भारतीय फिल्म इतिहास के सबसे मशहूर और सफल गायकों में से एक मोहम्मद रफी साहब ! मोहम्मद रफी के गानों में वो कशिश, वो भावुकता होती थी जिससे वह गाने श्रोताओं के मन में घर कर जाते थे. हिंदी सिनेमा के जाने-माने फनकार और स्वर सम्राट मोहम्मद रफी की आज 95वीं जयंती है. उनका जन्म 24 दिसंबर 1924 को हुआ था और 31 जुलाई 1980 में इन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था. अपने सिंगिंग करियर में रफी ने ऐसे-ऐसे गाने गाए हैं जिनका महत्व आज भी उतना है जितना उनके समय में हुआ करता था….ऐसे महान अज़ीज फनकार मो. रफी साहब को आज हमारे बीच से गुजरे हुए चार दशकों का समय बीत गया. आज 24 दिसंबर… अर्थात मो. रफी साहब का जन्म दिवस… इस उपलक्ष्य में प्रस्तुत है उनकी यादों का यह झरोखा….
मोहम्मद रफ़ी जिन्हें दुनिया रफ़ी साहब के नाम से पुकारती है, हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्व गायकों में से एक थे. अपनी आवाज की मधुरता के लिए इन्होंने अपने समकालीन गायकों के बीच अलग पहचान बनाई. इन्हें शहंशाह-ए-तरन्नुम भी कहा जाता था. मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ ने अपने आगामी दिनों में कई गायकों को प्रेरित किया. इनमें सोनू निगम, मुहम्मद अज़ीज़ तथा उदित नारायण का नाम उल्लेखनीय है – यद्यपि इनमें से कइयों की अब अपनी अलग पहचान है. वर्ष 1940 के दशक से शुरुआत कर वर्ष 1980 तक रफी साहब ने कुल 26,000 गाने गाए. इनमें मुख्यत: हिन्दी गानों के अलावा ग़ज़ल, भजन, देशभक्ति गीत, क़व्वाली तथा अन्य भाषाओं में गाए गीत शामिल हैं. जिन अभिनेताओं पर रफी साहब के गाने फिल्माए गए उनमें गुरुदत्त, दिलीप कुमार, देव आनंद, भारत भूषण, जॉनी वॉकर, जॉय मुखर्जी, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, जीतेन्द्र तथा ऋषि कपूर के अलावा गायक अभिनेता किशोर कुमार का नाम भी शामिल है. अपनी आवाज़ से गीतों के रुप में रफी साहब की यादे मन में कायम संचित हो गई है. उनके गानों में वो कशिश होती थी की वह गाने सूनने के बाद भूलाये नहीं जाते. हिंदुस्तान के अज़िज फनकार मोहम्मद रफी साहब को आज दुनिया से रुखसत हुए चार दशकों का समय बीत चुका है. रफी साहब भलेही हमारे बीच से गये हुए हो फिर भी वे हम लोगों के बीच होने का आभास होता है.
पंजाब के अमृतसर के पास कोटला सुल्तानपूर में 24 दिसम्बर 1924 को रफी साहब का जन्म हुआ. उस्ताद बड़े गुलाम अली खान ने रफी साहब को संगीत सिखाया और गाना भी सिखाया. उन्होंने अपनी गायकी की शुरुआत आकाशवाणी से की. वर्ष 1942 में गुलबलोच इस फिल्म में सोनी ‘ये नी हिरी ये’ यह गीत उन्होंने गाया जो उन दिनों काफी लोकप्रिय हुआ. वर्ष 1945 में रफी साहब को गायक के रूप में स्थापित हुए. उसके बाद रफी साहब ने गीतों की बरसात ही की हो. अनमोल घड़ी, जुगनू, दो भाई, मेला, दुलारी, दिल्लगी, चाँदनी रात इन फिल्मों ने मो. रफी साहब को एक महान फनकार की शोहरत दिलाई. ईसी दौर में किशोर कुमार जी एक गायक के रुप में शोहरत बटोर रहे थे. लेकीन रफी और किशोर कुमार की गायकी में कभी स्पर्धा नहीं थी. बल्कि दोनों की जोडी ने एक से एक सुपर-डुपर हिट गाने गाये. वर्ष 1950 में प्रदर्शित मीना बाजार और आँखे इन फिल्मोंने रफी साहब को टॉप गायक का खिताब दिलाया. उन्हें 1960 में चौदहवी का चाँद फिल्म के लिए पहला फिल्म फेअऱ पुरस्कार दिया गया. संगीत क्षेत्र में दिये योगदान के लिए रफी साहब को 1965 में पदमश्री पुरस्कार देकर भारत सरकारने सम्मानित किया. रफी साहब को छह फिल्म फेअर पुरस्कार और दो राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़ा गया.
