संविधान व मानवाधिकारों की दुहाई देकर कथित अम्बेडकरी संगठन व कार्यकर्ताओं तथा कम्युनिस्टों द्वारा नागरिकता संशोधन कानून, २०१९ का विरोध – संविधान व संविधान निर्माता बाबासाहब अंबेडकरजी की भावनाओ से खिलवाड़ है l विरोधक बंधुओ को यह वास्तविकता सादर समर्पित l
“ब्रिटेन की संसद ने ४ जुलाई, १९४७ को भारत वर्ष के विभाजन पर मोहर लगाते ही भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा खींचने की जिम्मेवारी सिरिल रेडक्लिफ को सौंपी गयी और बंगाल का कौनसा हिस्सा पूर्व पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में रहे, यह निश्चित करने के लिए ‘बंगाल बॉउंड्री कमिशन’ स्थापित हुआ l
बांग्लादेश में चकमा बौद्धों की संख्या तक़रीबन ४ लाख से अधिक है l ‘चित्तगांव पर्वतीय क्षेत्र’, यह बौद्ध बहुल क्षेत्र हैl ३ लाख के करीब चकमा बौद्ध, इसी चित्तगांव पर्वतीय क्षेत्र के निवासी है l १५ अगस्त, १९४७ को, भारत अंग्रेजो की गुलामी से मुक्त हुआ तब बंगाल का चित्तगांव पर्वतीय क्षेत्र, भारत के हिस्से में था l इसलिए, इस पर्वतीय क्षेत्र के नागरिकों ने बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ १५ अगस्त, १९४७ को भारत की आजादी का जश्न मनाया l लेकिन सिरिल रेडक्लिफ द्वारा गठित, बंगाल बॉउंड्री कमिशन ने १७ अगस्त, १९४७ को अपनी रिपोर्ट जारी कर, इस चित्तगांव पर्वतीय क्षेत्र को पूर्व पाकिस्तान याने वर्तमान बांग्लादेश को सौंप दिया l
पाकिस्तान कहे या वर्तमान मे बांग्लादेश, यह दोनों घोषित मुस्लिम राष्ट्र है l बांग्लादेश के मुस्लिम बंधुओ द्वारा होनेवाले अमानुष अत्याचारों से तंग आकर, आखिरकार सन १९७०-७१ से इन चकमा बौद्ध भाइयों ने अपने ऊपर होनेवाले अत्याचारों का सामना करने की ठानी l सन १९८७ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश की पुलिस और सेना द्वारा मनमाने तरीकों से बौद्ध कार्यकर्ताओं को बंदी बनाकर उनपर अत्याचारों का सिलसिला शुरू हुआ l इन अत्याचारों से हजारो बौद्ध कार्यकर्ताओं की मौते हुयी l सेकड़ो महिला व बौद्ध युवतियों का बलपूर्वक शारीरिक शोषण किया गया l बौद्ध भिक्षुओ की हत्याए की गयी तथा बौद्ध विहारों को लूटने के पश्चात उन्हें ध्वस्त किया गया l परिणाम स्वरुप हजारो चकमा बौद्धों ने भारत में शरण ली और शरणार्थी जीवन जीने के लिए विवश हुए, जिनकी संख्या लाखो में है l
बांग्लादेश के साथ-साथ, मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान में रहने वाले बौद्धों के हालात भी कुछ ठीक नहीं l ऐसे में बॅटवारे के कारण पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में त्रासदी झेल रहे अखंडित भारत के निवासियों को, (बौद्ध, हिन्दू, सिख, जैन तथा पारसी और ईसाई) भारतीय नागरिकता का द्वार खोलने वाले नागरिकता (संशोधित) कानून, २०१९ का भारत में रहनेवाले बौद्ध बंधुओं ने स्वागत करना, उनकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है” l
‘नागरिकता (संशोधित) कानून’ २०१९ ने, लाखो बौद्धों को, उनके मूलभूत अधिकार व नागरिकता प्रदान कर सम्मानित व प्रताड़ना रहित जिंदगी जीने का रास्ता खोला है l इसलिए, देश के तमाम बौद्धों ने इस कानून का स्वागत करने की वाजिब अपेक्षा मैंने अपने उपरोक्त आलेख से व्यक्त की थी l
