• ABOUT US
  • DISCLAIMER
  • PRIVACY POLICY
  • TERMS & CONDITION
  • CONTACT US
  • ADVERTISE WITH US
  • तेज़ समाचार मराठी
Tezsamachar
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा
No Result
View All Result
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा
No Result
View All Result
Tezsamachar
No Result
View All Result

जिन्दगी : “आत्मा का विलय “

Tez Samachar by Tez Samachar
September 6, 2020
in Featured, विविधा
0
जिन्दगी :  “आत्म  साक्षी “
Neera Bhasin
                    श्लोक १८ अध्याय २ भावार्थ —इस नाशरहित ,अप्रमेय (अर्थात प्रत्यक्षादि प्रमाणों के अगोचर )नित्यस्वरूप शरीरी (अर्थात आत्मा ) के ये सब शरीर  नाशवान कहे गए हैं। इसलिए हे भारत वंशी ! तू युद्ध कर।
   आत्मा के सत्य को समझ लेना और उसके तथ्य और तत्व को जान लेना बहुत आवश्यक है नहीं तो मनुष्य मोह माया के जाल से अपने को मुक्त नहीं कर सकता। श्री कृष्ण का प्रयास यही था की अर्जुन जीवन के सत्य को समझे और विनाशकारी ,आकार या स्वरूप में स्थापित आत्मा के तत्व को समझे जिससे मोहवश भ्रम से जागृत हो उसकी उसकी बुद्धि  उचित निर्णय ले सके और जब वो निर्णय ले तो उसका हृदय निर्मल हो। सांख्य दर्शन में लिखा गया है ,जैसे दिशा के भूल जाने पर उसके बारे में पूछने सुनने जानने से ठीक दिशा का ज्ञान तो हो जाता है, किन्तु उसे देखे बिना भ्रम दूर नहीं होता -वैसे ही वाणी आदि के कहने सुनने से ही बंधन नहीं छूटता।
हम कितना भी प्रयत्न करें ज्ञान प्राप्त किये बिना अविवेक भी नहीं छूटता .इससे सिद्ध होता है की साक्षात् स्वयं ज्ञान पाने पर ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है —-अध्याय १ श्लोक संख्या ५९ ,सांख्य दर्शन।
                                 भौतिक  तत्वों से बना कोई भी आकार ,स्वरुप या शरीर शाश्वत नहीं है ,समय आने पर इसका नाश अवश्यम्भावी है पर शरीर में आत्मा रूपी जो तत्व है उसका कोई आकर नहीं ,रूप नहीं ,गंध नहीं स्पर्शनीय भी नहीं और दृश्य भी नहीं वह ही परमपिता परमात्मा का अंश है जो सब में सब जगह वितरित हो कर समय आने पर अपने उद्गम में जा समाता है। सांख्य दर्शन में  इसे ‘ईश्वर’ कहा गया  है और आदिशंकराचार्य ने इसे ‘विष्णु’ की संज्ञा दी है ,इस्लाम धर्म वाले इसे अल्लाह और ईसाई धर्म वाले इसे गॉड कह कर मानते हैं सिख धर्म वालों ने भी इसे एकओमकार की संज्ञा दी है ,तो कहा जा सकता है की  इस अनुभूति विशेष में एक ही भाव है एक ही आत्मस्वरूप है। यहीं से सौर मंडल की और पंच तत्वों की उतपत्ति हुई है और जब कोई जीव जंतु या वनस्पति आदि जन्म लेते हैं तो उनमे भी प्राण स्वरुप यही ईश्वरीय तत्व या सच समाया रहता है। और जब तक ये सच उनमें है वे जीवित हैं जैसे ही ये प्राण जीवधारियों या वनस्पति से पृथक होते हैं वैसे ही सब कुछ शेष हो गया मान कर उसके स्वरुप को स्वंम ही अग्नि या मिटटी को समर्पित कर देते हैं या फिर प्रकृति स्वयं समय के साथ उसे पुनः प्रकृति में विलय कर देती है -ठीक मिटटी के घड़े की तरह जिसके अंदर भी और बाहर भी जो खालीपन
