नई दिल्ली ( तेजसमाचार प्रतिनिधि ) – नोबेल शांति पुरस्कार से सम्माानित कैलाश सत्यार्थी के जीवन और संघर्ष पर बनी डॉक्यूृमेंट्री द प्राइस ऑफ फ्री को अब तक पच्चास लाख से अधिक दर्शकों ने देखा. इस डॉक्यूृमेंट्री द प्राइस ऑफ फ्री को यू-ट्यूब पर देखने वालों कि लगातर संख्या में इजाफा हो रहा है.
विगत 27 नवम्बर 2018 बुधवार को द प्राइस ऑफ फ्री डॉक्यूृमेंट्री को यू-ट्यूब ने दुनियाभर में रिलीज कर दिया था. गौरतलब है कि 93 मिनट की यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म नोबेल विजेता की अगुवाई में हो रहे रेड एंड रेस्क्यू ऑपरेशंस को लाइव दिखाते हुए आगे बढ़ती है.
कैलास सत्यार्थी का जन्म 11 जनवरी 1954 को मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में हुआ था. उनका वास्तविक नाम कैलास शर्मा था, जिसे उन्होंने आगे चलकर सत्यार्थी कर लिया. कैलास सत्यार्थी भारतीय बाल अधिकार और शिक्षा वकील और बाल मजदूरी के खिलाफ लड़ने वाले कार्यकर्त्ता है. उन्होंने 1980 में बचपन बचाओ आन्दोलन की स्थापना की थी. जो बच्चों को बंधुआ मजदूरी और तस्करी से बचाने के काम में लगी है. कैलास सत्यार्थी राष्ट्रिय ही नही बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाल कामगारों से काम कराने का विरोध करते है.
कैलाश सत्यार्थी ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से बाल अधिकारों की रक्षा और उन्हें और मजबूती से लागू करवाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया. देश भर में आन्दोलन चलते हुए उन्होंने 80 हजार बाल श्रमिकों को मुक्त कराया और उन्हें जीवन में नयी उम्मीद दी. ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के रूप में उनकी संस्था लोगों के बीच में काफी लोकप्रिय है.
नोबेल विजेता ने कैलाश सत्यार्थी ने इस फिल्म को सभी से देखने की गुजारिश करते हुए कहा कि वह एक ऐसी दुनिया के निर्माण में हमारा सहयोग करें, जहां सभी बच्चे अपने बचपन के साथ स्वतंत्र, स्वस्थ, सुरक्षित और शिक्षित हों. द प्राइस ऑफ फ्री फिल्म के निर्देशक डेरेक डोनेन कहते हैं, ‘कैलाश के जीवन और संघर्षों को जानने के बाद मैं इतना अभिभूत हुआ कि उससे मैं उन पर फिल्म बनाने को प्रेरित हो गया. यह फिल्म कैलाश के साहसिक अभियानों की कहानी कहती है, जो कई लोगों के लिए असंभव लग सकती है.
कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) का इस फिल्म को देश के हजारों स्कूलों और कॉलेजों में दिखाने का इरादा है, ताकि बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के प्रति लोग जागरूक हो सके. फिल्म उन चुनौतियों को भी पेश करती है, जिनका सामना बाल अधिकार कार्यकर्ताओं को बच्चों को गुलामी के दलदल से मुक्त कराने के दरम्यान करना पड़ा. यह दर्शकों को बाल मजदूरी और दासता के दलदल में फंसे लाखों बच्चों की दुर्दशा को समझने में मदद करेगी. फिल्म के मैसेज से प्रेरित होकर लोग समाज और दुनियाभर में बदलाव की वकालत को अग्रसर होंगे, जिससे बच्चों के खिलाफ इन अपराधों को रोकने में मदद मिलेगी.