यह कानून पूर्णता संविधान सम्मत है – हमारे भारत वर्ष के अरुणाचल, त्रिपुरा, मिजोरम इत्यादि पूर्वोत्तर प्रदेशो में शरणार्थी जीवन जी रहे, चकमा बौद्ध बंधुओ के संगठन ने उच्चतम न्यायालय में पिटीशन दाखिल कर भारतीय नागरिकता की मांग की थी तब उच्चतम न्यायालय द्वारा सन २०१५ में, उन्हें नागरिकता प्रदान करने की दृष्टी से केंद्र सरकार को उचित निर्देश दिए गए l लेकिन नागरिकता कानून, १९५५ के चलते नागरिकता देने की प्रक्रिया को पूरा करना संभव नहीं था l इसलिए केंद्र की वर्तमान सरकार ने सन १९५५ के नागरिकता कानून में उचित संशोधन के लिए पहल की l लेकिन वर्तमान सरकार की इस पहल को, हमारे कांग्रेसी और कम्युनिस्ट मित्रों द्वारा असैंवधानिक व भेदभाव पूर्ण बताया जा रहा है, जो तथ्य से परे है l
हमारे संविधान की धारा १४ नुसार, ‘राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा’ तथा धारा १५ (1) नुसार, ‘राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाती, लिंग, जन्मस्थान या इसमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा’ और संविधान की धारा १६ (1) नुसार, ‘राज्य के अधिन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से सम्बंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी’ व संविधान की धारा १६ (2) नुसार, ‘राज्य के अधिन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाती, लिंग, उदभव, जन्मस्थान, निवास या इसमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जायेगा‘ l
बावजूद इसके संविधान की धारा १६ (4) हमे ‘अपवाद तथा विभेद‘ की अनुमति देती है l इस धारा के नुसार, ‘इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को, पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधिन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी‘ l
इसी अपवाद व विभेद के कारण, अनुसूचित जाती व जनजाति को अनेक क्षेत्रों में आरक्षण का अधिकार देने के कानून बने है और हमे आरक्षण का अधिकार मिला है l
संविधान की धारा २५ (1) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंत:करण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक़ होगा l संविधान की धारा २५ (2) इस अनुच्छेद की कोई बात, किसी ऐसी विद्धमान विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या राज्य को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो –
(क) धार्मिक आचरण से सम्बन्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनैतिक या अन्य लौकिक क्रियाकलाप का विनियमन या निर्बंधन करती है;
(ख) सामाजिक कल्याण और सुधार के लिए या सार्वजनिक प्रकार की हिन्दुओ की धार्मिक संस्थाओ को हिन्दुओ के सभी वर्गों और अनुभागों के लिए खोलने का उपबंध करती है l
स्पष्टीकरण १ – कृपाण धारण करना और लेकर चलना सिख धर्म के मानने का अंग समझा जायेगा l
इस तरह ,संविधान की धारा २५ (1), यह सभी धर्मो को एक ओर समान हक़ की बात करती है फिर भी स्पष्टीकरण १ नुसार, कृपाण धारण करने का अधिकार केवल एक ही धर्म को देती है, सभी धर्मो को नहीं देती l इसलिए इस विभेद को भी हमे समझना पड़ेगा l
संविधान की धारा २५ (2) (ख) स्पष्टीकरण २ –
‘खंड (2) के उपखंड (ख) में हिन्दुओ के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जायेगा की, उसके अंतर्गत सिख, जैन या बौद्ध धर्म को मानने वाले व्यक्तियों के प्रति निर्देश है और हिन्दुओ की धार्मिक संस्थाओ के प्रति निर्देश का अर्थ तदनुसार लगाया जायेगा‘ l
