स्वर्गीय मोहन कुमारी चड्ढा की पुण्य तिथि 24 दिसम्बर पर स्मरण विशेष
ऐ ! कहाँ जा रही हो , क्या ले जा रही सिर पर रख कर ?
कुछ नहीं जनाब , गाय भेंसों का गोबर है… बाड़े से बाहर फेंकने जा रही हूँ !
ऐ सिपाही ! देखो ज़रा यह औरत क्या ले जा रही है ?
( जांचने के बाद )
कुछ नहीं जनाब, मवेशियों का गोबर – मल मूत्र है…
जाने दो इसे. . . .
परिवार के बुजुर्गों से सुनी यह सत्य बातें एकदम फ़िल्मी सी लगती हैं , जिन्हें सोचकर सिरहन सी उठती है, रोंगटें खड़े हो जाते हैं सिर्फ कल्पना करके !
तत्कालीन अखंड भारत का और आज के पाकिस्तान के गुजरात जिले का एक शहर डिंगी . . . .डिंगा…
डिंगा कसबे में साहूकार, महाजनी व व्यापार से जुडा चड्ढा परिवार अपनी प्रतिष्ठा, कार्य प्रणाली से चर्चित रहा है . एक बड़े से बाड़े में सामूहिक परिवार रहन शैली में डिंगी में परिवारों का जमाववाडा रहा करता था. लाहोर से रावलपिंडी जाते समय लगभग 27 किमी दूरी पर डिंगी कस्बा आज के पाकिस्तान की मीठी सौंफ के लिए पहचाना जाता है !
बात उस समय की है है जब अखंड भारत अपने विभाजन की त्रासदी से जूझ रहा था. मुस्लिम आक्रान्ता के विष दिन बा दिन फैलते जा रहे थे. यह तय हो चला था कि जल्दी ही अखंड भारत के टुकड़े होगें. लेकिन डिंगा कसबे में पीढ़ियों से रह रहे हिदू मुस्लिम परिवारों में विश्वास- सहयोग की एक मिसाल कायम थी.
अंग्रेजो के दमन चक्र बढ़ते ही जा रहे थे, जिसके परिणाम लोगों के बीच टूटते हुए विश्वास व आपस में विष तेज़ी के साथ फ़ैल रहा था.
मोहन कुमारी चड्ढा पत्नी श्री लक्ष्मी दास चड्ढा इसी एक बडे से बाड़े में कुछ परिवारों के साथ रहा करती थीं. परिवार प्रमुख श्री लक्ष्मी दास चड्ढा के साथ उस समय उनके पिता श्री सुन्दरदास चड्ढा, माता जी, दई रानी, छोटे भाई श्री लालचंद चड्ढा उनकी पत्नी श्रीमती कृष्णा रानी चड्ढा, श्री रघुबीर चड्ढा, श्री खरातीलाल चड्ढा रहा करते थे. परिवार के सबसे छोटे सदस्य खरातीलाल चड्ढा सक्रीय रूप से व रघुबीर चड्ढा आंशिक रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व जनसंघ के लिए समर्पित थे. परिणाम स्वरुप घर का वातावरण राष्ट्र व हिंदुत्व समर्पित था. घर में अकसर चोरी छिपे, गुप्त क्रांतिकारी बैठकें होती थीं. जिनका परिवार की महिलाओं पर भी प्रभाव रहता था.
मोहन कुमारी चड्ढा अपनी देवरानी श्रीमती कृष्णा रानी चड्ढा के साथ मिलकर बाड़े की महिलाओं , बेटियों को लाठी, तलवार चलाना भी सिखाती थीं. संघ व जनसंघ से जुडा होने के कारण चड्ढा परिवार विष वमन मुस्लिमों व अंग्रेजी हुकूमत के निशाने पर रहता था, लेकिन परिवार की प्रतिष्ठा के कारण सीधे कोई भी कार्यवाही करने से कतराता था.
