सावधान : इंसान रूप चिमगादड़ भी फैलाते हे ” निपह ” वायरस
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( विक्रांत राय ) :निपाह, निपाह नाम सुनते ही शरीर में एक सिहरन सी उठ जाती है. अभी ज्यादा दिन नहीं हुए है. चंद महीनों पहले की ही तो बात है. केरल में निपाह वायरस ने ऐसा खौफ मचाया कि लोगों ने केरल जाना बंद कर दिया. यहां तक कि केरल से आनेवाले खाद्य पदार्थ विशेष रूप से फल पूरी तरह से बंद हो गए. उस समय केरल को आर्थिक रूप से किनता नुकसान हुआ होगा, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है.
तेजी से पूरे शरीर को अपने कब्जे में ले लेता है
निपाह एक ऐसा वायरस है, जो मनुष्य के शरीर में प्रवेश करने के बाद बड़ी ही तेजी से पूरे शरीर को अपने कब्जे में ले लेता है. यह वायरस काफी तेजी से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता जाता है. शरीर बुखार से तपने लगते है, जब तक इसका उपचार शुरू हो, तब तक यह वायरस दिमाग में प्रवेश कर जाता है और जल्द ही दिमागी बुखार का रूप ले लेता है. दिमाग में वारसर पहुंचने के बाद यह मरीज को कोमा में पहुंचा देता है और इस स्थिति में व्यक्ति की मौत तक हो जाती है. यह एक संसर्गजन्य रोग है. इसके वायरस एक मरीज से दूसरे व्यक्ति तक तेजी से फैलते है. इस कारण इसका इलाज करने से भी डॉक्टरों में घबराहट थी. सुनने में आया था कि किसी गांव में एक नर्स इस वायरस से पीड़ित एक परिवार की सेवा करते हुए स्वयं इसकी शिकार हो गई और फिर उसकी भी मौत हो गई थी.
चिमगादड़ों से मनुष्य के शरीर में फैलता हे
बताया जाता है कि यह वायरस फ्रूट बैट यानी फल खानेवाले चिमगादड़ों से मनुष्य के शरीर में फैला. पहले चिमगादड़ किसी फल को झूठा करते है. इसके बाद यह फल किसी मनुष्य द्वारा खाए जाने के बाद वह मनुष्य भी इसका शिकार हो जाता है. इसी कारण निपाह की प्रसार होने के बाद कटे-फटे या कुतरे हुए फलों को खाने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई थी. यहां तक कि केरल से बाहर भेजे जानेवाले केले आदि फलों को केरल से बाहर के लोगों ने खाना तक बंद कर दिया था.
इंसान रूप चिमगादड़ भी फैलाते हे निपह वायरस
इसी बीच एक दिन मैं अखबार में निपाह की विभिषिका के बारे में पढ़ते हुए सोच रहा था. फ्रूट बैट के कुतरे हुए फलों को खाने से यह वायरस इंसानों में फैलता है. लेकिन हमारे आस-पास, हमारे पड़ौस में, हमारे ऑफिस में भी कुछ ऐसे ही फ्रूट बैट जैसे इंसान हमें दिख जाते है. जिस प्रकार फ्रूट बैट फलों को कुतर कर हमारे बीच वायरस पहुंचा देते है, ठीक इसी प्रकार कुछ लोग हमारे साथ मीठा-मीठा बोल कर, मीठा-मीठा व्यवहार कर, स्वयं को आपका हितचिंतक बता कर हमें अपने जाल में ऐसे उलझा लेते है कि हम फिर चाह कर भी उसकी इस दिखावटी मिठास से बाहर नहीं आ पाते. कई बार हमें इस बात का एहसास होता है कि सामनेवाला सिर्फ अच्छा व्यवहार करके और मीठा बोल कर हमारी भावनाओं के साथ खिलावाड़ ही कर रहा है, लेकिन चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते और मुस्कुराते हुए, न चाहते हुए भी उस व्यक्ति के उस व्यवहार के जाल में फंसते चले जाते है.