इसी के आधार पर संविधान (अनुसूचित जाती) आदेश क्र. १९, सन १९५० के सेक्शन ३ नुसार अनुसूचित जाती का दर्जा पाने के लिए, अनुसूचित जाती के व्यक्ति का हिन्दू होना आवश्यक माना गया l पश्चात् इस आदेश में सिख धर्म को जोड़ा गया और १९९० में इस आदेश में संशोधन कर हिन्दू व सिख के साथ- साथ, बौद्धों का भी समावेश किया गया तब जाकर, १९५६ के बाद से अनुसूचित जाती से दीक्षित बौद्धों को सन १९९० से केंद्र में अनुसूचित जाती के होने का हक़ पुनश्च बहाल हुआ और तबसे वे अनुसूचित जाती के आरक्षण व अन्य लाभों से लाभान्वित होने लगे l संविधान की धारा २५ (2) (ख) स्पष्टीकरण २ में मुस्लिम तथा ईसाई भाइयो का उल्लेख नहीं होने से, अनुसूचित जाती के जिन व्यक्तियो ने ईसाई और इस्लाम धर्म कबूल किया, उन्हें अनुसूचित जाती का मानने की हमारा कानून इजाजत नहीं देता l यह भी एक विभेद ही है, जिसके चलते अनुसूचित जाती के हक़ सुरक्षित है l
अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा पाने के लिए, किसी धर्म के होने या नहीं होने का बंधन नहीं है l वह हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन, ईसाई या इस्लाम धर्मावलम्बी भी हो सकता है l इसके चलते पूर्वोत्तर राज्यों में आदिवासियों का बहुत बड़े पैमाने पर ईसाईकरण हुआ है l
प्रसंग, जरुरत और स्थिति को ध्यान में रखते हुए कानून बनाते समय, कुछ अपवादों एवं विभेदो का प्रावधान होने पर, उसे असंवैधानिक या भेदभावयुक्त कृति मानना उचित नहीं होगा l इसलिए १२ दिसंबर २०१९ को संसद में पारित ‘नागरिकता (संशोधित) कानून‘ २०१९, की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाना उचित नहीं l
हमारे देश के संविधान का मसौदा बनाते समय, उसकी उद्देशिका कहे या फिर प्रिएम्बल में बोधिसत्व डॉ बाबासाहब अम्बेडकरजीने ने ‘सेक्युलर’ शब्द का अंतर्भाव नहीं किया था l तब संविधान सभा में अनेक सदस्यों ने, संविधान के प्रिएम्बल में, सेक्युलर शब्द का अंतर्भाव करने की पुरजोर मांग की थी l लेकिन ‘हमारा देश किसी एक विशेष धर्म का घोषित राष्ट्र नहीं होने से हमारे प्रिएम्बल में ‘सेक्युलर’ शब्द की कोई आवश्यकता नहीं’, यह आशय व्यक्त करते हुए, संविधान के प्रिएम्बल में सेक्युलर शब्द का अंतर्भाव करने को बाबासाहब ने अपना विरोध जताया और आखिर संविधान सभा ने बाबासाहब की बात मान ली और इसलिए, बाबसाहब के विरोध के चलते मूल संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द का अंतर्भाव नहीं हो पाया l
लेकिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी जी की, सन १९७१ में रायबरेली लोकसभा से हुयी जीत को १२ जून १९७५ को इलाहबाद हाई कोर्ट ने अवैध करार देकर इंदिराजी को ६ साल के लिए चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाई और २४ जून १९७५ को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहबाद हाई कोर्ट के इस फैसले को बरक़रार रखा तब, देश में इंदिराजी के त्याग पत्र की मांग के लिए आंदोलन खड़ा हुआ l इंदिराजी ने इस आंदोलन को दबाने के लिए और अपनी कुर्सी बचाने के लिए देश में आपातकाल घोषित किया l इस आपातकाल के चलते देश में सारे चुनावो पर पाबंदी लगी और नागरिको के अधिकारों को समाप्त करने की मनमानी की गयी l
