जामनेर (तेज़ समाचार प्रतिनिधि ):बुनीयादी विकास के आड मे नेताओ के करप्ट कल्चर का हिस्सा बने ठेकेदारो तथा खनन माफीयाओ के आतंक का साया देश के विभिन्न प्रचुर कुदरती संसाधनो पर साफ़ देखा जा रहा है . शायद हि कोई तहसिल इसका अपवाद रहा होगा जहा कानून को ताक पर रखकर प्रकृति का दोहन नहि किया गया होगा . जामनेर तहसिल मे भी स्थिती इससे अलग नहि है . वाघुर , कांग , सुर , वाकि , सोनई नदीयो समेत प्रकृतिक नालो कि गोद उजाडकर दिनदहाडे रेत , डबर का खनन जारी है वहि कुदरती टीलो से मुरुम उत्खनन के लिए ठेकेदारो ने आधिकारीक प्लैंट हि लगवा लिए है .
सुत्रो के मुताबीक सबसे ज्यादा रेत कि मांग गिरना नदी कि होती है जहा प्रशासन द्वारा निलामी प्रक्रिया के लंबीतावस्था के चलते उत्खनन पर बैन के बावजूद रात के सन्नाटे मे रेत कि ढूलायी जारी है . नदीयो को छलनी करने के क्रम मे नदी पात्रो मे बनाए गए गहरे गड्ढो मे हुए जलजमाव का आंकलन न हो पाने के कारण 23 सितंबर गणेश विसर्जन के दौरान मनीष दलाल 37 इस युवक को पलासखेडा नदी पात्र मे बने गोल मे डूबकर अपनी जान गंवाना पडी है . इस हादसे के लिए आखिर किसे जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए इस के बारे मे स्पष्ट लिखने कि कोई आवश्यकता नहि है . शहर मे सुनामी कि तेजी से चल रहे विकास को लेकर जहा आम लोग संतोष व्यक्त कर रहे है वहि इस विकास के लिए पनपे खनन माफीया कल्चर वाली निती कि जमकर आलोचना भी कि जाने लगी है . प्रशासन कि बात करे तो वह केवल कागजी खानापुर्ती करने वाला अधिकार शून्य ( कार्रवायी को लेकर ) तयशुदा महकमा सा बन गया है .
मिडीया मे कुछ दिन खबरे चलती है फीर बाद मे सब कुछ जस का तस या यू कहे कि इन विषयो को लेकर केवल मिडीया कि संजीदगी हि जनता कि आवाज को बुलंद करने मे तत्परता निभाती है . अब तक ना सत्तापक्ष ना विपक्ष और ना कोई पर्यावरण वादी NGOs वगैराह अपना दायित्व निभाने सडको पर उतरते दिखायी पडे है . खनन प्रक्रियाओ से जुडे पूरे मामले मे उच्चस्तरीय जांच कि उठती मांग आम लोगो मे दोहरायी जा रहि है .