है (जो भिन्न भिन्न आकर का हो सकता है ) उसके अंदर के खालीपन  सकते हैं , उसे कोई नाम ,रूप या प्रयोग हेतु प्रस्तुत कर सकते हैं पर जैसे ही घड़ा टूटता है तो अंदर बाहर का भेद मिट जाता है ,ऐसे ही शरीर में बसे  प्राण हैं ,,’प्राण ‘ के शरीर छोड़ते ही शरीर पांच भूतों में विलय हो  जाता है और प्राण -प्राणिक सत्ता में जा मिलते हैं। शंकराचार्य ने भी इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए कहा है की “आत्मा “का विनाश कोई नहीं कर सकता।  और आत्मा का विकास ठीक वैसे ही है जैसा की घड़े और मिटटी का।’ आत्मा  जब शरीर छोड़ के अनंत में लीन  होती है तो वो न तो किसी को जाते हुए दिखाई देती है न ही विलय होते हुए ही ,और न ही स्पर्शनीय है पर वह है और जब तक किसी स्वरुप के सम्पर्क में थी शरीर कर्मरत थे बाद में जो शेष रहा वो अपने उद्गम तत्वों में जा समाया .—यह एक शाश्वत सच है।
              यदि उपरोक्त तथ्य को समझने की कोशिश करें तो शरीर और आत्मा दोनों के अलग अलग आस्तित्व हैं ,पर शरीर के शांत होने  का अर्थ है आत्मा का उससे पृथक हो जाना पर इससे आत्मा का वि विनाश नहीं होता ,वह अपने ब्रह्माण्ड व्यापी स्वरूप में चली जाती  है।
दूसरी ओर शरीर निष्क्रय रह जाता है ,जिसे अंतिम संस्कार के रूप में पांच तत्वों को समर्पित कर दिया जाता है और ये प्रक्रिया उसके अपने ही करते हैं। मोह बंधन सब देह तक ही सीमित थे और समय समय पर बनते बिगड़ते रहना देह की प्रक्रिया है जिससे ये बंधन बंधे थे। संक्षिप्त रूप में कहें तो कृष्ण अर्जुन को जीवन का सच बहुत सरल शब्दों में समझने का प्रयास कर रहे हैं –की ये देह धारी बंधु  बांधव एक दिन शेष हो जायेंगे इस लिए अर्जुन का व्यथित होना उचित नहीं। जो रूप रंग आकार से परे है वो नित्य है अविनाशी है –वही सच है अर्थात वही ईश्वर है बाकि सब नाशवान है। जो प्रत्यक्ष है हम उसे समझ कर उसकी व्याख्या कर ,उसकी चर्चा कर प्रमाण स्वरूप स्वीकार कर लेते हैं और यह ज्ञान प्राप्त करना कठिन नहीं है, जो प्रत्यक्ष है ,जो प्रमाणित है वह निश्चित ही निर्मित और चर्चित है। हम उसे नाम दे सकते हैं ,आकर दे सकते हैं और ऐसा करने में प्रकृति सहायक होती है वह आकर सीमित काल तक ही है। दूसरी ओर आत्मा जो निराकार है पर उसे किसी ने नहीं देखा ,जो सारे विश्व को चलायमान रखती है पर उसे कोई चला नहीं सकता ,जो सबको अच्छे  और बुरे कर्मों से परिचित कराती है पर उसके अपने कोई करम नहीं कर्म फल नहीं ,किसी अच्छे बुरे कर्मों का फल उसे  दूसरा शरीर धारण करने पर – अमुक शरीर को ही    मिलता है। आत्मा कर्म फल से परे है। कण कण में विभाजित हुए रूप आकार के कारण उसे भिन्न भिन्न नाम व संज्ञाएँ प्राप्त हैं ,पर अंत में वो जब अपने रूप में जा समाती हैं तो अपने अविनाशी स्वरूप से एकाकार हो जाती हैं।  सारे बंधन ,सारे पाप -पुण्य से विरक्त हो  एक सत्य के रूप में ही विलय हो एकाकार हो जाती हैं।
              इसलिए हे अर्जुन उठो और युद्ध करो ‘यहां शोक करने लायक कुछ नहीं है ,जो है उसका विनाश तो पहले से निश्चित है। तुम अपने को दोषी या पाप का भागी मत समझो।

 

Previous Post

12 सितंबर से रेलवे चलाएगा 80 स्पेशल ट्रेनें, देश में कुल 310 ट्रेनें पटरी पर

Next Post

बिहार के पूर्णिया में महिला व उसकी नाबालिग बेटी से सामूहिक बलात्कार

Next Post
बिहार के पूर्णिया में महिला व उसकी नाबालिग बेटी से सामूहिक बलात्कार

बिहार के पूर्णिया में महिला व उसकी नाबालिग बेटी से सामूहिक बलात्कार

  • Disclaimer
  • Privacy
  • Advertisement
  • Contact Us

© 2025 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.

No Result
View All Result
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा

© 2025 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.