ऐसे काम करते हे इंसान रूपी चिमगादड़
मेरे एक करीबी मित्र ने उसके ऑफिस के एचआर डिपार्टमेंट में काम करनेवाले ऐसे ही एक व्यक्ति के बारे में बताया. मेरे मित्र के अनुसार इन साहब नाम पंकज राव था. पंकज को पता नहीं किस स्कील, किस क्वालिफिकेशन से नौकरी मिल गई. अब नौकरी मिल गई, अच्छा वेतन मिलने लगा, रुतबा बन गया. लेकिन उन्हें सदैव यही डर सताता रहता कि कही किसी दिन उनकी यह नौकरी न चली जाए. इसलिए उन्होंने नया पैतरा अपनाया. उन्होंने सबसे पहले उन लोगों से प्यार से मीठा बोलना शुरू किया, जो उनके हिसाब से उनकी नौकरी के लिए खतरा हो सकते है. मसलन वे लोग जो यह समझते थे कि इन साहब को तो आता-जाता कुछ है नहीं, बेवजह डिपार्टमेंट के लिए सिरदर्द बने हुए है. इन साहब ने अपनी रणनीति के तहत इन लोगों के साथ ज्यादा से ज्यादा उठना-बैठना, उन्हें चाय वगैरह पिलाना शुरू किया. समझ में इन्हें कुछ आता नहीं था, लेकिन फिर भी उन्होंने दूसरों के काम की तारीफ करने लगे. चूकि इन साहब को सिफारिश से नौकरी मिली थी, तो वे अपने उन खतरनाक सहकर्मियों को बॉस के झूठे कमेंट्स सुनाते थे.
शुरू शुरू में तो वे कहते थे कि बॉस आपके काम की खूब तारीफ कर रहे थे, वगैरा-वगैरा. लेकिन कुछ ही दिनों के बाद जब लोग उनकी बातों में आ कर उन पर विश्वास जैसा करने लगे, तो इन साहब ने अपने उन्हीं सहकर्मियों को थोड़ा डराना शुरू कर दिया. जैसे यार आज बॉस तुम्हारे काम के बारे में कुछ कह रहे थे, शायद तुम्हारी रिपोर्ट में कुछ गलती हो गई, लेकिन तुम चिंता मत करो, मैंने सब संभाल लिया है. ऐसी ही कुछ फालतू बाते करके उन्होंने उन सभी सहकर्मियों को अपने वश में कर लिया, जिनसे उन्हें खतरा हो सकता था. ये महाशय यहीं नहीं रुके. इन महाशय ने उन लोगों को भी अपने बॉस से दूर रखा, जो शायद भविष्य में उनकी जगह लेकर उनका अतिक्रमण कर सकते थे. यानी उनके ज्यूनियरर्स. ये महाशय अपने ज्यूनियर्स के कामों में गलतियां निकाल कर उन्हें डॉमिनेट करने लगे. इसका असर ज्यूनियर्स के काम पर पड़ने लगा और फिर कई बार इन ज्यूनियर्स के काम की एकाग्रता भंग होने के कारण उनके कामों में वास्तव में ही गलतियां होने लगी. फिर ये महाशय बॉस से जा कर अपने सहकर्मियों और ज्यूनियर्स के कामों की लापरवाही को लेकर कान भी भरने लगे. अमूमन बड़े-बड़े ऑफिसों में ऐसा ही होता है कि बॉस का करीबी होने का फायदा ऐसे लोग उठाते है और अपने कच्चे कानवाले बॉस के कान भरते रहते है. इसका सीधा-सीधा कारण यह होता है कि ये लोग अन्य कर्मचारी और बॉस के बीच कड़ी बने होते है या फिर जबरदस्ती बन जाते है.
