इन दिनों बहुत ढिंढोरा पीटा जा रहा है कि ‘देश सुरक्षित हाथों में है’. वे कहते हैं कि ‘नामुमकिन भी अब मुमकिन है’. मगर इन्हीं जुमलों के बीच रक्षा मंत्रालय से राफेल सौदे की जानकारी वाली फाइल चोरी हो जाती है. खुद अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल यह बात सुप्रीम कोर्ट में कहते हैं. ऐसे में देश की जनता के मन में सवाल उठता है कि जब देश सुरक्षित हाथों में है और चौकीदार सोया नहीं रहता, तो फिर उस चौकीदार के जागते हुए वह गोपनीय फाइल चोरी कैसे हो गई? यानि मामले में कोई बड़ी गड़बड़ी जरूर है. इस पर लोगों ने सवाल पूछना भी शुरू कर दिया है कि जब एक महत्वपूर्ण फाइल ही आपके राज में सुरक्षित नहीं रह सकती, तो भला देश कैसे सुरक्षित हाथों में है?
राफेल के दस्तावेज चोरी होने का मामला उजागर होने से पहले तक हमारे कर्णधार बड़े खुश थे. उनके मुताबिक स्थितियां बदल चुकी थी. पुलवामा हमले और पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक हो चुकी थी. इससे राष्ट्रवाद का ज्वार चरम पर पहुंच चुका था. ‘सफेद और काली दाढ़ी’ वाले समेत सभी भगवा नेता बल्ले-बल्ले करने लगे थे कि 2019 में उनकी जीत पक्की है. शहीदों की शहादत पर सियासत होने लगी थी. 350 आतंकियों के मारे जाने की खबरें फैला कर वोट मांगने वाले नाचने-कूदने लगे थे. विपक्ष में घबराहट फैल गई थी. कांग्रेस में टेंशन पसर गया था कि अब ‘नमो’ के सामने ‘रागा’ कैसे टिकेंगे?
तभी राफेल की फाइल चोरी हो जाने का मामला सामने आ गया. चौकीदार के माथे पर परेशानी के बल पड़ गए. उन्होंने युक्ति निकाली और कहने लगे कि विपक्ष को हमारी सेना पर भरोसा नहीं है. वे लोग एयर स्ट्राइक के सबूत मांग रहे हैं. फिर भी बात नहीं बनी. कांग्रेस ने राफेल घोटाले का पीछा नहीं छोड़ा. टेंशन में हुक्मरानों ने अटार्नी जनरल को सफाई देने का आदेश दे दिया. वेणुगोपाल ने सफाई दी कि रक्षा मंत्रालय से फाइल चोरी नहीं हुई, बल्कि उसके दस्तावेज ‘लीक’ हुए हैं. अब ये कागजात चोरी हुए हों या ‘लीक’ हुए हों, बात तो एक ही है. ‘चोर की दाढ़ी’ में तिनका सबको दिखने लगा है. तमाम आरोपों की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए, ताकि ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ हो सके. वर्तमान सरकार अगर अभी जांच शुरू नहीं भी कराएगी, तब भी अगली सरकार को जांच करानी ही पड़ेगी. किंतु मई 2019 में फिर से यदि यही सरकार बन गई, तो सबकुछ दबा दिया जाएगा. तब भैंस पानी में डूबी हुई नजर आएगी.
विपक्ष के पास राफेल के अलावा और भी मुद्दे हैं. जैसे नोटबंदी, जीएसटी, बेरोजगारी, महंगाई, किसान इत्यादि. मगर वह जिस ढंग से इसे उठाना चाहिए, वह उठा नहीं रहा है. इसलिए देश का मूड अभी तक विपक्ष की बातों या वादों में नहीं लग रहा है. अगर चुनाव तक यही आलम रहा और विपक्ष ने कोई नया करिश्मा नहीं किया, अथवा नई लहर पैदा नहीं की, तो मई 2019 में फिर से भाजपा की सरकार का बनना तय है. अगर पूर्ण बहुमत मिल जाए तो मोदी, वरना नितिन गडकरी या राजनाथ सिंह को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है. हालांकि यह सिर्फ कयास ही है. क्योंकि जो सर्वे पुलवामा हमले और इसके बाद आ रहे हैं, उनमें मोदी सरकार का दोबारा सत्तासीन होना ही बताया जा रहा है. लेकिन देश के लोगों का कोई भरोसा नहीं कि वह कब, क्या कर बैठें?
दूसरी ओर, भाजपा अब ‘भारतीय जूतमपैजार पार्टी’ बन गई है. उसके यूपी के सांसद, क्षेत्र के विधायक पर भीड़ भरे कार्यक्रम में जूता चला रहे हैं. पार्टी का अनुशासन भाड़ में जा चुका है. उसका चाल-चरित्र और चेहरा बिगड़ चुका है. इसे कहते हैं सत्ता के मद में मगराना. जिन्हें शिलालेख पर अपने नाम खुदवाने/लिखवाने की फिक्र हो, वे जनता की भलाई के काम कैसे करेंगे? जिस चौकीदार के राज में रक्षा मंत्रालय की फ़ाइल भी सुरक्षित नहीं है और उसके विधायक जूतों की मार से भी सुरक्षित नहीं है, तो भला देश कैसे सुरक्षित रह सकता है? जरा सोचिए…..
सुदर्शन चक्रधर( संपर्क 96899 26102)