रेल राज्यमंत्री सुरेश अंगाड़ी का ताजा बयान सुर्खियों में है। पश्चिम बंगाल में नागरिकता संशोधन कानून 2019 (सीएए) का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों ने मुर्शिदाबाद में एक रेलवे स्टेशन को आग के हवाले कर दिया है। घटना के चौथे दिन अंगाड़ी का बयान आया। उन्होंने कहा है कि रेलवे या अन्य सम्पत्तियों को आग लगाने और नष्ट करने वालों का देखते ही गोली मार दी जाए। अंगाड़ी ने साफ शब्दों में कहा कि रेल राज्यमंत्री के रूप में वह इस आशय का निर्देश पुलिस और अन्य अधिकारियों को दे रहे हैं। अंगाड़ी का बयान विपक्षी दलों, अंगे्रजी बोलने वाले बुद्धिजीवियों और लेफ्टिस्ट पत्रकारों को पसंद नहीं आएगा। अवश्य आलोचना होगी लेकिन अंगाड़ी ने बात तो सही कही है। सर्वेक्षण करा लें। करोड़ों लोग इसके समर्थन में निकलेंगे। मंगलवार को एक और बात हुई। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के उपद्रवी छात्रों के विरूद्ध पुलिस कार्रवाई में दखल देने से इंकार कर दिया। रविवार को जामिया इलाके में छात्रों ने पुलिस पर पथराव किया, ट्यूब लाइट, बल्ब और पेट्रोल बम फेंके, चार बसों और दर्जनों अन्य निजी वाहनों को आग लगा दी या उन्हें क्षतिग्रस्त कर दिया । प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने सही सवाल किया है। उन्होंने कहा, जब छात्र ऐसा व्यवहार करेंगे तो अधिकारी क्या करेंगे?
वोट बैंक की राजनीति में विवेक खो चुके राजनेता और कुंद-बुद्धि लोग ही उपद्रवियों का समर्थन कर उनका हौसला बढ़ाने की हरकत कर सकते हैं। दूसरी ओर, इने-गिने लोग इस बात से असहमत मिलेंगे कि अच्छा शासन सख्ती से संभव है क्योंकि अधिक नरमी अनुशासनहीनता को बढ़ाने और अराजकता को न्यौता देने वाली साबित हो सकती है। इस विचार के जनक ने दुनिया देखने और अनुभव के आधार पर यह धारणा बनाई होगी। एक बड़े पत्रकार हो गए हैं। वह अराजक, विध्वंसकारी और उपद्रवी सोच रखने वालों के लिए अक्सर यह कटाक्ष करते थे- तुलसी जा संसार में भांति-भांति के लोग, कोई शील स्वभाव है कोई चूल्हे जोग(योग्य)। भले ही विनोदवश कही जाती रही हो पर इस पंक्ति में एक संदेश और भाव है। आज के संदर्भ में भी यह सटीक लग रही है। दुष्टता का जवाब संयम, संकोच और नरमी से देना किसी और युग की बात रही होगी। मंगलवार को दिल्ली के सीलमपुर इलाके में हुई एक घटना के वीडियो देखें। कैसे डेढ़-दो हजार उपद्रवियों की भीड़ पुलिस वालों पर पथराव कर रही है। उपद्रवियों ने एक पुलिस चौकी को आग लगा दी। स्कूली बच्चों की बसों तक पर हमले किए गए। इन उपद्रवियों और हिंसक तत्वों को क्यों माफ किया जाए? विपक्षी राजनेता, लुटियन बिरादरी के बुद्धिजीवी और पत्रकारों के मुंह क्यों नहीं खुल रहे हैं? पुलिस को कोसा जा रहा है। यह व्यवहार इन्हें हुए बौद्धिक पक्षघात के लक्षण है। उपद्रव, विध्वंस और आगजनी जैसी घटनाओं दोषियों का बचाव कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीएए को लेकर लोगों को गुमराह करने और भ्रम फैलाने का खुला आरोप कांग्रेस, ममता बनर्जी की तृणमूल कांगे्रस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और वाम संगठनों पर लगाया है। उन्होंने कांग्रेस से गुरिल्ला राजनीति नहीं करने को कहा है। इसमें गलत क्या है? आम आदमी को भी विपक्ष की राजनीति में खतरनाक एजेण्डे की बू आ रही है। सीएए का विरोध करने का विपक्ष को क्या नैतिक, कानूनी या संवैधानिक अधिकार है? अभी छह माह पूर्व ही