नवजोत सिंह सिद्धू का जवाब न तो करारा रहा और ना ही वह सबको जवाब ही दे पाए। अपनी पाकिस्तान यात्रा और वहां पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से गले मिलने को लेकर हो रही आलोचना पर पूर्व क्रिकेटर सिद्धू ने कहा था, जब भी जवाब देना होगा, मैं दूंगा और सबको दूंगा…वह करारा जवाब होगा। सिद्धू ने प्रेस कांफें्रस करके जवाब दे दिया। उनका जवाब करारा तो कतई नहीं रहा। उनकी सफाई बेदम रही। सिद्धू की बातें कितने लोगों के गले उतर पाईं? वह कह रहे हैं कि उनका पाकिस्तान दौरा विशुद्ध निजी कार्यक्रम था। इस दौरे की तुलना वह अटल बिहारी वाजपेई और नरेन्द्र मोदी के पाकिस्तान दौरे से करने से नहीं चूके। उन्होंने कहा है कि उनके पुराने दोस्त, इमरान खान, ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में अपने शपथ समारोह में आमंत्रित किया था। वह भारत सरकार से मंजूरी मिलने के बाद वहां गए। बाजवा से गले मिलने का जो कारण सिद्धू बताया उस पर कोई भी समझदार व्यक्ति कैसे विश्वास कर सकता है? बकौल सिद्धू, बाजवा ने दोनों देशों में सांस्कृतिक समानता की बात कही थी, उससे वह भावुक हो गए।
भाजपा समर्थक मेरे एक मित्र उस घड़ी को याद कर खुश हो रहे हैं जब सिद्धू ने कांगे्रस में शामिल होने का निर्णय लिया था। उनका कहना है, सिद्धू का भाजपा से जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा था। आज लग रहा है कि चलो अच्छा हुआ, गुरु से पिंड छूटा। भाजपा उस शर्मिंदगी से बच गई जिसका सामना कांग्रेस को करना पड़ रहा है। सिद्धू की चौतरफा आलोचना हो रही है। उनके समर्थन में कम और विरोध में अधिक लोग दिखाई दे रहे हैं। कुछ कांग्रेसी नेताओं ने सिद्धू के समर्थन में बयान दिए हैं लेकिन उनमें कुतर्क अधिक हैं। सिद्धू इस समय पंजाब में कांग्रेस की अमरिन्दर सिंह सरकार में केबिनेट मंत्री हैं। खास बात यह है कि स्वयं मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह मानते हैं कि सिद्धू ने पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से गले मिल कर गलत किया है। अधिकांश लोग की राय में सिद्धू का इमरान खान के शपथ समारोह में शामिल होने का फैसला नैतिक रूप से गलत था। सिद्धू ने दूसरी बड़ी गलती शपथ समारोह में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के राष्ट्रपति मसूद खान के बगल में बैठने की। सिद्धू से बड़ी गलती यह हुई कि उसी मौके पर वहां पहुंचे जनरल बाजवा से वह लपक कर गले मिले। लोगों ने बाजवा-सिद्धू झप्पी की तस्वीरों को बारीकी से देखा है। एक बात साफ तौर पर दिखाई देती है कि जनरल से गले मिलने के लिए पहले सिद्धू ही लपके थे। शिवसेना के मुख़पत्र सामना ने अपनी सम्पादकीय में सिद्धू की खासीखिंचाई की है। सामना ने सही नोटिस किया है कि शपथ समारोह के दौरान सिद्धू इतने उत्साहित दिख रहे थे जैसे वहां उनका कोई पारिवारिक कार्यक्रम आयोजित हो रहा हो। सामना के अनुसार जनरल बाजवा से गले मिलने के बाद सिद्धूू के चेहरे पर खासी चमक और संतुष्टि दिखाई दे रही थी।
