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संघर्षमय जीवन के साथ नारी संघर्ष की पहचान बनी खुखरायण कमला भसीन

दक्षिण एशिया में नारीवाद के लिए सदैव रही अग्रेसर !

Tez Samachar by Tez Samachar
February 1, 2023
in Featured, महिला जगत
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संघर्षमय जीवन के साथ नारी संघर्ष की पहचान बनी खुखरायण कमला भसीन

अखंड भारत से बंटवारे के दौरान भारत में आकर बस गए खुखरायण समाज की हमेशा से संघर्ष भरी दास्तान रही है ! तरक्की व ऊंचाइयों के साथ राष्ट्र निर्माण व समाज को दिशा देने में खुखरायण लोगों का हमेशा से अग्रसर योगदान रहा है . इन्ही में से दक्षिण एशिया में नारीवाद आंदोलन  को खड़ा करके शोषित, उपेक्षित व पीड़ित महिला वर्ग की आवाज बनकर खुखरायण कमला भसीन ने एक मिसाल कायम की .

कमला भसीन का जन्म पाकिस्तान के गुजरांवाला जिले के शहीदांवालियाँ में 24 अप्रैल 1946 में हुआ था . इसके तुरंत बाद विभाजन होने के कारण वह स्वयं को आधी रात की संतान कहती थी. विभाजन के उपरांत उनके पिता को राजस्थान के भरतपुर में नौकरी मिल गई. पेशे से डॉक्टर उनके पिता के साथ उनका पूरा परिवार भी भारत आ गया . छोटे से ग्रामीण इलाकों में कमला भसीन  का बचपन प्रारंभ हुआ. आगे की स्कूली शिक्षा व स्नातक शिक्षण के लिए कमला भसीन जयपुर आ गई, उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा को पूरा किया . कमला भसीन ने वर्ष 1967 में अर्थशास्त्र से अपना परास्नातक शिक्षण पूरा करने के उपरांत आगे के शोध कार्यो के लिए जर्मनी जाने का निर्णय लिया. फेलोशिप के लिए कमला भसीन जर्मनी चली गईं, जहां म्यूएनस्टर विश्वविद्यालय से उन्होंने डेवेलपमेंट स्टडीस पर आगे की पढ़ाई की. उन्होंने जर्मनी से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वहीं नौकरी भी की. कमला जर्मन फाउंडेशन फॉर डेवलपिंग कंट्रीज के ओरिएंटेशन सेंटर में शिक्षिका की नौकरी करने लगी.

शिक्षण पूरा करने के उपरांत भारत लौटकर कमला भसीन ने उदयपुर के एक स्वयं सेवी संगठन सेवा मंदिर में कार्य करना प्रारंभ किया. खुखरायण कमला भसीन का बचपन राजस्थान के गावों में बीता था इसी लिए ग्रामीण संस्कृति से उनका जुड़ाव उनके बचपन की देन ही रहा . उन्होंने ग्रामीण परिवेश की महिलाओं की समस्याओं को काफी करीब से देखा. उनका व्यक्तित्व बहुत सहज था, वह धनाड्य व् प्रभावशाली नारीवादियों से थोड़ी अलग और अधिक संवेदनशील थीं.

इस दौरान उन्होंने पानी, बाल विकास, प्रौढ़ शिक्षा आदि मुद्दों पर खुलकर कार्य करना प्रारंभ किया. सामजिक जीवन के दौरान ही उनकी मुलाकात पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता रहे बलजीत मलिक से हुई. कमला भसीन और बलजीत मलिक ने 70 के दशक में विवाह कर लिया और वह दिल्ली आ गए . दिल्ली में कमला भसीन के सामाजिक कार्यों को और अधिक निखार मिलने लगा. ग्रामीण समस्याओं, महिला उत्पीड़न, अशिक्षा, जल समस्या आदि को करीब से देखने वाली कमला भसीन ने अपने मस्तिष्क में नारीवाद को पूरी तरह से बैठाते हुए इन मुद्दों पर कार्य करना प्रारंभ कर दिया. सत्तर के दशक में जब पूरे भारत में नारीवादी प्रश्न खड़े हो रहे थे, जब महिलाओं के सुरक्षा और अधिकारों को लेकर, आन्दोलनों का दौर शुरू हो रहा था. उसी दौर में स्त्री-विमर्शों को और महिला आन्दोलन को कमला भसीन के रूप में एक नई आवाज मिली. 1975 में पार्लियामेंट्री कमेटी की रिपोर्ट ‘स्टेटस ऑफ विमन इन इंडिया’ से शुरू हुआ उनका सफर मथुरा रेप केस, दहेज हत्या के खिलाफ आंदोलन, बलात्कार कानून में संशोधन की मांग तक निरंतर चलता रहा. कमला भसीन ने साथियों के साथ मिलकर महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले के प्रख्यात मथुरा बलात्कार मामले में जो आन्दोलन किये, उन महिला आन्दोलनों की तीव्रता देखते हुए न्याय पालिका को बलात्कार मुद्दे पर कानून की परिभाषा तक बदलनी पड़ी.  आदिवासी लड़की मथुरा के साथ हुए कुकर्म को अदालत ने सहमती सम्बन्ध की परिभाषा में व्याखित किया था.  कमला भसीन व् साथियों के आन्दोलन के बाद ही जबरन सम्बन्ध की परिभाषा को बलात्कार श्रेणी में रखा गया.