रफी साहब ने प्रेम गीत, विरह गीत, विनोदी गीतों सहित शास्त्रीय, देशभक्ति गीत, भजन, कव्वाली और मराठी गीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया. हिंदी के अलावा , मराठी, सिंधी, कन्नड़, पंजाबी, बंगाली, असामी, कोंकणी, भोजपुरी, ओड़िया, गुजराती, तेलुगू, माघी, मैथिली, उर्दू, के साथ-साथ इंग्लिश, फारसी, अरबी और डच भाषाओं में भी मोहम्मद रफी ने गीत गाए हैं. आज के इस दौर में रफी साहब जैसा गायक होना नामुमकिन है. रफी साहब की कुदरती आवाज़ उनकी सफलता का एक मुख्य कारण रहा. रफीसाहब ने अनेक गानों को अपनी आवाज देकर उन गानों को सुवर्णगीत बनाया. आदमी, ज्वारभाट, मेहबूब की मेहंदी आदि ऐसी कई फिल्मे है जो केवल रफी साहब के गानों से ही हिट हुई.
रंग और नुर की बारात किसे पेश करू, बहारो फूल बरसाओं मेरा मेहबूब आया है यह गीत आज भी लोकप्रिय है जो शादी ब्याह के मौके पर बजाये जाते है. ‘बाबूल की दुवाएँ लेती जा’ इस गीत की रेकोर्डिंग करते समय तो रफी साहब सचमुच रो पडे थे. उनके गानों में एक तरह की भावुकता होती थी जो श्रोताओं का मन जीत लेती. आज भी शादी ब्याह के अवसर पर बहारों फूल बरसाओं इस गीत की धुन बजाई जाती है. यह रफी साहब का एक तरह से सम्मान ही है जो इन गीतों को बजाया जाता है. गायक होने के साथ-साथ रफी साहब एक महान व्यक्तित्व के रुप में जाने जाते थे. गुरुदत्त, शम्मी कपूर, शशि कपूर, दिलीप कुमार, राजेश खन्ना आदि अभिनेताओं को आपनी आवाज से मो.रफी साहब ने सफलता के शिखर पे बिठाया. करोड़ों लोगों को गीतों से खुश कर उस रोज तेज बारिश हो रही थी. लेकिन लोग अपने चहिते गायक रफी साहब के आखिरी दर्शन के लिए भारी बारिश में भी जनाजे शामिल हुए. करीब दस हजार लोग इस यात्रा में थे. उनके सम्मान में दो दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था. शम्मी कपूरजी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि, जब रफी साहब रुखसत हुए उस वक्त वे वृंदावन में थे, जहां उनसे कहा गया कि, शम्मी साहब आपकी आवाज़ चली गई. शादी का गाना हो, बिदाई में भावुक पिता की भावनाएं व्यक्त करनी हों, विरह गीत हो, शास्त्रीय संगीत हो, भजन हो, मस्ती हो, मजा हो, रोमांस हो, या फिर देशभक्ति गीत हो, हर इमोशन में, हर तरह की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए रफी साहब बिल्कुल सही आवाज़ देते थे. शाम फिर क्यूं उदास है दोस्त… यह मोहम्मद रफी साहब की आवाज़ में आखरी गीत रहा. जब तक ये आवाज की दुनिया रहेगी तब तक हमेशा रफी साहब की आवाज़ सुनाई देती रहेगी. गायक भले ही बहुत से आये हो, बहुत से गायक आएंगे भी किंतु मोहम्मद रफ़ी साहब की आवाज की तरह मधुरता शायद ही कहीं मिले.
रफी साहब 31 जुलाई 1980 की रात ग्यारह बजे “तुम मुझे यू भूला ना पाओंगे” केहकर इस दुनिया से रुखसत हुए. वो माह-ए-रमज़ान था. तो जाहिर है, वो भूखे थे. उनके हाथ और पैर पीले पड़ रहे थे. उन्हें नजदीक के अस्पताल ले जाया गया. वहां सुविधाएं नहीं थीं, तो बॉम्बे हॉस्पिटल ले जाया गया. तब तक बहुत ही रात हो चुकी थी. डॉक्टर बाहर आए और उन्होंने बताया कि वो रफी साहब को नहीं बचा पाए. मोहम्मद रफी संसार छोड़ चुके थे. वो आवाज खामोश हो गई, जिसने कई दशकों से संगीत दुनिया को मंत्रमुग्ध किया. रफी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गीत आज भी गुनगुनाए जाते हैं. रफी को उनके जन्मदिन अभिवादन !
– आरिफ आसिफ शेख, 9881057868