
मैं देश के उन ‘अन्यायाधीशों’ से पूछना चाहता हूं, जो इस तरह की ‘व्यवस्था परिवर्तन’ के पक्ष में हैं. यह मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और पवित्र सीता मां का देश है, जहां नारी को सदैव पूजा जाता रहा है! मगर यहां सेक्स की छूट देकर क्या आप लोग हमारी संस्कृति और संस्कार को नष्ट-भ्रष्ट नहीं कर रहे हो? देश की जनता ने त्रस्त होकर ‘टैक्स’ में छूट मांगी थी और तुमने ‘सेक्स’ में छूट दे दी! पहले ‘गे-सेक्स’ (पुरुष-पुरुष संबंध) में छूट दी, ‘लेस्बियन सेक्स’ (महिला संग महिला संबंध) में छूट दी और अब महिला अथवा पुरुष के परस्त्री-परपुरुष संबंधों को कानूनी गुनाह नहीं मानने का फैसला दिया गया. यह कैसा ‘बेहूदा बदलाव’ है? इससे कहां जाएगा यह समाज? कहां जाएगा यह देश? जबकि हमारी संस्कृति के प्राण ही सदाचार है, किंतु व्यभिचार पर खुली छूट क्या स्वस्थ समाज के लिए घातक सिद्ध नहीं होगी?
विडंबना देखिए कि अपने देश में ‘बाल विवाह’ पर रोक है और बुजुर्ग विवाह शुरू हो गए हैं! शादी संबंध की उम्र घटाकर 18 साल कर दी गई है. 65 वर्ष के अनूप जलोटा की गर्लफ्रेंड 28 वर्ष की जसलीन बन गई है और 36 वर्ष की प्रियंका चोपड़ा ने 25 वर्ष के निक जोनस से ब्याह रचा लिया है. इसमें किसी को कोई तकलीफ नहीं है. कोई आपत्ति नहीं है. कोई आश्चर्य भी नहीं है. क्योंकि ‘मियां बीवी राजी, तो क्या करेगा काजी?’ हैरान हूं मैं तो भारत की बदलती वैवाहिक संस्कृति को देखकर. फिर भी असंख्य बुद्धिजीवी इस व्यवस्था परिवर्तन का खुलेआम स्वागत-समर्थन कर रहे हैं. हमारे बुजुर्ग सच ही है कहते थे, ‘अंग्रेज चले गए, औलाद छोड़ गए!’
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला स्त्री-पुरुष की असमानता को दूर करने के लिए ही आया है, मगर इसका नाजायज फायदा कुछ व्यभिचारी पुरुष उठा सकते हैं. इस फैसले में महिला स्वतंत्रता और लैंगिक समानता की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण बातें भी कही गई हैं. जैसे स्त्री की देह पर उसका अपना हक है. वह इसके लिए दबाव में नहीं रह सकती. पवित्रता सिर्फ पत्नियों के लिए ही नहीं हो सकती, यह समान रूप से पतियों पर भी लागू होगी. अदालत के अनुसार, शादीशुदा महिला के बाहरी पुरुष से संबंध अब कानूनन जुर्म नहीं है, लेकिन समाज की नजर में यह गलत और अवैध ही कहलाएंगे. जीवनसाथी के विवाहेतर संबंधों से परेशान पति या पत्नी के लिए ऐसे अवैध रिश्ते, सबूतों के पाए जाने पर तलाक का आधार भी बने रहेंगे. अदालत का कहना है कि कोई महिला अपनी सहमति से किसी परपुरुष से संबंध बनाती है, तो उसकी सजा सिर्फ पुरुष को ही क्यों दी जाए, इसीलिए धारा 497 को ही असंवैधानिक मानकर खत्म कर दिया गया.

दरअसल, हमारे देश में बहुत-सी महिलाएं अपने व्यभिचारी पतियों से प्रताड़ित होती रहती हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट इन पीड़िताओं के मन में यह उम्मीद जगाता है कि अब या तो पति खुद सुधर जाएंगे, या फिर पत्नी को भी ऐसा ही करने (समानता) का हक देंगे! हालांकि मोदी सरकार ने कोर्ट में यही दलील दी थी कि ऐसा व्यभिचार विवाह संस्थान के लिए खतरा है और परिवारों पर भी इसका असर पड़ता है. फिर भी कोर्ट ने यह बात नहीं मानी. कुछ लोगों का कहना है कि यह फैसला योग्य नहीं है. यह इन्सान को जानवर बनाने की ओर बढ़ता घिनौना कदम है. इससे कानून का राज खत्म होगा और जंगलराज फैलेगा. इससे कई परिवारों के संबंधों में दरारें पड़ेंगी. दूरियां बढ़ेंगी. हालांकि समाज की नजर में विवाहबाह्य संबंध अनैतिक ही रहेंगे. लेकिन इस पर अब कानून का पहरा नहीं होगा. व्यभिचारी पुरुष/महिला को अब जेल नहीं जाना पड़ेगा. हालांकि दुनिया के 60 देश विवाहेतर कानून को खत्म कर चुके हैं, फिर भी कई इस्लामिक देशों में यह आज भी जघन्य अपराध है. हो सकता है दुनिया के साथ कदमताल करने के लिए हमारा भी देश बदल रहा हो. अंत में यही कहना उचित होगा कि कोर्ट चाहे जो भी फैसला ले, हम भारतीयों ने अपने संस्कारों की सीमाएं नहीं लांघनी चाहिए.
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