– केकी मूस की पुण्यतिथि पर विशेष –
वर्ष २००७ में दिल्ली से वापिस लौटने के बाद मुझे पत्रकारिता करते समय खानदेश के एक बडे सितारे के बारे में पता चला । गुमनामियों में लगभग खो चुके इस सितारे के बारे में जानकार हैरत हुई की वह अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का उत्कृष्ट कलाकार था । लेकिन यह नाम शायद समाज के किसी बडे परिचित तबके से ना आने के कारण आज भी बहुत अधिक चर्चा में नहीं है । महाराष्ट्र सरकार ने थोडा बहुत अपना दायित्व पुरा किया होगा, स्थानीय कलाप्रेमी, जलगाँव के कुछ निजी संस्थान इस महान केकी मुस के नाम को जारी रखने का प्रयास कर रहे हैं । किन्तु राष्ट्रिय स्तर पर केकी मुस के लिए बहुत कुछ नहीं देखा जा रहा । इस बात से खानदेश के कला प्रेमी अच्छे खासे खफा हैं. वर्ष २००७ में केकी मुस ट्रस्ट, चालीसगांव के सचिव कमलाकर सामंत के माध्यम से म्युजिम पर फोटोग्राफी करने, केकी मुस की सहेज कर रखी वस्तुओं को देखने और कला के उस महान साधक द्वारा बिताये गए यादगार पलों को वहां ठहर कर महसूस करने का अवसर प्राप्त हुआ । उसी समय मैंने केकी मुस पर कुछ लिखा था , जो अब पुराने पन्ने उलटते समय सामने आ गया । वैसे तो दैनिक भास्कर में रहते हुए मैंने केकी मुस पर कई बार लिखा , किन्तु यह वो शब्द थे जो मैं केकी मुस की इबादतगाह से लौट कर लिख सका …। ( विशाल चड्ढा )
केकी मूस एक स्मरण…
वर्ष १९२०, खान्देश की झुलसा देने वाली गर्मी की वो असहनीय गर्म रात माणेक जी फ्राम जी मूस, उनकी धर्मपत्नी और आठ वर्ष के नन्हे बालक को चालीसगांव रेलवे स्टेशन पर छोडकर रेल गाडी खामोशी को कर्कश आवाज से चीरती हुई गई।
मुंबई जैसे चकाचौंध भरे शहर को छोडकर चालीसगांव जैसी छोटी जगह नन्हे बालक को रास नहीं आई। और माणेक जी मूस को, नन्हे बालक की मुंबई के मलबार स्थित अपने घर जाने की जिद्द ने उसे वापिस मुंबई भेजन पर मजबूर कर दिया।
बहुत ही जिद्दी स्वभाव का वह नन्हा बालक कै खुस्त्रु मूस उर्फ केकी..! जितना जिद्दी उतना ही शांत, प्रकृति के हर निर्णय को सहजता से स्वीकार करने वाला..!
