जानिए उस प्रेम कहानी को जिसने भारत, रूस और अमेरिका के राजनीतिक व कूटनीतिक संबंधों में तनाव पैदा कर दिया था
साल था 1963 । भारत मे उत्तर प्रदेश राज्य के कालाकांकर (प्रतापगढ़) के राजकुमार बृजेश सिंह
अपना इलाज कराने उस जमाने के सोवियत संघ (रूस) की राजधानी मॉस्को पहुंचे । वे अपनी ब्रोन्किइक्टेसिस नामक बीमारी के इलाज के लिए मॉस्को के सबसे बड़े अस्पताल में भर्ती हुए । उसी अस्पताल में सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता और तानाशाह जोसेफ स्टालिन की बेटी स्वेतलाना भी टांसिल के आपरेशन के लिए भर्ती हुई।
पहली ही नजर में दोनों को प्यार हो गया। बृजेश सिंह के व्यवहार और व्यक्तित्व से स्वेतलाना काफी प्रभावित थीं।बृजेश सिंह काफी पढ़े-लिखे, नफ़ीस और सौम्य थे। सिंह उस जमाने मे युवाओ के आदर्श हुआ करते थे। बिल्कुल गोरे-चिट्टे, सूट-बूट पहनने और धाराप्रवाह अंग्रेज़ी बोलने वाले बृजेश बहुत सहज थे और हर किसी को प्रभवित कर लिया करते थे । उनसे मिलते ही स्वेतलाना उनके प्यार में दीवानी हो गईं।
दोनों ने संग जीने-मरने की कसमें खा लीं, लेकिन सोवियत संघ की सरकार ने शादी की अनुमति नहीं दी। बावजूद दोनों ने सरहदों का बंधन तोड़कर शादी कर ली, लेकिन तकनीकी तौर पर उस शादी को मंजूरी नहीं मिली। व्यवहारिक रूप से 1964 से दोनों पति-पत्नी की तरह साथ-साथ रहते थे।
स्वेतलाना न सिर्फ बृजेश सिंह से प्यार करती थीं, बल्कि उन्हें भारतीय वेशभूषा, परम्परा, रीति-रिवाजों और उनकी भाषा से बेहद मोहब्ब थी। उन्होंने बृजेश से प्रेम के चलते हिंदी बोलना भी सीख लिया था।
लेकिन ईश्वर को कुछ और मंजूर था । बीमारी के चलते बृजेश सिंह की 31 अक्टूबर, 1966 को मॉस्को में मौत हो गई. स्वेतलाना अपने पति की अस्थियां गंगा में प्रवाहित करने भारत आईं. वे उनके असामयिक निधन से बहुत आहत थीं और भारत आकर बसना चाहती थीं. स्वेतलाना ने कालाकांकर में गंगा के किनारे रहने की बात भी कही .लेकिन इसमें एक पेंच फंस गया.
उन दिनों सोवियत संघ में स्टालिन की आलोचक ख्रुश्चेव की सरकार थी और वह न सिर्फ़ स्टालिन के परिवार को प्रताड़ित कर रहा था बल्कि उनका नामोनिशान मिटाने पर तुला था. इसलिए भारत की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने स्वेतलाना को भारत में बसने देने का विरोध किया. उन्हें सोवियत संघ की नाराज़गी का डर था.प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कुछ नहीं बोलीं जबकि दिवंगत बृजेश सिंह के भतीजे और कांग्रेस के बड़े नेता दिनेश सिंह ने स्वेतलाना से कहा कि अगर सोवियत संघ सरकार इजाज़त दे तो भारत सरकार भी उन्हें इजाज़त देगी यानी परोक्ष रूप से इनकार.
इसके बाद स्वेतलाना विपक्ष के नेता राम मनोहर लोहिया से मिलीं. लोहिया ने स्वेतलाना के पक्ष में संसद में भाषण दिया. वे इस बात से दुखी थे कि भारत ने अपनी बहु को ठुकरा दिया है. हालांकि लोहिया को अपने प्रयासों में सफलता नहीं मिली और स्वेतलाना को भारत छोड़ना पड़ा.
स्वेतलाना ने दिल्ली से ही अमेरिका में शरण लेने की ठानी. सोवियत संघ ने भारत से इसका कड़ा विरोध जताया. स्वेतलाना बेहद योजनाबद्ध तरीके से अमेरिकी दूतावास में चली गईं. अमेरिका उस समय हर सोवियत संघ से भागे व्यक्ति को शरण देता था. स्वेतलाना को वहां से सुरक्षित अमेरिका पहुंचा दिया गया.
अमेरिका पहुंचकर स्वेतलाना ने कालाकांकर में बृजेश अस्पताल का निर्माण कराने का निश्चय किया.उनका उद्देश्य था कि बृजेश सिंह स्मारक चिकित्सालय में गरीबों का अच्छे से अच्छा इलाज हो सके. इसके लिए उन्होंने बहुत सारे पैसे भेजे. साहित्यकार सुमित्रा नंदन पंत और महादेवी वर्मा जैसे लोगों ने अस्पताल का उद्घाटन किया था. उस समय यह इलाके का सबसे आधुनिक अस्पताल था. इसके लिए विदेशों से उपकरण मंगाए गए थे.
लेकिन स्थानीय धनलोलुप और मक्कार नेताओ के चलते एक दशक बाद यह अस्पताल बंद हो गया. फिलहाल अब अस्पताल की जगह इस इमारत में कोई निजी स्कूल चल रहा है. 22 नवंबर, 2011 को स्वेतलाना की 85 साल की उम्र में मृत्यु हो गई ।