हे अर्जुन तुम “आर्य ” हो अर्थात श्रेष्ठ पुरुष हो तुममें इतनी शिथिलता कैसे और से कहाँ आ गई। कैसी भी विकट परिस्तिथि हो एक सच्चा आर्य पुरुष कभी भी अपने उत्तरदाईत्व से पीछे नहीं हटता .
और कृष्ण को जो भय और दुविधा, अर्जुन की बातों में दिखाई दे रही थी वो क्षत्रिय वीर के लक्षण नहीं हैं। कृष्ण ने यह बात इतने स्वाभाविक रूप से इस लिए कही की अर्जुन कहीं यह न समझ ले की वे उसकी व्यथा को समझ गए हैं सामने वाले के दुःख में हम यदि पूरी तरह से प्रवेश कर जाते हैं तो हो सकता है की हमारी बुद्धि में भी शिथिलता आ जाये पर ऐसे में किसी एक को अपनी भावनाओं पर पूरी तरह से नियंत्रण रखना आवश्यक है ,ताकि स्तिथि को संभाला जा सके। इसलिए कृष्ण ने सबसे पहले जो कहा वो यही था की अर्जुन जैसे वीर को विषम परिस्तिथि आने पर अपने मन के हाथों कमजोर नहीं पड़ना चाहिए।
इस श्लोक के संदर्भ में स्वामी दयानद जी ने लिखा है
” You have missed your calling ,Arjuna .You should have been a great actor .How you could you have hidden this from me all these years ?I never expected that you could get into this kind of a state .We all knew you to be the bravest ,the most courageous ,and now I hear you talk that betrays only sorrow —sorrow at the thought of the immense destruction that this war will bring .”
इस समय तो अर्जुन को अपनी सेना को संचालित कर युद्धनीतियों पर विचार करना चाहिए। पर वो तो युद्ध के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच खड़ा हुआ है और व्यथित है।
“आर्य “इस शब्द का अर्थ ही है की एक ऐसा व्यक्ति जो समय और स्थान की आवश्यकता के अनुसार कार्य करता है वह वीर है वह बुद्धि युक्त है। इस लिए कृष्ण ने अर्जुन से कहा था की “तुम आर्य पुरुष हो कर ऐसा अनुचित वयवहार कैसे कर सकते हो। “समाज या संसार के हित के लिए वीरोचित कार्य करने वालों को स्वर्ग प्राप्त होता है ,उन्हें पुण्य प्राप्त होता है। पर अर्जुन का इस तरह धर्म युद्ध से मुंह
मोड़ लेना उसे नरक में ले जायेगा। अर्जुन ने कहा था की अपने परिजनों का संहार करने वालों को भी नरक ही भोगना पड़ता है और वह इस दंड के लिए प्रस्तुत है पर उससे अपनों का वध न हो सकेगा। दूसरा श्लोक —–भावार्थ —श्री भगवान् बोले ,हे अर्जुन ! आर्यों द्वारा असेवित,स्वर्गप्राप्ति का विरोध और अपकीर्ति प्राप्त करने वाला
यह मोह तुझे कहाँ से प्राप्त हुआ ?
“Krishna who was all this time silent now bursts forth into an excessive eloquence in which every word is a chosen missile, a hissing hammer -stroke, that can flatten any victim .”
Swami Chinmayanand
कृष्ण ने कहा की अर्जुन तुम एक वीर सैनानी हो ,माँ के आँचल में खेलने वाले नन्हें बालक जैसा व्यवहार करना उचित नहीं और न ही एक वीर पुरुष को यह शोभा देता है की वो एक किन्नर के सामान व्यवहार करे। निराशा की तरफ मत बड़ो ,अपनी भावनाओं पर अंकुश लगाओ .
कृष्ण अर्जुन को एक बहुत ही सयंम वाला ,कठिनाइयों में अटल रहने वाला ,धर्म के मार्ग पर चलने वाला मानते थे। इसी लिए युद्ध के मैदान में वे अर्जुन की दशा देख कर हैरान थे। अर्जुन एक वीर योद्धा एवंम राजकुमार था और युद्ध के मैदान में उनका इस तरह भीरुता दिखाना वीरोचित गुण नहीं था।
एक वीर पुरुष को यह शोभा नहीं देता। यहाँ गीता में यह बात अर्जुन के लिए कही गई है और कहने वाले श्री कृष्ण हैं –हम इसे महाभारत काल का सत्य मान कर या एक कथा कहानी समझ कर बात आई गई नहीं कर सकते आज भी ऐसी परिस्तिथियाँ वो चाहे किसी भी क्षेत्र की हों हमें अपना कर्तव्य निभाने को विवश करती हैं। सक्षम पुरुष परिस्तिथिओं से भाग नहीं सकता। .उनका मुकाबला करना ही सबसे पहला कर्तव्य है। यदि गाँधी जी अंग्रेजों को शासक मान ,उनकी लाठी तोपों से उनकी शक्ति से डर कर अपना आंदोलन बीच में ही छोड़ देते तो हम जो आज हैं वो कभी भी न हो पाते। आर्यों के देश भारत का नामों निशान मिट गया होता। गाँधी जी ने देश के लिए धर्म को बचाने के लिए अपने ही शासकों के विरुद्ध आवाज उठाई और आगे बड़े। गाँधी जी के संचालन में पूरा देश उनके साथ चल पड़ा था और ऐसी परिस्तिथि में दृढ़ रहना गाँधी जी ने गीता में कहे गए कृष्ण के वचनों से ही सीखा था। ऐसे ही लोग लिए पथ प्रदर्शक बनते हैं और समय आने पर कर्तव्य से पीछे नहीं हटते।