मैट्रिक, उसके बाद मुंबई के विख्यात विल्सन कालेज से प्रथम श्रेणी में उच्च शिक्षा पूर्ण कर केकी के सामने आगे क्या? का प्रश्न न था, क्योंकि मुंबई के प्रसिद्ध बिल्डिंग कान्ट्ररेक्टर के रूप में केकी के मामा प्रतिष्ठा रखते थे। केकी ने सामने मामा के पारंपारिक व्यवसाय कन्स्ट्रक्शन को अपना कर अपार धन व सफलता पाने का सुनहरा मौका था, लेकिन केकी ने तो अपना मार्ग पहले ही चुन रखा था। उसे तो एक कलाकार एक चित्रकार बनना था। लेकिन पारिवारिक दबाव के चलते उसे मामा के साथ जुडना पडा। अपने कलाप्रेम के चलते मन कहीं और तन कहीं की स्थिती के कारण केकी कन्स्ट्रक्शन व्यवसाय के साथ न्याय न कर सका और जिसके चलते उसे अपनी कला का अपमान सहना पडा। एक उत्कृष्ट चित्रकार की जगह केकी को तुच्छ व नीचा दिखाने की चेष्टा अब केकी के लिए आदत सी बन गई थी।
दुर्भाग्यवश १९३५ में केकी के पिता का निधन हो गया। जीवन में अक्षरशः तूफान सा आ गया। अस्थिरता व जिम्मेदारियों के सामने, मुंबई रहकर जे जे स्कूल ऑफ आर्ट का कला शिक्षण शुरू रखा जाये ऐसा केकी का लगता था.. लेकिन ’मम्मा’, केकी की मां का आग्रह था कि केकी चालीसगांव स्थित पिता का व्यवसाय संभाले, अनंत केकी को चालीसगांव लौटना ही पडा। मां की इच्छा से चालीसगांव लौटे केकी ने मम्मी की ही सहमति से इंग्लैड के शेफिल्ड बॅनेट कॉलेज में कला का अध्ययन करने का निर्णय किया और अपनी प्रतिभा से एक के बाद कई पुरस्कार प्राप्त किए। केकी के भीतर पनप रहे कला के चरम व सृजनात्मक को नये आयाम मिलने लगे और उन पर कमर्शियल डिझाइनिंग क्षेत्र में पुरस्कारों की झडी लग गई। उनकी इस कलात्मक सोच व कलात्मक समर्पण के चलते केकी को ग्रेट ब्रिटेन की रायल सोसायटी ऑफ आर्ट का ऑनररी मेंबर होने का सम्मान भी प्राप्त हुआ।
चित्रकला के साथ-२ फोटोग्राफी में भी अकल्पनीय पकड होने के कारण यह कलाकार, कलासम्राट के रूप में पहचाना जाने लगा।
इंग्लैड की अपनी शिक्षा खत्म करके केकी भारत वापिस आ गए।
बचपन से ही पसंद चित्रकारी अब केकी के हाथों से तरह-तरह के आकार लेने लग गई। उन विभिन्न प्रकार के चित्रों की चित्रकारी के लिए विशेष प्रकार का कागज आयात करना पडता था। परंतु द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के कारण वो विशेष कागज मिलना बंद हो गया। किन्तू केकी ने निराश न होते हुए टीन के टुकडों पर अपनी कला बनाना जारी रखा। कला के प्रति उनकी लागन के परिणामस्वरूप विश्वस्तरिय उत्कृष्ट कलाकृतियां ’’ग्रीडी लेपर्डस’’, उमरख्याम, स्टार्मी व्हीदर नेचर, शेक्सपीयर्स कॉटेज और न जाने कितने अनमोला पोर्टेटस् का निर्माण हुआ। सम्पूर्णता सजीवता एवं रंगो का चयन केकी के हाथों से सहज की झलकता था।
कूची और रंगो को सिद्धहस्त इस कलाकार की उतनी ही बारीक व तीक्ष्ण नजर फोटोग्राफी पर भी थी। कैमरा कोई भी हो यह महत्वपूर्ण नहीं camera is not Important, The eye behind camera is important. यह कहने वाले ’केकी’ की सोच उनके प्रत्येक फोटोग्राफ में झलकती है। स्टिल लाईफ, नेचर एवं मिसलेनियम फोटोग्राफी पर उनका प्रभुत्व था। टेबलटॉप फोटोग्राफी अर्थात सबसे अधिक कठिन समझी जानेवाली फोटोग्राफी, केकी के लिए सृजनात्मक एवं सर्वाधिक मनपसंद फोटोग्राफी का स्थान रखती थी।
