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उपासना एवं पर्यावरण संरक्षण का महापर्व है छठ

Tez Samachar by Tez Samachar
November 1, 2019
in Featured, विविधा
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उपासना एवं पर्यावरण संरक्षण का महापर्व है छठ
दीपावली के ठीक छह दिन बाद मनाए जाने वाले छठ महापर्व का धार्मिक दृष्टिकोण से तो विशिष्ट महत्व है ही साथ ही इसे साफ-सफाई एवं पर्यावरण के लिहाज से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पर्व को पूरी आस्था के साथ देश के साथ-साथ विदेशों में भी कई जगहों पर पारंपरिक श्रद्धा एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व समाज को एक बड़ा गहरा संदेश देता है। भगवान सूर्य जो हमें देते हैं उससे हमे सबकुछ प्राप्त होता है प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तौर पर। मूलतः बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के घर-घर में मनाया जाने वाला यह पर्व इस अंचल की लोक परंपरा एवं आपसी मिल्लत को दर्शाता है। इसमें समाज के सभी वर्ग की अपनी-अपनी भूमिका होता है। कोई कलसूप-दौरा बना रहा है, तो कओई मिट्टी के चुल्हा और दीप बनाता है, तो कहीं महावर और कच्चे धागे को बनाता है, तो किसानों का फल और दूध भी उपलब्ध कराए जाते हैं।
छठ पर्व के प्रति लोगों की इतनी श्रद्धा है कि अपने घरों के अलावा कहीं कोई गंदगी दिख जाए तो लोग बिना कोई संकोच के साफ-सफाई करने से परहेज नहीं करते।छठ पर नदी-तालाब, पोखरा आदि जलाशयों की सफाई करते हैं। जलाशयों की सफाई की यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। दीपावली के अगले दिन से ही लोग इस कार्य में जुट जाते हैं, क्योंकि बरसात के बाद जलाशयों और उसके आसपास कीड़े-मकोड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है। जिसकी वजह से कई संक्रामक बीमारी फैलने की आशंका बनी रहती हैं। दरअसल, छठ पर्यावरण संरक्षण, रोग-निवारण व अनुशासन का पर्व है और इसका उल्लेख आदिग्रंथ ऋग्वेद में मिलता है।
स्वच्छता को एक अभियान के रुप में भी इस पर्व को एक उदाहरण के तौर पर माना जा सकता है। जिस तरह छठमहापर्व के दौरान लोग साफ-सफाई रखते हैं, अगर वो आगे भी बरकरार रहे तो हमारे देश की कार्यशीलता और स्वास्थ्य पर बहुत बड़ा फर्क पड़ जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत की जो परिकल्पना की है, वह जनभागीदारी के बिना संभव नहीं है। स्वच्छता अभियान और गंगा की सफाई को लेकर तेज मुहिम चलाया जा रहा है। गंगा सफाई योजना का जो मकसद है, उसे बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड में लोग सदियों से समझते हैं और छठ से पहले जलाशयों की सफाई करते हैं। इन दोनों कार्यक्रमों का लोक-आस्था का महापर्व छठ से सैद्धांतिक व व्यावहारिक ताल्लुकात हैं।नीति व नियमों से किसी अभियान में लोगों को जोड़ना उतना आसान नहीं होता है, जितना कि आस्था व श्रद्धा से। खासतौर से जिस देश में धर्म लोगों की जीवन-पद्धति हो, वहां धार्मिक विश्वास का विशेष महत्व होता है।
सूर्य की उपासना का पर्व है छठ पूजा। इसमें कठिन निर्जला व्रत एवं नियमों का पालन किया जाता है। प्रकृति पूजा के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक और लोकाचार में यह अनुशासन का भी पर्व है। कार्तिक शुल्क पक्ष की षष्ठी व सप्तमी को दो दिन मनाए जाने वाले इस त्योहार के लिए व्रती महिला चतुर्थी तिथि से ही शुद्धि के विशेष नियमों का पालन करती है। पंचमी को खरना व षष्ठी को सांध्य अर्घ्य और सप्तमी को प्रात: अर्घ्य देकर पूजोपासना का समापन होता है। पुराणों के अनुसार भगवान सूर्यदेव और छठी माई आपस में भाई बहन हैं और षष्ठी की प्रथम पूजा भगवान सूर्य ने ही की थी।  इस पूजा में कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य का ध्यान करने की प्रथा है। जल-चिकित्सा में यह ‘कटिस्नान’ कहलाता है। इससे शरीर के कई रोगों का निवारण भी होता है। नदी-तालाब व अन्य जलाशयों के जल में देर तक खड़े रहने से कुष्टरोग समेत कई चर्मरोगों का भी उपचार हो जाता है।धरती पर वनस्पति व जीव-जंतुओं को सूर्य से ही ऊर्जा मिलती है। सूर्य की किरणों से ही विटामिन-डी मिलती है।
प्रकृति पूजा हिंदू धर्म की संस्कृति है। इसमें यह परंपरा रही है कि प्रकृति ने ही हमको सब कुछ दिया है, अतः उसके प्रति हमअपना आभार व्यक्त करते हैं। इसीलिए हमारे यहां नदी, तालाब, कुआं, वृक्ष आदि की पूजा की परंपरा है। ऋग्वेद में भी सूर्य, नदी और पृथ्वी को देवी-देवताओं की श्रेणी में रखा गया है। हिंदू धर्म अपने आप में एक दर्शन है, जो हमें जीवन-शैली व जीना सिखलाता है। छठ आस्था का महापर्व होने के साथ-साथ जीवन-पद्धति की सीख देने वाला त्योहार है, जिसमें साफ-सफाई, शुद्धि व पवित्रता का विशेष महत्वहोता है। साथ ही, ऊर्जा संरक्षण, जल संरक्षण, रोग-निवारण व अनुशासन का भीयह पर्व है।छठ को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ते हुए अगर केंद्र व राज्य सरकारों की ओर से और आम जन की मदद से अगर पहल हो तो देश के विकास में भी इस पर्व का योगदान सृजनात्मक हो सकता है।
– मुरली मनोहर श्रीवास्तव
मो.9430623520
 
Tags: Chhath festivalenvironmentMuralimanohar shrivastavworship
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