सिद्धू की पाकिस्तान यात्रा पर लोग चुप रह जाते लेकिन जनरल बाजवा से गले मिल कर सिद्धू ने अपनी छवि खुद ही चौपट कर ली। सिद्धू-बाजवा झप्पी पर पहले कांग्रेस सिट्टी-पिट्टी गुम रही। अब बेसिर-पैर के तर्कों से सिद्धू का बचाव किया जा रहा है। पंजाब कांग्रेस में सिद्धू समर्थक एक नेता का कहना है कि केन्द्र सरकार ने सिद्धू को पाकिस्तान जाने ही क्यों दिया? एक अन्य कांग्रेसी का कहना है कि यदि नरेन्द्र मोदी नवाज शरीफ के जन्मदिन पर बिन बुलाये पाकिस्तान जाकर उन्हें बधाई दे सकते हैं तो सिद्धू ने अपने पूर्व क्रिकेटर दोस्त इमरान खान के शपथ समारोह में जाकर कौन सा अपराध कर दिया? इस तरह की तुलना की अपेक्षा किसी ऐसे मंदबुद्धि इंसान से ही की जा सकती है जिसे कूटनीति और व्यक्तिगत दोस्ती में फर्क की समझ न हो। इमरान के शपथ समारोह में अभिनेता आमिर खान के साथ पूर्व क्रिकेटर सुनील गावस्कर और कपिलदेव को भी आमंत्रित किया गया था। आमिर खान, गावस्कर और कपिल नहीं गए। चलिए, सिद्धूू के पाकिस्तान जाने पर आपत्ति नहीं है। शिकायत सिर्फ यह है कि सिद्धू उस बाजवा से गले मिल बैठे जिसकी सेना आतंकवादियों को प्रशिक्षण देकर भारत में भेजती है। क्या सिद्धू नहीं जानते कि आए दिन पाकिस्तानी सैनिक युद्ध विराम का उल्लंघन करते हैं। वो घात लगा कर हमारे जवानों पर गोलियां दागते हैं। पाकिस्तानी सेना की ऐसी हरकतों में पिछले दो-तीन दशकों में हजारों भारतीय जवान और अधिकारी शहीद हो चुके हैं।
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के राष्ट्रपति मसूद खान के बगल में बैठने को लेकर हो रही आलोचनाओं पर सिद्धू मासूमियत तो देखिए। सफाई दे रहे हैं, वह नहीं जानते थे कि उन्हें मसूद खान के बगल में बैठाया गया है। सिद्धू सियासी छक्का मारने के चक्कर में गच्चा खाकर क्लीन बोल्ड हो गए हैं। अमरिन्दर सिंह ने इस मुद्दे पर सटीक और तर्कसंगत प्रतिक्रिया व्यक्त की है। वह कहते हैं, रोज हमारे सैनिक शहीद हो रहे हैं। उनकी हत्याओं के लिए जनरल बाजवा जिम्मेदार है। अभी हाल ही में हमारे एक मेजर और दो जवान शहीद हुए हैं। अमरिन्दर के रोम-रोम में फौज बसती है। वह सेना की सिख रेजीमेन्ट में रह चुके हैं। अत: समझा जा सकता है कि किसी फौजी की शहादत पर दूसरे फौजी कैसा महसूस करते हैं? अमरिन्दर का बयान एक फौजी का बयान है। फौजी घुमा-फिरा कर बात करने में विश्वास नहीं करते। सही को सही बताने और गलत बात पर अंगुली उठाने में फौजी देर नहीं करते। पंजाब में कांग्रेस की सत्ता में वापसी का श्रेय सिर्फ उन्हीं को जाता है। राजनीति में लंबा समय गुजार चुके अमरिंदर की छवि एक विश्वसनीय राजनेता के रूप में है। उन्हें पूरी गंभीरता से लिया जाता है। सिद्धू की हरकत पर अमरिन्दर की खुली नाराजगी के अपने मायने हैं।