पिछले पचास वर्षो में भारत में दो फोटोग्राफर्स ने ही इस प्रकार की फोटोग्राफी को सफल अंजाम दिया, उनमे से एक थे स्वर्गीय श्री जे. एन. ऊनवाला और दुसरे केकी मुस। अप्रतिम कल्पना शक्ति एवं प्रत्यक्ष सें सीधा साक्षात्कार, गहरी प्रकाश योजना की समझ व बेजोड कला निर्माण क्षमता का सही तालमेल, टेबलटॉप फोटोग्राफी को परिणाम कारक बनाता है।
केकी मूस द्वारा टेबल टॉप फोटोग्राफी की अनमोल व उत्कृष्ट कलाकृति के रूप में अनंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त ’विन्टर’, मार्निंग, स्पील्ट मिल्क, पद्द्मनी, ब्रेगर विदाऊट Anise o master आदि मास्टर पीस मान जाते हैं। केकी मूस की विश्व प्रसिद्ध टेबलटॉप फोटोग्राफी और कला की ख्याती सुनकर तो पंडित जवाहर नेहरू भी अपने कदम न रोक सके। और स्वयं चलकर आए। मात्र २० मिनट का समय लेकर केकी के पास आए पंडित नेहरू केकी से इतने प्रभावित हुए कि अगला ढाई घंटा उनके घर कहां बीत गया यहा उन्हें पता ही नहीं चला। आज भी संसद के गलियारों में केकी द्वारा तैयार किया वो पोर्ट्रेट विद्यमान है जिसके बारे में पं. नेहरू का कहना था कि केकी जैसे महान चित्रकार फोटोग्राफर ने ही अब तक नेहरू के अतः चरित्र को पहचान कर वो सम्पूर्णता फोटो में उकेरी है। नेहरू के द्वारा मुक्त कठं से प्रशंसा केकी के कला में डूब जाने के भाव को उजागर करती है। टेबलटॉप फोटोग्राफी के लिए लगने वाले संसाधन, विविध मॉडल, कलाकृतियां, मूर्तिकला, नक्काशीदार लकडी कार्य, मिट्टी कार्य, क्राफ्ट-पेपर कटिंग यह सारी कलायें व निर्माण, केकी स्वयं ही किया करते थे। उन्होंने लकडी, मिट्टी के आदि के सफल प्रयोग व सिद्धहस्ता से लगभग ५००० से अधिक कलाकृतियों का निर्माण किया, आश्चर्य की बात तो यह है कि सभी कृतियां अपने आप में भिन्न व निराली हैं। इससे उनकी कला के बहुआयामी चरित्र का गुण स्पष्ट होता है। केकी मूस की कलासम्राट बाल गंधर्व, दि विच , ग्रेट ब्रिटेन रायल सोसायटी द्वारा सम्मानित ’बालम पोर्टर’, भारती, पूर्णिमा, डा.कर्वे, सोबिल, ब्युटी एण्ड ए बीस्ट जैसी चर्चित फोटोग्राफी में भावना, वास्तविकता लाईट इफेक्टस का संयोजन एवं कलात्मकता की गहराई का अहसास होता है। उनकी ’ रायडर ’ एवं ’ थर्स्टी ’ फोटोग्राफी को विश्वप्रसिद्ध कोडेक फोटो कंपनी ने विश्व स्तर पर प्रथम व द्वितीय पुरस्कार प्रदान किए।
केकी स्वयं एक उत्तम सितारवादक भी थे। पंडित फिरोज फरून जी, प्रा. नासिर खान व उस्ताद दिन महम्मद खान यह सब उनके संगीत गुरू थे। अपने मनपसंद जोगिया राग के वादन में तो केकी खुद ही जोगी बन जाते थे। संगीत के साथ-साथ पढने की उनकी रूचि, उनके ४००० से अधिक पुस्तकों के संग्रह से स्पष्ट हो जाती है।