इनमें से अधिकांश ने चुनावों में पिटाई खाई है, कुछ विलुप्त होने की कगार पर हैं। देश के 90 करोड़ मतदाताओं के फैसले से भाजपा की अगुआई वाले एनडीए को केंद्र में दोबारा सरकार बनाने का मौका मिला है। मतदाता ने पांच साल परखने के बाद एनडीए को फिर से मौका दिया है। कांगे्रस या उसके चेले-चपाटी दल सरकार के काम में टांग अड़ाने वाले होते कौन हैं? सरकार के विरूद्ध लोगों को उकसा कर देश को आग में झोंकने साजिश क्यों की जा रही है? सीएए पर संसद के दोनों सदनों चर्चा हुई है। संसद की मंजूरी के बाद ही नागरिकता कानून लागू हुआ है। अब कांग्रेस और उसके साथियों को विरोध का तमाशा करने का क्या अधिकार है? सियासी तमाशे के कारण माहौल खराब हुआ है। सीएए विरोधी पार्टियों के व्यवहार से भविष्य के राजनीतिक परिदृश्य का अनुमान कठिन नहीं है। यह तमाशा कांगे्रस को इतिहास में शायद ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह मात्र उल्लेख का विषय बना सकता है। उनका हथकंडा उन्हीं के सिर फूटेगा। चिंता देश को होने वाले नुकसान की है, उसकी भरपाई कैसे होगी?
सीएए का विरोध बड़े षडयंत्र की ओर इशारा कर रहा है। इस समय सोशल मीडिया में चल रहे कुछ वीडियो खासे आपत्तिजनक हैं। किसी मौलाना शब्बीर अली का पश्चिम बंगाल से आया वीडियो बेहद भड़काऊ है। वह रोहिंग्या घुसपैठियों का समर्थन करते हुए कह रहा है कि हम दिल्ली मार्च करके वहां कब्जा कर एक नया इतिहास रचेंगे। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के अमानतुल्ला खान ने जिस तरह का भड़काऊ भाषण दिया है उस पर अरविंद केजरीवाल को शर्म आई या नहीं? एक वीडियो में कथित छात्र नेता दिल्ली वालों को दूध-पानी बंद करने की बात कर रहा है। इन वीडियोज की सत्यता की पुष्टि नहीं हुई है। इस ओर देखना होगा। गनीमत यह है कि एक दूसरा पक्ष भी है। एक विदेशी विद्वान का वीडियो देखने में आया। वह आश्चर्यचकित हंै कि सीएए के विरोध में भारत में मुसलमान क्यों विरोध कर रहे हैं? वह मानते हैँ कि विरोध करने वाले मुसलमान घुसपैठियों की मदद कर रहे हैं। जबकि भारत में उन्हें सारे अधिकार हैं। उनसे भेदभाव नहीं किया जाता है।
मोटे तौर एक बात समझ में आई है कि ताजा गड़बड़ी के पीछे विपक्षी राजनीतिक दलों की वोट बैंक की राजनीति के साथ-साथ कुछ अति ज्ञानी बुद्धिजीवियों और कुछ पत्रकारों की दिमागी बीमारी काम कर रही है। ममता बनर्जी जब अपनी राजनीति चमकाने के लिए सीएए और एनआरसी के विरूद्ध बोलेंगी तो आम औसत बुद्धि वाला आदमी उनकी बातों का अर्थ अपने दिमाग के हिसाब से निकालेगा। वहां विरोध के नाम पर जो हुआ उसकी जिम्मेदारी तृणमूल पर आती है। दिल्ली में जो हुआ उसमें शक की सुई कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की ओर है। और अंत में, हमारे विद्वान विपक्षी नेताओं की बुद्धि का एक नमूना लीजिए। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से नागरिकता संशोधन कानून अस्तित्व में आया है। सोनिया गांधी की अगुआई में 13 दलों के नेता राष्ट्रपति के पास इस कानून के खिलाफ रोने पहुंच गए। अरे भाई, अदालत जाइये, वहीं सही गलत का फैसला हो सकेगा। कांगे्रस और उसके साथियों में दम है तो घोषणा करें कि भविष्य में उनकी सरकार बनने पर अनुच्छेद 370 पुन: लागू किया जाएगा और पाकिस्तानी मुसलमानों के लिए भी भारत की नागरिकता के दरवाजे खोल दिए जाएंगे।
अनिल बिहारी श्रीवास्तव,
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