इनके द्वारा अपने सहकर्मियों के साथ मीठा बोलना और मीठा-मीठा व्यवहार करना ठीक उसी प्रकार होता है, जिस प्रकार फ्रूट बैट मीठा फल कुतर कर इंसानों को बीमार कर देते है. ये लोग मीठा बोल कर अपने ही सहकर्मियों के मन में बॉस के प्रति डर पैदा कर उन्हें मानसिक रूप से बीमार कर देते है. कई बार इनके फैलाए डर से लोग इतने त्रस्त हो जाते है कि वे नौकरी छोड़ कर दूसरी जगह जाना पसंद करते है. और यहीं बात इन इंसान रूपी फ्रूट बैट की जीत होती है.
एक बार ट्रेन में सफर करते हुए ऐसे ही एक सज्जन मिले. बेचारे वे भी फ्रूट बैट के निपाह वायरस का शिकार हुए थे. नाम था मिलिंद शर्मा. मिलिंद ने बताया कि मुंबई में वह जिस ऑफिस में पहले काम करता था, वहां एक एचआर डिपार्टमेंट का क्लर्क था, नाम था राजन स्वामी. एक नंबर का मक्कार, शकल और दिल से पूरा काला. उसकी बीबी सांभर लाजवाब बनाती थी और यह सांभर बॉस को काफी पसंद था. बस फिर क्या था, बॉस राजन स्वामी की बीबी के हाथ के बने सांभर में पूरी तरह से भीग गए थे. राजन स्वामी ने इस बात का पूरा फायदा उठाया और बॉस का मुंहचढ़ा बन गया. ऑफिस का स्टाफ भी राजन स्वामी से डरने लगा था, क्योंकि राजन स्वामी जिसके बारे में बॉस से शिकायत कर देते, बॉस भी उस एम्प्लॉई की बात सुनने की बजाय पूरी तरह से उस फायरिंग शुरू कर देते थे. फिर राजन उस एम्प्लॉई के पास जा कर उसे सहलाते-पुचकारते और बॉस से बात करने का शिगुफा फैलाते. कुछ दिन बाद सब कुछ जब नॉर्मल हो जाता, तो उस एम्प्लॉई पर रौब जमाते, कि तुम्हारी तो नौकरी बस जाने ही वाली थी, लेकिन मैंने बॉस से बात करके सब कुछ मैनेज कर लिया है. एक िदन मिलिंद शर्मा को कुछ रिपोर्ट बनाने के लिए दी गई थी. मिलिंद शर्मा और राजन स्वामी का आपस में ज्यादा जमता नहीं था. ऐसे में कुछ रिपोर्ट के कुछ आंकड़े राजन स्वामी ने मिलिंद को गलत बता दिए और परिणाम स्वरूप रिपोर्ट भी गलत हो गई. यह गलत रिपोर्ट जब बॉस के टेबल पर पहुंची, तो उनका पारा चढ़ गया. जब मिलिंद शर्मा ने अपनी सफाई देनी चाही, तो बेचारे को नौकरी से हाथ धोना पड़ा.
पंकज राव, राजन स्वामी जैसे इंसानी फ्रूट बैट लगभग हर ऑफिस में ही पाए जाते है. यदि बॉस नामका प्राणी इन फ्रूट बैट्स के कामों पर गौर करे, तो उनका ऑफिस भी अच्छा चलेगा और शांति बनी रहेगी. अन्य कर्मचारी मेहनत और लगन से काम करेंगे. लेकिन अमूमन बॉस नाम का प्राणी कच्चे कान का होता है और अपने स्टाफ से थोड़ी दूरी बना कर रखना पसंद करता है. इसी का फायदा उठा कर ये इंसानी फ्रूट बैट पूरे ऑफिस में निपाह वायरस फैलाते रहते है और इसका शिकार हो कर अपने कर्मठ कर्मचारी, ईमानदार कर्मचारी या तो मानसिक रूप से बीमार हो कर कुंठित मानसिकता से वहीं पर काम करते रहते है या फिर नौकरी छोड़ देते है.
आप भी ध्यान दीजिए, कहीं आपके ऑफिस में भी तो ऐसा कोई इंसानी फ्रूट बैट तो नहीं? यदि नहीं है, तो आप भाग्यशाली है, और यदि है, तो जरा संभल कर रहिए. कहीं आप निपाह के शिकार न बन जाए.