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राज को राज बनाये रखना

Tez Samachar by Tez Samachar
February 13, 2020
in Featured, विविधा
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राज को राज बनाये रखना
एक राजा था। एक दिन वह अपने दरबार में मंत्रियों के साथ कुछ सलाह–मश्वरा कर रहा था। तभी एक चोकीदार ने आकर कहा कि.. पडोसी राज्य से एक मूर्तिकार आया है और महाराज से मिलने की आज्ञा चाहता है। राजा ने आज्ञा दे दी।
थोडी देर में मूर्तिकार दरबार में हाजिर किया गया। वह अपने साथ तीन मूर्तियाँ लाया था, जिन्हें उसने दरबार में रख दिया। उन मूर्तियों की विशेषता थी कि तीनों अत्यंत सुंदर और कलात्मक तो थीं ही, पर एक जैसी दिखती थीं और बनी भी एक ही धातु से थीं। मामूली सवाल-जवाब के बाद राजा ने उससे दरबार में प्रस्तुत होने का कारण पूछा।
जवाब में मूर्तिकार बोला.. “राजन! मैं आपके दरबार में इन मूर्तियों के रूप में एक प्रश्न लेकर उपस्थित हुआ हूँ, और उत्तर चाहता हूँ। मैने आपके मंत्रियों की बुद्धिमत्ता की बहुत प्रशंसा सुनी है। अगर ये सच है तो मुझे उत्तर अवश्य मिलेगा।“
राजा ने प्रश्न पूछने की आज्ञा दे दी। तो मूर्तिकार ने कहा.. “राजन! आप और आपके मंत्रीगण मूर्तियों को गौर से देखकर ये तो जान ही गये होंगे कि ये एक सी और एक ही धातु से बनी हैं। परंतु इसके बावजूद इनका मुल्य अलग-अलग है। मैं जानना चाहता हूँ कि कौन सी मूर्ति का मूल्य सबसे अधिक है, कौन सी मूर्ति सबसे सस्ती है, और क्यों?”
मूर्तिकार के सवाल से एक बार तो दरबार में सन्नाटा छा गया। फिर राजा के इशारे पर दरबारी उठ-उठ कर पास से मूर्तियों को देखने लगे। काफी देर तक किसी को कुछ समझ न आया। फिर एक मंत्री जो औरों से चतुर था, और काफी देर से मूर्तियों को गौर से देख रहा था, उसने एक सिपाही को पास बुलाया और कुछ तिनके लाने को कह कर भेज दिया। थोड़ी ही देर में सिपाही कुछ बड़े और मजबूत तिनके लेकर वापस आया और तिनके मंत्री के हाथ में दे दिये। सभी हैरत से मंत्री की कार्यवाही देख रहे थे।
तिनके लेकर मंत्री पहली मूर्ति के पास गये और एक तिनके को मूर्ति के कान में बने एक छेद में डाल दिया। तिनका एक कान से अंदर गया और दूसरे कान से बाहर आ गया, फिर मंत्री दूसरी मूर्ति के पास गये और पिछली बार की तरह एक तिनका लिया और उसे मूर्ति के कान में बने छेद में डालना शुरू किया.. इस बार तिनका एक कान से घुसा तो दूसरे कान की बजाय मूर्ति के मुँह के छेद से बाहर आया, फिर मंत्री ने यही क्रिया तीसरी मूर्ति के साथ भी आजमाई इस बार तिनका कान के छेद से मूर्ति के अंदर तो चला गया पर किसी भी तरह बाहर नहीं आया। अब मंत्री ने राजा और अन्य दरबारियों पर नजर डाली तो देखा राजा समेत सब बडी उत्सुकता से उसी ओर देख रहे थे।
फिर मंत्री ने राजा को सम्बोधित कर के कहना शुरू किया और बोले… “महाराज! मैने मूर्ति का उचित मुल्य पता कर लिया है।“ राजा ने कहा… “तो फिर बताओ। जिससे सभी जान सकें।“
मंत्री ने कहा… “महाराज! पहली मूर्ति जिसके एक कान से गया तिनका दूसरे कान से निकल आया उस मूर्ति का मूल्य औसत है। दूसरी मूर्ति जिसके एक कान से गया तिनका मुँह के रास्ते बाहर आया वह सबसे सस्ती है। और जिस मूर्ति के कान से गया तिनका उसके पेट में समा गया और किसी भी तरह बाहर नहीं आया वह मूर्ति सर्वाधिक मूल्यवान बल्कि बेशकीमती है।“
राजा ने कहा… “ किंतु तुमने कैसे और किस आधार पर मूर्तियों का मूल्य तय किया है यह भी बताओ।“
मंत्री बोले… “महाराज! वास्तव में ये मूर्तियाँ तीन तरह के मानवी स्वभाव की प्रतीक है। जिसके आधार पर मानव का मूल्याँकन किया जाता है। पहली मूर्ति के कान से गया तिनका दूसरे कान से बाहर आया; ये उन लोगों की तरफ इशारा करता है जिनसे कोई बात कही जाय तो एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देते हैं, ये किसी काम के नहीं होते, यद्यपि ये किसी बात को गंभीरता से नहीं लेते पर इनमें इधर की बात उधर करने का अवगुण भी नहीं होता सो इनका मूल्य औसत है।
दूसरी मूर्ति जिसके कान से डाला गया तिनका मुँह के रास्ते बाहर आया; वह उन लोगों का प्रतीक है जो कोई बात पचा या छिपा नहीं सकते, चुगलखोरी, दूसरों की गुप्त बातों को इधर-उधर कहते रहने के कारण ये सर्वथा त्याज्य होते हैं, ऐसे लोगों को निकृष्ट और सबसे सस्ता कह सकते हैं। अतः दूसरी मूर्ति सबसे सस्ती है।
अब रही तीसरी मूर्ति जिसके कान में डाला गया तिनका पेट में जाकर गायब हो गया ये उन लोगों का प्रतीक है, जो दूसरों की कही बात पर ध्यान तो देते ही हैं साथ ही दूसरों के राज को राज बनाये रखते हैं। ऐसे लोग समाज में दुर्लभ और बेशकीमती होते हैं। सो तीसरी मूर्ति सबसे मूल्यवान है।“
राजा नें मूर्तिकार की ओर देखा। मूर्तिकार बोला… “महाराज! मैं मंत्री महोदय के उत्तर से संतुष्ट हूँ.. और स्वीकार करता हूँ कि आपके मंत्री सचमुच बुद्धिमान हैं। उनका उत्तर सत्य और उचित है। ये मूर्तियाँ मेरी ओर से आपको भेंट हैं। इन्हें स्वीकार करें। और अब मुझे अपने राज्य जाने की आज्ञा दें।“
राजा ने मूर्तिकार को सम्मान सहित अपने राज्य जाने की आज्ञा दे दी और अपने मंत्री को भी इनाम देकर सम्मानित किया।
सादर/साभार
सुधांशु
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