इस आपातकाल के दौरान इंदिराजी ने संसद में ४२ वा संविधान संशोधन विधेयक पारित किया l इस विधेयक के द्वारा हमारे संविधान में तक़रीबन ४१ संशोधन किये गए तथा संविधान में १४ नई धाराएं जोड़ी गयी l इतना ही नहीं तो, संविधान की उद्देशिका में जिस सेक्युलर शब्द के समावेशन पर संविधान सभा में कांग्रेस अड़ गयी थी l लेकिन डॉ बाबासाहब अंबेडकरजी के पुरजोर विरोध व प्रयासों से इस सेक्युलर शब्द का संविधान की उद्देशिका में समावेश नहीं हो सका था, उसी सेक्युलर शब्द का कांग्रेस ने ४२ वे संविधान संशोधन द्वारा संविधान की उद्देशिका में समावेशन किया, इस बात को, बाबासाहब के नाम का जयजयकार कर देश भर में दिल्ली से लेकर गल्ली तक ‘संविधान बचाओ’ का आंदोलन चलानेवाले, हमारे आज के कांग्रेसी मित्रों ने याद कर लेना चाहिए l
बोधिसत्व डॉ बाबासाहब आंबेडकर कभी भी हिन्दू द्धेषी नहीं रहे, क्योंकि वे तथागत भगवान गौतम बुद्ध के विचारो पर चलते थे और इसलिए किसी के प्रति द्धेष पालने का सवाल ही खड़ा नहीं हुआ l डॉ बाबासाहब अम्बेडकर, नेहरूजी के मंत्रिमंडल में गैर कांग्रेसी मंत्री के रूप में कार्यरत रहे l कांग्रेस तथा उसके सर्वेसर्वा तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूजी से कुछ वैचारिक व तात्विक मदभेदों के चलते गुरुवार तारीख २७ सितम्बर १९५१ को, बाबासाहब ने नेहरू मंत्रीमंडल से त्याग पत्र दिया तथा १० अक्तूबर, १९५१ को विस्तृत रूप से अपने त्याग पत्र के कारण स्पष्ट किये l जो इस प्रकार है — Our quarrel with Pakistan is a part of our foreign policy about which I feel deeply dissatisfied. There are two grounds which have disturbed our relations with Pakistan—one is Kashmir and the other is the condition of our people in East Bengal. I felt that we should be more deeply concerned with East Bengal where the condition of our people seems from all the newspapers intolerable than with Kashmir. Notwithstanding this we have been staking our all on the Kashmir issue. Even then I feel that we have been fighting on an unreal issue. The issue on which we are fighting most of the time is, who is in the right and who is in the wrong. The real issue to my mind is not who is in the right but what is right. Taking that to be the main question, my view has always been that the right solution is to partition Kashmir. Give the Hindu and Buddhist part to India and the Muslim part to Pakistan as we did in the case of India. We are really not concerned with the Muslim part of Kashmir. It is a matter between the Muslims of Kashmir and Pakistan. They may decide the issue as they like. Or if you like, divide it into three parts; the Cease-fire zone, the Valley and the Jammu-Ladhak Region and have a plebiscite only in the Valley. What I am afraid of is that in the proposed plebiscite, which is to be an overall plebiscite, the Hindus and Buddhists of Kashmir are likely to be dragged into Pakistan against their wishes and we may have to face the same problems as we are facing today in East Bengal. (DR. BABASAHEB AMBEDKAR : WRITINGS AND SPEECHES vol-14-II पेज १३२२ महाराष्ट्र शासन द्वारा प्रकाशित )
