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जिन्दगी : आत्मा और परिवर्तन 

Tez Samachar by Tez Samachar
October 11, 2020
in Featured, विविधा
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Neera Bhasinश्लोक २२ 
भावार्थ —जिस प्रकार मनुष्य जीर्ण वस्त्रों का त्याग कर दूसरे नए वस्त्र धारण करता है ,उसी प्रकार देही जीर्ण शरीरों का त्याग कर  दूसरे नए शरीर को प्राप्त होता है। 
                   श्री  कृष्ण ने इस स्थान पर जन साधारण की समझ में 
भी आ सके ,ऐसा उदाहरण रखा है । क्योंकि अर्जुन के ह्रदय में उठ रहे द्वन्द और संशय दूर नहीं हो पा रहे थे। प्रस्तुत उदाहरण हम सार्वभौमिक उदाहरण मान सकते हैं। हम अपनी आवश्यकतानुसार या फिर किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए या अहंकार के प्रदर्शन के लिए अमुक वस्तु  या वस्त्र  को धारण कर लेते हैं और समय आने पर या कार्य अथवा इच्छा की पूर्ति हो जाने पर अमुक  वस्तु या वस्त्र  का त्याग भी कर देते हैं।उस पल हमें कोई मोह नहीं रोकता ,कोई बंधन नहीं बांध सकता क्योंकि अमुक  वस्तु या वस्त्र  की सेवा या उपयोगिता अब नहीं रही। या फिर कुछ और उसके स्थान पर प्राप्त हो जाने से संतुष्टि की प्राप्ति  हो गई है। ऐसे समय में त्याग कष्टदायक नहीं होता। श्री कृष्ण को पूरा विश्वास था की अर्जुन उनके इस अनुरोध की उपेक्षा नहीं कर पायेगा। उक्त पंक्तियों का यदि हम ध्यान पूर्वक मनन करें तो पाएंगे की श्री कृष्ण के कहने का तातपर्य यही है कि -आत्मा कभी मरती नहीं ,यह नित्य है ,अजन्मा है ,अमर है। शरीर के जर्जर क्षीण हो जाने पर उसका कोई प्रयोग नहीं रह जाता।  ऐसा नहीं है ?हम  यह  भी कह सकते हैं की   आत्मा तब तक शरीर में ही वास  करती है जब तक शरीर शेष नहीं हो जाता   ,दूसरी ओर ऐसा भी मान सकते हैं की अमुक शरीर में आत्मा के वास की अवधि पूरी हुई। यही सत्य है हमारी देह और आत्मा का। 
देह जर्जर हो पुरानी हो जाती है वैसे ही जैसे वस्त्र जर्जर और पुराने हो जाते हैं। ऐसे में आत्मा पुराने शरीर का त्याग कर नए शरीर में प्रवेश कर जाती है ठीक उसी तरह जैसे देह पुराने वस्त्रों का त्याग कर नए वस्त्र धारण करती है। एक और बात ध्यान देने योग्य है  की आत्मा देह का  त्याग केवल वृद्धा  अवस्था  में  ही नहीं करती अपितु अल्पायु में 
दुर्घटना हो जाना  या शरीर के भीतरी अवयवों का  किसी कारण वश क्षतिग्रस्त हो जाना भी देह के त्याग का कारण हो सकता है अकाल मृत्यु के बारे में दर्शन शस्त्रादि में भिन्न भिन्न तर्क दिए गए हैं जो प्रस्तुत संदर्भ से हट कर सोचने का विषय है। शरीर के क्षतिग्रस्त होने पर उसकी प्रकृतिक रूप से संचालित होने वाली प्रक्रिया भंग हो जाती है और ऐसे में मनुष्य की मृत्यु हो जाती है कुछ ऐसा ही निष्कर्ष निकाला जा रहा है। 
जिस प्रकार हम वस्त्रों को नए या पुराने मान कर अपनी इच्छानुसार  धारण करते हैं या फिर त्याग करते हैं -यह व्यक्तिविशेष पर निर्भर करता है। एक ही दिन धारण कर कोई व्यक्ति वस्त्र को पुराना मान कर उसका त्याग कर देता है तो कोई बरसों पहन कर उसका त्याग करते हैं। कभी वस्त्र इतना फट जाये की उसका उपयोग उसकी सिलाई कटाई कर के भी न किया जा सके तो वस्त्र नया  हो या पुराना हम उसका त्याग कर देते हैं। जब देह के कर्म पुरे हो जाते हैं तो चाह कर भी आत्मा और शरीर को जोड़ कर नहीं रखा जा सकता। शरीर समय से बंधा है और आत्मा अमर है। परिवर्तन और नाश शरीर की प्रक्रियाएँ है आत्मा की नहीं। 
    यहाँ श्री कृष्ण  के विचारों से यह सत्य स्थापित हो जाता है की आत्मा पुनः जन्म लेती है। जैसे वस्त्रों को बदलने में शरीर को कोई कष्ट नहीं होता उसी तरह जब आत्मा शरीर बदलती है तो उसे कोई कष्ट नहीं होता। आत्मा अमर है ,नित्य है।  
          श्लोक –२३ अध्याय २ 
    भावार्थ – आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते ,इसको अग्नि जला नहीं सकती ,इसको जल गीला नहीं कर सकता तथा वायु सूखा नहीं सकती। 
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए श्री कृष्ण ने   अर्जुन से कहा की बात आत्मा के अजर अमर होने तक ही सीमित नहीं है। यह एक सत्य है जो जीवन के होने का प्रमाण है -फिर भी ‘मन’ बुद्धि  और विवेक से परे है। इसलिए  ‘मन’ को इसके होने या ना होने पर संदेह करने की कोई  आवश्यकता ही नहीं। जो सच है उस पर बुद्धी द्वारा  संदेह  करने का कोई औचित्य ही नहीं बनता। ज्ञानी पुरुष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। जो विचार संदेहस्पद है और  विचार धारणाओं में परिवर्तन या संशय पैदा करते हैं वो प्रमाणित रूप से सत्य नहीं माने जा सकते। जब हम किसी अनदेखी बात या क्रिया का उल्लेख करते हैं तब हम कुछ इस तरह से बात करते हैं मानो हमने उसे देखा हो , अमुक विषय के अच्छे बुरे प्रमाण हमारी व्याख्या में प्रगट होते हैं पर जो है ही व्याख्या से परे उसकी व्याख्या क्योंकर होगी। 
           आत्मा के बारे में श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा की ऐसा कोई हथियार नहीं जो आत्मा को काट कर विभाजित कर दे या उसका विनाश कर दे – किसी तलवार ,गोली या बन्दुक से -क्योंकि आत्मा किसी ठोस परिवेश में नहीं है। बादल ,पानी वायु आदि भी कुछ ऐसे पदार्थ हैं जिन्हें हम देख सकते हैं छू सकते हैं ,उपयोग में ला सकते हैं पर उनका हनन नहीं कर सकते। पानी में तलवार या अन्य किसी तरह से वार करें तो व्यर्थ ही जायेगा क्योंकि जल पल भर में ही अपने स्वरुप को फिर से धारण कर लेगा ,यही स्थिति वायु या बादलों की है। इनके स्वरुप को 
बदला नहीं जा सकता। 
क्रमशः 
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