एक दिन परिवार के छोटे सदस्य खरातीलाल चड्ढा अपने संघी स्वयंसेवकों के साथ बाड़े में गुप्त बैठक कर रहे थे. बैठक ही नहीं किसी सभा को विफल करने के लिए घर में गोपनीय तरीके से देसी बम बनाए जा रहे थे. तभी किसी मुखबिर ने बैठक और बम बनाने की जानकारी अंग्रेजों को दे दी. अंग्रेजी हुकूमत ने जाल बिछाकर बाड़े को चारों तरफ से घेर लिया और घर पर छापा डाल दिया. लेकिन यह सब होने से पहले इन स्वयंसेवकों को भनक लग गई थी. आनन फानन में बचते बचाते सभी क्रांतिकारी सुरक्षित वहां से निकल गए. जल्दबाजी में बम व सामग्री वहीँ घर में छुट गई.
अंग्रेजी हुकूमत को तो बम व बम बनाने की सामग्री ही चाहिए थी ताकि रंगेहान्थ पकड़ कर पूरे परिवार व उनकी शिनाख्त पर आजादी के लिए संघर्ष कर रहे क्रांतिकारियों को पकड़ सके. पुलिस ने घर व बाड़े का कोना कोना खंगालना शुरू किया. उसी दौरान मोहन कुमारी चड्ढा ने स्थिति को भांपते हुए तुरंत जानवरों को चारा डालने वाली एक बड़ी सी टोकरी उठाई. उस टोकरी में बाड़े की गाय भैंसों का गोबर, मल – मूत्र, कूड़ा आदि भर लिया. इसी कूड़े व गोबर के बीच घर में रखे बम व सामग्री को छिपा दिया. हिम्मत के साथ मोहन कुमारी चड्ढा ने यह भरी टोकरी अपने सिर पर रखी और पुलिस के बीच से बाड़े से बाहर जाने लगीं. बम खोजने की फिराक में लगी पुलिस के कप्तान ने मोहन कुमारी चड्ढा को बाहर जाने से रोक दिया और पूछताछ प्रारंभ कर दी.
पुलिस कप्तान गुर्याया – ऐ ! कहाँ जा रही हो , क्या ले जा रही सिर पर रख कर ?
मोहन कुमारी चड्ढा – कुछ नहीं जनाब , गाय भेंसों का गोबर है… बाड़े से बाहर फेंकने जा रही हूँ !
कप्तान को यकीन नहीं हुआ तो उसने अपने सिपाहियों को आदेश दिया – सिपाही ! देखो ज़रा यह औरत क्या ले जा रही है ?
( गोबर को देखकर, डंडा डालकर जांचने के बाद , कुछ नहीं मिलने पर )
सिपाही – कुछ नहीं जनाब, मवेशियों का गोबर – मल मूत्र है…
पुलिस कप्तान – जाने दो इसे. . . .
पुलिस के सामने बेखौफ खड़े रहकर मोहन कुमारी चड्ढा ने विश्वास दिला दिया कि बड़ी सी टोकरी सिर्फ गोबर से भरी हुई है . इसी निडरता के साथ मोहन कुमारी चड्ढा टोकरी ले कर गांव के बाहर चली गईं और उन्होंने सुनसान जगह पर गड्डे में वह सारा मलबा फेंक दिया . तब तक बाड़े व घर की तलाशी जारी रही . अब तक पुलिस यह मानने में मजबूर हो चुकी थी कि मुखबिर की खबर गलत थी और चड्ढा परिवार अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नहीं है .
मोहन कुमारी चड्ढा की इस सुझबुझ , पराक्रम से रघुबीर चड्ढा, खरातीलाल चड्ढा उनके साथियों व परिवार को बचाया जा सका. डिंगा कसबे में बाड़े की मां – बेटियों को लाठी , तलवार सिखाने वाली मोहन कुमारी चड्ढा की यही दबंग छवि विभाजन के बाद भी देखी जाती रही है .
24 दिसम्बर 2014 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. परिवार की प्रभावी मातृ शक्ति को साष्टांग अभिवादन !!
– विशाल चड्ढा 9890874467
( लेखक स्वर्गीय श्रीमती मोहन कुमारी चड्ढा के पौत्र हैं )