कर्त्ता ,कारण ,कर्म सभी क्रियांविंत हैं ,क्योंकि चेतना है ,आत्मा है। संसार की प्रत्येक वस्तु एक दिन किसी न किसी कारण विनाश कोप्राप्त होती है और विनाश के कई कारण भी होते हैं ,प्रत्यक्ष दिखाई भी देते हैं पर आत्मा के साथ ऐसा नहीं है (आत्माअर्थात चेतन) इसका विनाश होता ही नहीं यह अजर अमर है ,जिसे न ही आग जला कर भस्म कर सकती है न यह जल में डूब सकती है और न ही जल इसे गीला कर कर सकता है। ऐसी वस्तुएं जिसमे ठोस धातु नहीं है वो पहले गीली होती हैं ,पानी से उसका खालीपन भर जाता है फिर वह डूब जाती है —-कुछ वस्तुएं ऐसी परिस्थिति में भी पानी की सतह पर ही रहती हैं। पर लोहे का या पत्थर का एक टुकड़ा जो अपने आप में पूर्ण है पल भर में पानी की गहराई में जा समाता है। यह पानी का और तरह तरह की वस्तुओं का सच है ,कुछ वस्तुएं पानी को अपने अंदर समेट लेती हैं और कुछ पानी के अंदर जा समाती हैं पर उसमे जल का का कोई औचित्य नहीं है ,वह अपनी अवस्था में ही स्थित है। अब ध्यान देने योग्य बात यह है की आत्मा पर भी जल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता न वह गीली हो सकती है न डूब सकती है और न ही आग में भस्म हो सकती है ,आग जिसका स्वभाव ही सब कुछ भस्म कर देने का है। पेड़ पौधे फल सब्जियां तब तक हरे भरे रहते हैं जब तक उनमें नमी रहती है। परन्तु आत्मा को ऐसी किसी विशेष प्रक्रिया के होने न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। वह सदा है और सदा रहेगी। वह हर जगह है और हर जगह रहेगी। चेतना /आत्मा ‘का कोई आकर नहीं है आत्मा का उजाला अपने आप में पूर्ण है और शेष विश्व और असंख्य चल अचल उससे आलोकित हैं। ‘ईश्वर के सच से ,उस सच से के प्रकाश से सारा जग आलोकित है। हम किसी एक वस्तु से ही किसी एक वस्तु का निर्माण कर सकते हैं ,उसमें सुंदरता भर सकते हैं उसे उपयोगी बना सकते हैं। अमुक वस्तु का आदान प्रदान कर सकते हैं उसकी रूचि अरुचि लाभ हानि की सीमायें बाँध सकते हैं ,उपहार के रूप में दे सकते है ले सकते हैं ,पर न तो उसमें प्राणों का संचार कर सकते हैं और न ही सत्य के समकक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं क्योंकि इस जगत में जितने भी पदार्थ हैं वे मानव रचित हैं ,उनके निर्माण के साथ विनाश भी है पर प्रकृति को हम बांध नहीं सकते