गंभीर स्वभाव के रूप में पहचाने जाने इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री सर विल्यिम चर्चिल का सिगार छीन कर उनकी फोटो लेने वाले निर्भिक इस फोटोग्राफर को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने स्वयं सम्मानित किया।
भारत के अनके मान्यवरों से केकी की निकटता थी। पं. जवाहरलाल नेहरू, विनोबा भावे, बाबा आमटे, जयप्रकाश नारायण, साने गुरूजी, पं. महादेव शास्त्री जोशी, माननीय अन्नासाहब कर्वे, एच.एन.आपटे, प्रा. एन.सी.फडके, श्री एम.माटे, आचार्य अत्रे आदि ने समय-समय पर केकी मूस की मुक्त कंठ से प्रशंसा की।
फोटोग्राफिक सोसायटी ऑफ इंडिया के ’सर इब्राहिम रहिमतुल्ला मेमोरियल शील्ड’ के विजेता रहे केकी को इंग्लैण्ड की दि रायल फोटोग्राफिक सोसायटी ने आजीवन सदस्यता ने सम्मानित किया।
सातवां पी एस आय ऑल इंडिया फोटो प्रदर्शनी का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार, बेलगांव फाईन आर्ट एक्जवीश बैंगलोर में गोल्ड मेडल, कैमेरा आर्ट फैकल्टीज ऑफ इंडिया की सदस्यता इंडियन फोटोग्राफी एण्ड सिनेमैटोग्राफी बैंगलोर के ब्ल्यू रिबन सर्टीफिकेट और न जाने तीन सौ से अधिक मान सम्मान, पुरस्कारो से सुशोभित प्रचंड कलपना से पूर्ण इस कलाकार पर महाराष्ट्र राज्य साहित्य एवं सांस्कृतिक मंडल द्वारा केकी मूस लाईफ एण्ड स्टिल लाईफ ए पोर्टफोलियो ऑफ केकी मूस, नाम की पुस्तके भी प्रकाशन की है।
जीवन के ४८ के वर्ष घर से बाहर न निकल कर भीं केकी ने अपनी विभिन्न कलाओं में निसर्ग व विश्व की जिस सजीवता को प्रदर्शित किया है वो अकल्पनीय है। विलक्षण प्रतिभा से भरपूर ऐसे लोग यदा कदा ही धरती पर आते है। अपने उतार आने देनेवालें ऐसे कलाकार को महायोगी नहीं तो और क्या कहेंगे।
मां के निधन ने तो केकी को झकझोर दिया। संसार में अपने अकेलापन का दर्द, ममता के अभाव का अहसास जवान केकी को भी बालक बना बैठा। केकी के शब्दो में
मम्मा का जाना मेरे जीवन की सबसे बडी घटना… मैं सबक-सबक कर रोया, फांसी दिए जा रहे कैदी की वो अवस्था न होगी जितने जोर से मैं रोया.. उस दिन मेरी सारी कलाकृति फोटोज् पुतले रो रहे थे.. अगर कहूं तो मैं उस दिन बच्चा हो गया था.. मेरा कोई नहीं बचा.. मुझे पता है कभी तो मेरे जीवन नाटक का भी पर्दा पडेगा। तब शायद कोई रोने वाला न होगा। मेरे छायाचित्र, कलाकृतियां, मेरे बनाये पुतले फिर एक बार मूक कुंदन करेंगे….!
१९५४ के बाद में जब प्रतियोगिताओं के लिए छायाचित्र भेजना बंद कर दिया तब उनके प्रशंसक हायकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश श्री धर्माधिकारी ने उनसे पुछा तो केकी के अनायास शब्द थे..
’’ देखिए, इसी साधना में आजतक ’’
मेरा तो लूटा खजाना सारा…
किन्तू ना मंज़िल मिली…
मिली तो लाश मिली अरमानो की..
कौन जानता था कि आरमानो की जलती चिता की आग में एक अनमोल रत्न, ’कला का साधक ’ यूं ही गुमनामी के अंधेरो में खो जायेगा।
३१ दिसंबर १९८९ का वो दिन, कला साधना और गुमनामी में खोये उस ’ध्रुव तारे’ के पंचतत्व में विलीन हो जाने का दिन.. आज सिर्फ शेष है तो सिर्फ अमरत्व की रोशनी….
सादर नमन
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