इसी दौरान कमला भसीन ने खाद्य और कृषि संगठन के साथ काम करना शुरू किया, जहाँ पर वह महिलाओं की दशा को लेकर गंभीर होने लगी थीं. वह दक्षिण एशिया की महिलाओं को जेंडर ट्रेनिंग देने के लिए थाईलैंड चली गईं. यहां से महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए कमला भसीन सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में प्रख्यात होने लगी. उन्होंने दक्षिण एशियाई देशों के मुद्दों को उठाने का कार्य किया. कमला भसीन को ना सिर्फ भारतीय नारीवाद का प्रमुख चेहरा माना गया बल्कि दक्षिण एशियाई नारीवादी आन्दोलनों को भी ऊंचाई देने में उनकी भूमिका अग्रणी थी. कमला भसीन लैंगिक समानता, शिक्षा, गरीबी-उन्मूलन, मानवाधिकार और दक्षिण एशिया में शांति जैसे मुद्दों पर 1970 से लगातार सक्रिय रही थीं.

खुखरायण समाज के जुझारू, मिलनसार, मस्तमौला, परोपकार, नेतृत्व जैसे सभी गुण कमला भसीन में मौजूद थे. कमला भसीन का व्यक्तिगत जीवन भी कम संघर्षमय नहीं रहा.  पितृसत्ताव् नारी आजादी क लिए सड़कों पर आवाज़ बनती कमला का वैवाहिक जीवन सुखमय न रह सका.  प्रारंभिक विवादों को नकारते हुए कमला भसीन ने लगभग तीन दशक अपने पति बलजीत मालिक के साथ गुजारे.  इस दौरान उनके एक बेटा नीत कमल व् एक बेटी मीतो भी हुए.  उनके बेटे को बचपन में ही वैक्सीन के रिएक्शन के कारण स्वास्थ्य समस्याएं हो गईं थीं. उसे सेरेब्रल पाल्सी हो गया. इस घटना के कारण कमला दुखी रहने लगीं.  घर में बढ़ते तनाव के चलते बलजीत मालिक हिंसक होने लग गए .  अंततः बलजीत मलिक ने कमला भसीन को तलाक दे दिया. इस दौर में उनकी 27 वर्ष की बेटी मीतो ही उनका एक मात्र सहारा थी. जो बेटी कम, दोस्त ज्यादा थी. मीतो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में इतिहास की पढ़ाई कर रही थी, लेकिन घर के हालातों के कारण मीतो डिप्रेशन में चली गई. क्लिनिकल डिप्रेशन से परेशान मीतो ने दवाई भी लेना बंद कर दिया था और अंत में साल 2006 में नीतो ने आत्महत्या कर ली. बेटे नीत कमल के साथ कमला दिल्ली में रहा करती थीं.

अपने पारिवारिक संघर्षमय जीवन के बावजूद कमला भसीन नारी उत्थान के लिए हमेश संघर्षरत रहीं. भारत और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में नारीवादी आंदोलन की प्रमुख आवाज़ बनकर उभरीं खुख्रायन कमला भसीन ने वर्ष 2013 में, कमला भसीन ने संगत साउथ एशियन फेम्निस्ट नेटवर्क की महिला अधिकार कार्यकर्ता आभा भैया के साथ मिलकर ‘वन बिलियन राइजिंग अभियान’ की शुरुवात की.  विश्व स्तर पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए अमेरिकी नाटककार ईव एन्सलर के साथ मिलकर बनाए गए वन बिलियन राइजिंग अभियान में विरोध के अलग तरीकों को प्रमुखता डी गई. इनमें स्ट्राइक, डांस, राइज के माध्यम सी विश्व भर में वी डे पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए आन्दोलन किये जाते हैं.

वर्ष 2002 में, कमला भसीन ने नारीवादी नेटवर्क ‘संगत’ की स्थापना की, जो ग्रामीण और आदिवासी समुदायों की वंचित महिलाओं के साथ काम करती है. उन्होंने हिमाचल प्रदेश में जागोरी और राजस्थान में ‘स्कूल फॉर डेमोक्रेसी’ जैसे कई अच्छे जनहित संस्थानों की स्थापना व स्थापित करने में सहायता की.

कमला भसीन एक उत्कृष्ट कवियत्री भी थीं . उन्होंने अपने लेखन व् कविताओं के माध्यम से जन जागरण व् पितृसत्ता के खिलाफ मोर्चा खोला. उनकी प्रकाशित रचनाओं का करीब 30 भाषाओं में अनुवाद हुआ है.

बेजोड़ पंजाबी शख्सियत कमला भसीन ने वर्ष 1991 में कोलकाता के जादवपुर यूनिवर्सिटी में महिलाओं पर चल रही एक कॉन्फ़्रेंस के बीच में ढपली बजाते हुए “पितृसत्ता से आज़ादी” का नारा लगाना शुरू कर दिया. पितृसत्ता का विरोध करने के लिए कमला भसीन ने ‘आजादी’ इस शक्तिशाली शब्द का प्रयोग किया. बाद में वह अपने नुक्कड़ नाटक , स्ट्रीट विरोध में इसी शब्द पर नारे बाजी करने लगीं. आजाद भारत की नारीवादी कवयित्री और सामाजिक कार्यकर्ता खुखरायण कमला भसीन का 25 सितम्बर 2021 को नई दिल्ली में निधन हो गया. कमला भसीन अपनी कविताओं , लेखन, आन्दोलनों की दिशा के माध्यम से हमेश स्मृतियों में रहेंगीं.

 

Tags: कमला भसीनखुखरायण
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