले महीने साइंस क्विज जीतने वाले 60 बच्चे भी रहेंगे. प्रधानमंत्री ने लोगों से अपील की है कि इस पल की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर करें. रात 1.10 बजे इसरो की वेबसाइट पर इस मिशन का वेबकास्ट किया जाएगा. इसके अलावा फेसबुक, ट्विटर और यू ट्यूब पर इसकी लाइव स्ट्रीमिंग की जाएगी.
प्रज्ञान चंद्रमा की सतह पर एक लूनर डे (चांद का एक दिन) में ही कई प्रयोग करेगा. चांद का एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है. चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगा रहा ऑर्बिटर एक साल तक मिशन पर काम करता रहेगा. अगर लैंडर विक्रम चंद्रमा की ऐसी सतह पर उतरता है, जहां 12 डिग्री से ज्यादा का ढलान है तो उसके पलटने का खतरा रहेगा.
– चुनौती भरी लैंडिंग
इसरो के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर के मुताबिक- विक्रम ऑन बोर्ड कैमरों से सही स्थान का पता लगेगा. जब जगह मैच हो जाएगी, तो उसमें लगे 5 रॉकेट इंजनों की स्पीड 6 हजार किमी प्रति घंटा से शून्य हो जाएगी. लैंडर नियत जगह पर कुछ देर हवा में तैरेगा और धीमे से उतर जाएगा. लैंडर सही जगह उतरे, इसके लिए एल्टिट्यूड सेंसर भी मदद करेंगे. नायर ने यह भी बताया कि सॉफ्ट लैंडिंग कराने के लिए लैंडर में लेजर रेंजिंग सिस्टम, ऑन बोर्ड कम्प्यूटर्स और कई सॉफ्टवेयर लगाए गए हैं. उन्होंने कहा कि यह एक बेहद जटिल ऑपरेशन है. मुझे नहीं लगता कि किसी भी देश ने रियल टाइम तस्वीरें लेकर ऑन बोर्ड कम्प्यूटरों के जरिए किसी यान की चांद पर लैंडिंग कराई है.
– लैंडर से बाहर आने में रोवर को लगेगा 4 घंटे का समय
लैंडर के अंदर ही रोवर (प्रज्ञान) रहेगा. यह प्रति 1 सेंटीमीटर/सेकंड की रफ्तार से लैंडर से बाहर निकलेगा. इसे निकलने में 4 घंटे लगेंगे. बाहर आने के बाद यह चांद की सतह पर 500 मीटर तक चलेगा. यह चंद्रमा पर 1 दिन (पृथ्वी के 14 दिन) काम करेगा. इसके साथ 2 पेलोड जा रहे हैं. इनका उद्देश्य लैंडिंग साइट के पास तत्वों की मौजूदगी और चांद की चट्टानों-मिट्टी की मौलिक संरचना का पता लगाना होगा. पेलोड के जरिए रोवर ये डेटा जुटाकर लैंडर को भेजेगा, जिसके बाद लैंडर यह डेटा इसरो तक पहुंचाएगा.
– ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर का काम
चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा. इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी और लैंडर के बीच कम्युनिकेशन करना है. इसके साथ ही ऑर्बिटर चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा, ताकि चांद के अस्तित्व और विकास का पता लगाया जा सके. लैंडर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते हैं या नहीं. जबकि, रोवर चांद की सतह पर खनिज तत्वों की मौजूदगी का पता लगाएगा.
– धूल से बचना होगा
वैज्ञानिकों के मुताबिक चंद्रमा की धूल भी चिंता का विषय है, यह लैंडर को कवर कर उसकी कार्यप्रणाली को बाधित कर सकती है. इसके लिए लैंडिंग के दौरान चार प्रक्षेपक स्वत: बंद हो जाएंगे, केवल एक चालू रहेगा. इससे धूल के उड़ने और उसके लैंडर को कवर करने का खतरा कम हो जाएगा.