जीवन दो विपरीत भावों के आधार पर चलता है -दोनों भाव समांतर तो हो सकते हैं पर साथ साथ मिल कर चल नहीं सकते क्योंकि दोनों की नियति विपरीत है ,फल विपरीत हैं ,भाव विपरीत हैं ,संवेदनाएं विपरीत हैं। ये भाव अर्थात दुःख -सुख , ख़ुशी -गम ,अँधेरा -उजाला ,आदि एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। यदि इनमें से हमें कुछ भी प्रभावित करता है और हम उस दशा को पूर्णरूप से स्वीकार नहीं कर सकते तो हम सदा द्वन्द में ही फँसे रहेंगे। निर्दवन्द होने के लिए और शांति पाने के लिए , कर्तव्य निभाने के लिए हमें एक राह पकड़नी होगी। उस ओर बिना किसी शंका के चलना होगा -हो सकता है राह कठिन हो ,हो सकता है कोई पथ प्रदर्शक ना मिले ,हो सकता है लोग मुर्ख समझें पर कर्तव्य पथ पर निरंतर आगे बढ़ने से मंजिल मिल ही जाती है।