हम एक मनुष्य का उदाहरण लेते हैं जो नैतिकता से परे हट कर अपने व अपने समाज के लिए विध्वंसकारी ,कष्टदायक काम करता है और प्रसन्न भी होता है ,अपनी उपलब्धियों पर गर्व भी करता है -पर यह अनुचित है जिसे वह जानता भी है और समझता भी है ,पर मानने को तैयार नहीं ,किसी दूसरे के समझाने पर भी वह बात स्वीकार नहीं ,लेकिन ऐसे व्यक्ति के हानिकारक कृत्यों से समाज की रक्षा करना भी अति आवश्यक है ऐसे में हमें किसी मनोविशेषज्ञ का सहारा लेना पड़ता है जो उसे उचित और अनुचित का भेद समझाए एक बात और ध्यान में रखनी चाहिए की प्रत्येक मनुष्य अपने अंतर मन में अच्छे और बुरे भेद जानता है अपने द्वारा किये गए कर्मों का फल जानता है उसका प्रभाव भी जनता है ,पर क्षणिक सुख व अहंकार के चलते उत्तेजित हो दुष्ट कर्म कर बैठता है -ऐसे में एक मनोविशेषज्ञ उसके अंदर पड़े ईश्वरीय तत्व को बाहर निकालने का प्रयास करता है ,उसे उसके प्रभाव से, नुक्सान से परिचित कराता है तब यहीं पर हम अपनी आम भाषा का प्रयोग करते हुए कहते हैं की उसकी अंतरात्मा जाग उठी है उसका विवेक जाग उठा है – जब की यह सब तो उसके अंदर ही था ,वो ज्ञान को ले कर ही जन्मा था ,जीवनयापन कर रहा था पर विचारों में खिन्नता के कारण व्यवहार में कर्कश बन गया। जब ज्ञान का उदय हुआ विचारों ने अच्छे बुरे का भेद पहचाना तो उसके कर्मों में परिवर्तन होते देर नहीं लगी -फिर आत्म बोध हुआ तो सारी मानव जाति के प्रति उसकी धारणा बदल गई और उसके कर्म कल्याणकारी बन गए। आदिशंकरचर्य जी ने गीता भाष्य में इसका उल्लेख करते हुए कहा है