झप्पी प्रकरण बात करते समय मशहूर गायक अभिजीत की प्रतिक्रिया का उल्ल्ेाख करना उचित होगा। उनका कहना है कि सिद्धू के रूप में कांग्रेस को एक और मणिशंकर अय्यर मिल गए हैं। इस वाक्य में गहरा अर्थ छिपा है। लेकिन, अय्यर और सिद्धूूू तक ही क्यों रु का जाए? कांंग्रेस को असहज स्थिति मेें डालने वालेे कांंग्रेेसियों केे नामों सूूची लंबी है। सूची में निर्विवाद रूप से पहला नाम अय्यर का ही है। दूसरे स्थान पर दिग्विजय सिंह को रखा जा सकता है। सूची में स्थान पाने वालों में एक और नाम शशि थरूर का है। यह कहें कि अब सिद्धू ने उस सूची में स्थान पाने के लिए दावेदारी ठोंक दी है। इनके अलावा कांग्रेस में तीसरी और चौथी पंक्ति के नेताओं में आधा दर्जन ऐसे नाम हैं जिनकी जुबान ने मानो विश्राम नहीं करने की कसम खा रखी है। अय्यर पाकिस्तान में बोल चुके हैं कि उन्हें भारत से ज्यादा प्रेम पाकिस्तान में मिलता है। दिग्विजय किे एक-दो बयान ऐसे रहे कि कांगे्रस ने ही पल्ला झाड़ लिया। थरूर हिन्दू पाकिस्तान वाले बयान से पार्टी को काफी फजीहत करा चुके हैं। अब देखिए, ठोंको ताली बोलते-बोलते गुरु बाजवा से लिपट पड़े।
राहुल गांधी आए दिन शिकायत करते हैं कि फलां मुद्दे मोदी चुप क्यों हैं? कांग्रेस अध्यक्ष से ही सवाल किया जा सकता है कि कांग्रेसी नेताओं के बड़बोलेपन पर वह क्यों चुप रहते हैं? या तो वे अपने लोगों की जुबान पर लगाम कसने से बचते हैं या यह कहें कि विवादास्पद बयान देने वालों को पार्टी शीर्ष नेतृत्व को मौन समर्थन रहता है। अय्यर ने मोदी को नीच आदमी कहा था। कांग्रेस ने जमकर इस बात को प्रचारित किया कि राहुल गांधी को अय्यर की भाषा पसंद नहीं आई है। अय्यर को निलंबित कर दिया गया था। ताजा खबर यह है कि कांगे्रस की अनुशासन समिति की सिफारिश को मानते हुए राहुल ने अय्यर के निलंबन को समाप्त करने की मंजूरी दे दी है। गांधीवादी नेतृत्व और विरोधियों के प्रति भी सम्मान भाव रखने की डींग हांकने वाली कांगे्रस की अनुशासन समिति ने क्या अय्यर को बेगुनाह मान लिया है? देशवासी जानना चाहते हैं कि पाकिस्तान में सिद्धू के व्यवहार पर कांग्रेस का आधिकारिक मत क्या है? क्या कांगे्रस को सिद्धू-बाजवा की झप्पी में कुछ गलत नहीं दिख रहा? अंत में सवाल यह है कि किसने किसको बुद्धू बनाया या कौन किसे बुद्धू बना रहा है। पाकिस्तान की रग-रग से वाकिफ लोग मान रहे हैं कि पाकिस्तान ने मसूद खान के साथ सिद्धू को बैठा और बाजवा से गले मिलवा कर उन्हें बुद्धू बनाया है। इससे वह भारत की कूटनीति को लेकर दुनिया को गुमराह करने की कोशिश कर सकता है। एक अन्य पक्ष मानता है कि सिद्धू वापस लौटने पर इतना विरोध देख कर बौखला गए हैं। वह आम आदमी का भावनात्मक शोषण कर उन्हें बुद्धू बनाने का प्रयास नहीं कर रहे हैं?
अनिल बिहारी श्रीवास्तव,
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