इस त्याग पत्र में उल्लेखित (‘condition of our people in East Bengal. I felt that we should be more deeply concerned with East Bengal where the condition of our people seems from all the newspapers intolerable than with Kashmir’ , व ‘Give the Hindu and Buddhist part to India and the Muslim part to Pakistan as we did in the case of India. We are really not concerned with the Muslim part of Kashmir. It is a matter between the Muslims of Kashmir and Pakistan’ , और ‘What I am afraid of is that in the proposed plebiscite, which is to be an overall plebiscite, the Hindus and Buddhists of Kashmir are likely to be dragged into Pakistan against their wishes and we may have to face the same problems as we are facing today in East Bengal’) उनके मन के भाव को समझे तो, यह स्पष्ट होता है की, विभाजन के दौरान सन १९४७ में पूर्व पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में जबरन धकेले गए बौद्ध और हिन्दू भाइयो के साथ-साथ आजादी के बाद से सन १९५१ तक कश्मीर के हिन्दू और बौद्धों को जबरन पाकिस्तान में धकेलने के सन्दर्भ में नेहरू व कांग्रेस के गलत प्रयासों की, डॉ बाबासाहब अंबेडकरजी को ‘बराबर‘ चिंता थी l
डॉ बाबासाहब अंबेडकरजी को देश के बौद्ध व हिन्दू भाइयो की ‘बराबर‘ चिंता होते हुए भी, ‘बाबासाहब, हिन्दू विरोधी थे, यह भ्रम फैलाकर हिन्दू समाज में बाबासाहब के प्रति और बौद्ध समूह में हिन्दुओ के प्रति नफरत फ़ैलाने का काम किया जा रहा है, जो इन दोनों समुदाय के साथ-साथ देश हित में नहीं l इस कार्य में हमारे कम्युनिस्ट और कांग्रेसी भाई अग्रेसर है l
रूस कम्युनिस्टों की जन्म भूमि कहलाती है और विचारो से कम्युनिस्ट चीन उनका बड़ा भाई l हमारे भारत वर्ष में जो संविधान है और जो लोकतंत्र है, वह इन दोनों देशो में नहीं है l यहाँ तो केवल ‘एकतंत्र’ है और एक ही पार्टी चुनाव लड़ाती है l यहाँ आजादी दी नहीं जाती, फिर वह व्यक्ति की हो या समूह की l यहाँ तो आजादी छीनी जाती हैl
बौद्ध देश ‘तिब्बत‘ को गुलाम बनाने के बाद तिब्बत की आजादी के उठे स्वर कुचलने के लिए कम्युनिस्ट सेना द्वारा एक ही दिन में २०० तिब्बतियों का खात्मा किया गया l तिब्बत पर चीन की कम्युनिस्ट सेना के कब्जे से भुखमरी, फांसी तथा श्रम शिबिरो में बंदी का शिकार होकर अबतक १० लाख से ऊपर तिब्बती मारे गए l तिब्बती संस्कृति और बौद्ध धम्म का विध्वंस करने की नियत से ६००० से अधिक महाविहार, इसी कम्युनिस्ट सेना द्वारा ध्वस्त किये गए l भिक्षु एवं भिक्षुणीयो को केवल, ‘वे बुद्ध धम्म का पालन करते है‘, इसी एक आरोप के तहत जेलों में ठूस कर छत से उल्टा टांगना, उनके आतंरिक अंगो में सिगरेट के चटके देना तथा बिजली की छड़ी ठूसना और धातु की तारो से उन्हें बुरी तरह पीटना इत्यादि, मरणयातनायुक्त उत्पीड़न किया जा रहा है l तिब्बती युवक तथा युवतियों की जबरन नसबंदी कराई जाती है l इस चीन और रुस के कम्युनिस्ट विचारो से प्रेरित, भारत के कम्युनिस्ट, संविधान व मानवाधिकारों की दुहाई देकर जब भारत में आंदोलन खड़े करते है तब देश की तमाम जनता ने विशेषकर अंबेडकरी समुदाय ने इनकी नियत से सावधान रहने की जरुरत है l