हजारों युद्ध हुए हजारों की जीत हुई और हजारों की हार लेकिन जीवन विधिवत रहा। हर धर्म अपनी अपनी सभ्यता और संस्कृति को ले कर आगे बढ़ता रहा। ऐसा तब तक होता रहा जब तक घृणा के बीज नहीं फूटे। वर्ण भेद के साथ भी में एक संतुलन बना रहता था। पर जब से समाज में नफरत ने अपना रंग जमाया है तब से मानो धीरे धीरे सब समाप्त होना शुरू हो गया।
इसका प्रभाव ब्रिटिश शासन काल में अधिक देखने को मिला। अंग्रेज भारतियों नफरत करते थे और भारतियों के प्रति उनका वयवहार बहुत क्रूर था। जब हालत सहन शक्ति से बहार हो गए तब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करने के लिए पुरे देश में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी –तब भारत का विभाजन नहीं हुआ था। इस क्रांति में हर प्रान्त के ,हर जाती के और हर धर्म के लोगों ने भाग लिया था। सबका उद्देश्य एक ही था देश को अंग्रेंजो से मुक्त कराना इस संघर्ष में हथियारों काछेड़ प्रयोग कुछ मुठी भर लोगों ने ही किया होगा बाकि सब ने असहयोग आंदोलन छेड़ दिया। अंग्रेज सर्कार के पांव उखड़ने लगे और उन्होंने भारत को आजाद करने में ही अपनी भलाई देखी। पर जाते जाते वे नफरत के बीज बो गए। ये उनका एक खामोश शास्त्र था जिसके प्रभाव से विश्व की दो महँ सभ्यतांए जो आजतक कदम से कदम मिला कर चल रही थीं वे एक दूसरे के समक्ष शत्रु के रूप में आ खड़ी हुईं वर्षोंपहले फैलाई यह नफरत आज बहुत ही भयानक रूप में हमारे सामने पसर गई है।
इसके बावजूद भी भारत विकास की रा ह पर चल पड़ा ,साथ साथ नफतरत भी आगे बढ़ती चली गई। अब नफरत भारत की धरती पर चक्रवाक बन कर एक बार फिर आ धमकी ,इस बार प्रहार देश की संस्कृति और उसके आदर्शों पर हुआ। मान्यतांओ पर से लोगों का विश्वास उठने लगा। शिक्षा का प्रभाव कुछ ऐसा पड़ा की परिवार बिखरने लगे
लोग अपने आप से अपने परिवार से ,अपने तीज त्योहारों से ,अपने जन्म स्थान से दूर होते चले गए। एक और स्वतंत्रता मिल गई थी हर तरह से इसका लाभ उठाने के प्रयत्न किये जाने लगे स्वार्थ ने सब को इस तरह से घेरा की नफरत चारों तरफ फैल गई। भिन्न भिन्न क्षेत्र के लोगों ने भिन्न भिन्न तरह से इस स्थिति का लाभ उठाया। कभी साधु बन कर ,कभी रक्षक बन कर ,कभी गुरु बन कर ,कभी व्यापारी बन कर ,कभी चकाचोंध दिखा कर ,कभी मित्र बन कर ,कभी शत्रु बन कर ,कभी पिता बन कर तो कभी पुत्र बन कर ,हर किसी ने हर किसी को लूटा और एक दौर की शरुआत हो गई लूटने की—- नेता बन कर।
जब कभी लूटने की प्रक्रिया शुरू होती है तब दूसरों के प्रति बुराई का और नफरत का प्रचार शुरू हो जाता है अधिकतर लोगों को भावनात्मक रूप से इतना घायल कर दिया जाता है की वे अपनी सोच पर भरोसा न कर के भेड़ चाल चलने लगते हैं। लालच —-ये अच्छेखासे इंसान की नियत खराब कर देता है , आकर्षण ——ये इंसान का इंसान के प्रति हो या भोग्य और भोज्य पदार्थ के प्रति हो या फिर मनमानी मस्ती करने का ——-किसी को भी गलत राह पर ले जा सकता है। आज के आधुनिक युग में बड़े हों या बच्चे सभी इस गर्त में गिरे जा रहे हैं। बच्चों को नफरत का शिकार होते देख देश का भविष्य अंधकार में डूबता दिखाई देता है। मिडिया हो या किसी नेता का मंच ,या मौज मस्ती के अड्डे या ,स्कूल कालेजों के कम्पाउंड आप भारतीय संस्कृति को सरे आम तबाह होते देख सकते हैं। सच कहें तो अब दर्शक कम और मन के राजा अधिक दीखते हैं दिन रात लाऊड स्पीकरों पर एक दूसरे पर कीचड उछाला जा रहा है ,हर तरह की तोहमतों से नवाजा जा रहा है — इनका उदेश्य पूरा होगा या नहीं ,पता नहीं पर साल दर साल पनपती नई पीड़ी इसका शिकार जा रही है। इस जेनरेशन में माता पिता के प्रति कोई लिहाज बाकि नहीं दिखाई दे रहा है और न ही गुरुजनो के लिए कोई सम्मान। ताली दोनों हाथों से बज रही है पर दूर दूर तक कहीं कोई ऐसा नहीं है जो इस तूफ़ान का रुख बदले सरे आम सामाजिक नियमों का उलंघन कर सभी अपना अपना घर भरने में लगे हैं। हताशा और बेबसी से कुछ लोग हत्या या आत्महत्या करने पर उतारू हैं। कयों सब के मनोबल को कुचला जा रहा है। देश निर्माण के लिए ऊँचे आदर्शों को अपनाना होगा नफरत को नहीं। किसी को तो पहल करनी होगी ,अपने को महान बनाने के लिए दूसरों को नीचा दिखाना कायरता है।
हमारी संस्कृति घर्म और कर्म प्रधान है। हमारी परम्परा एक दूसरे के लिए और एक दूसरे के साथ जीने की है। यह भारत देश है घृणा की घाटी नहीं।
ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोय ,
औरन को शीतल करे ,आपहु शीतल होए।
– नीरा भसीन- ( 9866716006 )