पुणे (तेज समाचार डेस्क). असफलता की जिम्मेदारी लेने का साहस नेतृत्व करने वाले में होना चाहिए, क्योंकि सफलता का श्रेय कई लोग लेते हैं, लेकिन असफलता का कोई दायित्व नहीं लेता. सफलता के साथ असफलता की जिम्मेदारी लेने के साहस से नेतृत्व करने वाले का उस संस्था के साथ उत्तरदायित्व दिखाई देता है. यह स्पष्ट राय केंद्रीय परिवहन मंत्री नितीन गड़करी ने पुणे में व्यक्त की.
पुणे जिला नागरी सहकारी बैंक्स एसोसिएशन की ओर से बालगंधर्व रंगमंदिर में आयोजित कार्यक्रम में वे बोल रहे थे. इस अवसर पर सहकारिता मंत्री सुभाष देशमुख, एसोसिएशन के अध्यक्ष एड. सुभाष मोहिते, उपाध्यक्ष साहेबराव टकले, सचिव संगीता कांकरिया आदि उपस्थित थे. कार्यक्रम में राज्य की 29 उत्कृष्ट नागरी सहकारी बैंकों को सम्मानित किया गया. इसके साथ महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक के प्रशासकीय मंडल के अध्यक्ष चुने जाने पर वरिष्ठ बैंकिंग विशेषज्ञ विद्याधर अनास्कर को ‘बैंकिंग रत्न’ और भगिनी निवेदिता बैंक की संस्थापक डायरेक्टर शीला काले को सहकारिता क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान पर जीवन गौरव पुरस्कार गड़करी के हाथों प्रदान किए गए.
गड़करी ने आगे कहा, कि बैंकिंग हो या राजनीति, दोनों में सफलता असफलता को स्वीकार करना पड़ता है. राजनीति में असफलता मिलने पर कमेटी गठित कर जांच होती है. असफलता के लिए दूसरों को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते. नेतृत्व को असफलता की भी जिम्मेदारी लेनी पड़ती है. तभी उसका संस्था के साथ उत्तरदायित्व दिखाई देता है. सहकारी संस्था की सफलता नेतृत्व की सफलता होती है.
सहकारिता में जब तक एक इंजन यानी एक नेता होता है, तब तक संस्था की गाड़ी सही चलती है. इंजनों की संख्या बढ़ने से गड़बड़ हो जाती है.
दिल्ली में सहकारिता की पहचान सिर्फ घोटाले की है. महाराष्ट्र में सहकारी संस्थाओं को मार्केटिंग करके यह पहचान बदलने का अवसर है, यह सलाह भी गड़करी ने दी. सत्ता बदलते ही एक-दूसरे की जांच करने की बजाय सहकारिता की भलाई के लिए काम करें. सहकारिता में कार्पोरेट कल्चर मत लाएं, लेकिन इसमें व्यावसायिकता अवश्य आनी चाहिए. यह सलाह भी गड़करी ने सहकारिता क्षेत्र को दी. उन्होंने विद्याधर अनास्कर को सलाह देते हुए कहा कि महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंकों का काम करते समय शुगर फैक्ट्रियों को लोन न दें, लेकिन इथेनॉल प्रोजेक्ट हेतु अवश्य लोन दें.
बैंकों के एनपीए पर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि बैंक का एक भी कर्ज खाता डूबेगा नहीं, ऐसा हो नहीं सकता. इसलिए बैंक के संकट में फंसने पर डायरेक्टर को दोषी न ठहराएं. अगर अच्छे बैंक बीमार बैंकों को अपने में विलय कराएंगे, तो समस्या हल होगी. सरकार से न्याय की गुहार लगाना, आखिरी विकल्प हैं. आईटी का बढ़ता इस्तेमाल, सूचना अधिकार, नागरिकों में बढ़ती जागरूकता आदि के कारण भविष्य में बैंकों को चलाना बहुत चुनौतीपूर्ण होगा. यह भी गड़करी ने स्पष्ट किया.