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क्रिकेट और राजनीति में सब कुछ संभव, प्रधानमंत्री ने पूरा किया वादा

Tez Samachar by Tez Samachar
November 23, 2019
in Featured, देश
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क्रिकेट और राजनीति में सब कुछ संभव, प्रधानमंत्री ने पूरा किया वादा

नई दिल्ली ( तेजसमाचार प्रतिनिधि )- कहते हैं समय बड़ा बलवान होता है, समय किसी के लिए नहीं ठहरता! फिलहाल महाराष्ट्र राजनीती में आये रोचक घटनाक्रम को देखते हुए ऐसा कहा जा सकता है. वैसे भी कुछ दिन पूर्व भाजपा के वरिष्ठ नेता व केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था क्रिकेट और राजनीति में कुछ भी संभव है. शनिवार को भोर की पहली किरण के साथ भूकंप के झटके महसूस किये गए. राजनीती रिएक्टर पर भूकंप की तीव्रता नापने वाले सभी यन्त्र निष्क्रिय हो गए. नितिन गडकरी के उस ब्यान का भले ही विरोधियों ने उस समय उपहास उड़ाया हो लेकिन विरोधियों को अब समझ आ गया होगा कि गडकरी मज़ाक नहीं कर रहे थे.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के 24 अक्टूबर को जब परिणाम आए थे तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह सायंकाल पांच बजे कार्यकर्ताओं को संबोधित करने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मुख्यालय पहुंचे थे. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ”देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में आने वाले पांच साल महाराष्ट्र के विकास को और अधिक ऊंचाई पर ले जाने वाले होंगे, ऐसी मुझे उम्मीद है. लेकिन पिछले कुछ दिनों से शिवसेना खासतौर पर संजय राउत ने प्रधानमंत्री की महाराष्ट्र सत्ता स्थापना उम्मीदों पर पानी फेर रखा था.

महाराष्ट्र में पल दर पल बदलती ऐसी तमाम तस्वीरों के बीच सभी को लगने लगा कि शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वचन पूरा नहीं हो पाएगा. शिवसेना के राजग से अलग होने के ऐलान के बाद कांग्रेस और राकांपा के साथ गठबंधन सरकार बनना तय माना जा रहा था. न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर भी बातचीत लगभग तय हो चुकी थी.

चुनाव नतीजों के बाद जिस तरह से शिवसेना ने बागी रुख आख्तियार किया और उसकी कांग्रेस-राकांपा के साथ सरकार बनाने की बातचीत चलने लगी. बीच में नितिन गडकरी की अचानक सक्रियता बढ़ी. शिवसेना के एक नेता ने नितिन गडकरी का नाम लेते हुए कहा कि वह बातचीत सुलझा सकते हैं और फिर गडकरी की संघ प्रमुख भागवत से भी भेंट हुई. ऐसे में नितिन गडकरी का नाम भी मुख्यमंत्री के लिए उछलने लगा. कहा जाने लगा कि देवेंद्र की बजाए नितिन के मुख्यमंत्री बनने पर शिवसेना का रुख नरम हो सकता है. लेकिन प्रधानमंत्री पहले ही कह चुके थे कि महाराष्ट्र में देवेन्द्र फिर से आयेंगें.

शुक्रवार देर रात 11 बजे से शनिवार सुबह आठ बजे के बीच ऐसा खेल हुआ, जिसकी भाजपा के भी कई बड़े नेताओं ने कल्पना नहीं की थी. सुबह आठ बजे तक देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके थे. इस प्रकार सभी आशंकाओं को खारिज करते हुए मोदी-शाह की जोड़ी ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाकर ही दम लिया.

महाराष्ट्र की राजनीति में शनिवार को जो कुछ भी हुआ वह 13 साल पहले कर्नाटक में हो चुका है. उस राजनीतिक ड्रामा में एन धरम सिंह की नेतृत्व वाली कांग्रेस-जेडीएस की सरकार रातों-रात गिर गई और देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व में जेडीएस से अलग हुए धड़े ने बीजेपी (BJP) के साथ मिलकर सरकार बना ली. यह वही बीजेपी थी जिसको वह कुछ समय पहले तक अपना दुश्मन समझती थी.

उस समय पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने मौन धारण कर लिया था सिर्फ उनके विश्वस्त सिपहसालार ही उनकी ओर से लोगों को संक्षिप्त जवाब दे रहे थे. वे दावा कर रहे थे कि उनके बेटे एचडी कुमारस्वामी ने पार्टी तोड़कर और ‘सांप्रदायिक’ बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर उनको धोखा दिया है. कुछ दिन बाद उन्होंने मुख्यमंत्री बने अपने बेटे और विद्रोही विधायकों को जेडीएस से निकाल भी दिया था. महीनों तक इस बात से आहत गौड़ा सार्वजनिक रूप से सामने आने और मीडिया से बात करने से कतराते रहे.

उस समय नाटक यहां तक हुआ था कि मुख्यमंत्री बने एचडी कुमारस्वामी ने भी लोगों के समक्ष यह कहते हुए जोर-जोर से आंसू बहाए कि उन्होंने अपने बाप को धोखा दिया. पर कुछ महीने बाद मुखौटा गिर गया. राजनीतिकों और जनता दोनों को यह पता चल गया कि बाप-बेटे दोनों ने मिलकर उन्हें ठगा है. बेटे के विद्रोह की स्क्रिप्ट बाप ने लिखी थी. अपने बेटे को किसी भी क़ीमत पर मुख्यमंत्री बनाने के लिए पीएम देवगौड़ा ने विस्तृत योजना बनाई थी ताकि यह ऐसा लगे कि बाप को ख़ुद उसके बेटे ने धोखा दिया है. एचडी कुमारस्वामी की सरकार कुल 20 महीने चली और इस पूरी अवधि के दौरान सरकार की कमान प्रभावी रूप से देवगौड़ा के हाथ में रही.

जब एचडी कुमारस्वामी से उम्मीद की जा रही थी कि वह मुख्यमंत्री पद की ज़िम्मेदारी येदियुरप्पा को सौंपेंगे, देवगौड़ा ने एक बार फिर लोगों को यह कहते हुए सकते में डाल दिया कि उन्होंने अपने बेटे को बीजेपी को धोखा देने को कहा. एक बार फिर कर्नाटक की सरकार गिर गई और वहां राष्ट्रपति शासन लगा. अगली बार जो विधानसभा चुनाव हुए उसमें जनता की सहानुभूति येदियुरप्पा को मिली और वह सत्ता की कुर्सी तक जा पहुंचे.

बरहाल कहते हैं इतिहास दोहराता है . शनिवार को इतिहास की पुनरावृत्ति होना बताई जा रही है. फिलहाल इस सारे मामले में ध्यान देने योग्य बात यह है कि शनिवार को अवसरवादिता से बाहर निकल कर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को एक बार फिर छत्रपति शिवाजी महाराज याद आ गए. सत्ता स्थापना के लिए हिंदुत्व का मुद्दा छोड़ने के लिए तैयार शिवसेना को फिर से नैतिक बाते याद आ गई.

Tags: maharashtra politics
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