जलगाँव – ( विपुल पंजाबी ) पूरे देश में दिपावली व भाईदूज का पर्व समाप्त होने के बाद जलगाँव जिले के बोदवड तहसील के येवती गांव में दीपावली व भाईदूज पर्व मनाया जाता है । आज शुक्रवार 1 नवम्बर को येवाती गाँव में दिवाली के साथ भाई दूज पर्व मनाया जा रहा है। दिवाली के बाद आनेवाली पंचमी को येवती गांव के लोग दिवाली व भाईदूज एकसाथ मनाते है।
बोदवड तहसील के इस येवती गांव में दीपावली के अवसर पर त्यौहार न मनाते हुए बाद में दीपावली व भाईदूज एकसाथ मनाए जाने की लगभग ४०० साल पुरानी परंपरा है। इन्ही परंपराओं के अंतर्गत पुरे देश में भाईदूज मनाई जाती है, तब बोदवड का येवती गांव त्यौहार से दूर रहता है । येवती गांव में इन परंपराओं का निर्वाह करते हुए अंबऋषी के मंदिर को आस्था का केंद्र रखा जाता है। महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि भारत वर्ष में ऐसी परंपराओं का निर्वाह करने वाला यह एक मात्र मंदिर है । येवती गांव में इन परंपराओं का निर्वाह करते हुये विगत भाईदूज नहीं मनाई गई ।
पौराणिक कथाओं के आधार पर बोदवड तहसील के येवती गांव में प्राचीन काल के अंब ऋषि द्वारा स्थापित की गयी दीपावली को ही महत्व दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि, कई वर्ष पहले येवती परिसर में भीषण संक्रामक रोग फैल गया था। तब महान तपस्वी अंब ऋषि ने गांव वालों को इकठ्ठा करते हुए जंगल के एक खेत में आश्रय दिलाया। अंबश्रऋषी ने गांव वालों को विपदा से निजाद दिलाने के लिए दीपावली का त्यौहार नही मनाने के निर्देश दिये। बाद में स्थिती शांत होने व त्यौहार के महत्व को देखते हुए अंब ऋषि ने दिवाली के बाद आनेवाली पंचमी पर त्यौहार मनाने के उद्गार दिये।
अंब ऋषि के निर्देशों को प्रथा मानते हुये येवती गांव के लोगों ने आज तक उसी प्रथा को जारी रखा। स्थानीय लोगो ने गांव के पश्चिम भाग में अंबऋषि का एक मंदिर भी निर्माण किया। लोककथाओं को जोडते हुए इस मंदिर की येवती गांव ही नही आसपास के इलाकों में भी अच्छी-खासी आस्था है।
जलगांव जिले के बोदवड तहसील में लगभग ४ हजार जनसंख्या वाले येवती गांव में मराठा, माली, कुंभार, मातंग, चर्मकार, धनगर, बौध्द आदि समाज के लोग रहते है। आम तौर पर देश के विभिन्न भागों में धनतेरस, लक्ष्मीपूजन, भाईदूज एवं महाराष्ट्र में इन सब के अलावा नरक चतुरदशी, दर्श अमावस्या, बलिप्रतिपदा और दीपावली पाडवा भी मनाया जाता है।
नामदेव वानखेडे के खेत में बनाये गये इस मंदिर में दिवाली के बाद आम तौर पर आनेवाली पंचमी को येवती गांव के लोग दिवाली व भाईदूज एकसाथ मनाते है। त्यौहार के दिन गांव वाले परिसर में स्थित शिवजी के मंदिर में इकठ्ठा होकर स्थानीय भाषा के काठी रुप में हवन करते हुए अंब ऋषि के स्मरण के साथ गांव की प्रदक्षिणा पूर्ण करते है। महिलाएं अपने-अपने घरों से शुध्द सात्विक भोजन तैयार कर मंदिर में भोग के लिए प्रस्तुत करती है। मान्यता है कि, अंब ऋषि के प्रभाव से एकत्रित आने पर ही परिसर में विपदा का नाश हुआ था।
इस आस्था के साथ ही संयुक्त त्यौहार को मनाने के लिए गांव से बाहर गये लोग व गांव के बाहर विवाहित गांव की लडकीयां अपने घरों की ओर लौटती है। येवती गांव की संयुक्त दीपावली व भाईदूज की परंपरा में एक और रस्म अदा की जाती है। महाराष्ट्र भर में भाईदूज के दिन पुरूष वर्ग अपनी कमर पर एक लाल धागा बांधता है। जिसे स्थानिय भाषा में करदोडा कहा जाता है।
येवती गांव में संयुक्त दीपावली भाईदूज त्यौहार पर बहने अपने भाई को यह लाल धागा करदौडा के रूप में प्रदान करेंगी। इससे पहले अंबऋषी को करदौडा पहनाया जाएगा। बहनों द्वारा दिये गए करदौडे को अगले वर्ष तक के लिये बांधा जाता है । विगत वर्ष के करदौडे को इस खास दिन पर ही मंदिर में काटा जाता है। देशभर में शायद पौराणिक कथाओं के आधार पर येवती गांव ही दिवाली व भाईदूज मनाने की अलग परंपराओं का गांव है।