• ABOUT US
  • DISCLAIMER
  • PRIVACY POLICY
  • TERMS & CONDITION
  • CONTACT US
  • ADVERTISE WITH US
  • तेज़ समाचार मराठी
Tezsamachar
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा
No Result
View All Result
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा
No Result
View All Result
Tezsamachar
No Result
View All Result

विश्व ओजोन दिवस पर विशेष : लॉकडाउन में भरा ओजोन सुरक्षा कवच का लिकेज

Tez Samachar by Tez Samachar
September 16, 2020
in Featured, दुनिया, विविधा
0
विश्व ओजोन दिवस पर विशेष : लॉकडाउन में भरा ओजोन सुरक्षा कवच का लिकेज
तेज समाचार डेस्क
इंसानों को कई जानलेवा बीमारियों से बचाने वाली ओजोन लेयर के लिए लॉकडाउन राहत वाला समय कहा जा सकता है. देश में लॉकडाउन का जो असर हुआ, उसका एक बड़ा फायदा ओजोन लेयर को भी मिला है. एनसीबीआई जर्नल में प्रकाशित भारतीय वैज्ञानिकों की रिसर्च कहती है, दुनिया के कुछ देशों में 23 जनवरी से लॉकडाउन लगने के बाद प्रदूषण में 35 फीसदी की कमी और नाइट्रोजन ऑक्साइड में 60 फीसदी की गिरावट आई है. इसी दौरान ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाने वाले कार्बन का उत्सर्जन भी 1.5 से 2 फीसदी तक घटा और कार्बन डाई ऑक्साइड का लेवल भी कम हुआ. ये सभी ऐसे फैक्टर हैं, जो ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाते हैं.
10 लाख वर्ग किलोमीटर का छेट बंद हुआ
इसी साल अप्रैल महीने की शुरुआत में ओजोन लेयर पर बना सबसे बड़ा छेद अपने आप ठीक होने की खबर भी आई. वैज्ञानिकों ने पुष्टि कि आर्कटिक के ऊपर बना दस लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला छेद बंद हो गया है. सूर्य की खतरनाक पराबैंगनी किरणों को रोकने वाली इस लेयर को कोरोनाकाल में कितनी राहत मिली है, इस पर पूरी रिपोर्ट आनी बाकी है. पर्यावरणविद् शम्स परवेज के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाने वाले कार्बन और दूसरी गैसों का उत्सर्जन 50 फीसदी तक घटा, जिसका पॉजिटिव इफेक्ट आने वाले समय में दिख सकता है. इस दौरान एयर ट्रैफिक 80 तक कम हुआ है, जो फिलहाल अच्छे संकेत रहे हैं.
पराबैंगनी किरणों को को रोकती है ओजोन लेयर
ओजोन लेयर दो तरह की होती है. एक फायदेमंद है और दूसरी नुकसानदेह. फायदेमंदर ओजोन लेयर एक ऐसी पर्त है, जो सूर्य की ओर से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को सोखकर रोकने का काम करती हैं. ओजोन परत पृथ्वी के वातावरण के समताप मंडल के निचले हिस्से में में मौजूद है. सामान्य भाषा में समझें तो यह पराबैंगनी किरणों को छानकर पृथ्वी तक भेजती है. इसकी खोज 1957 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रो. गॉर्डन डोब्सन ने की थी. वहीं नुकसानदायक ओजोन लेयर हमारे ब्रीदिंग लेवल (सांस लेने के स्तर पर) पर होती है, जो नुकसान पहुंचाती है. यह गाड़ियों और फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं में मौजूद नाइट्रोजन ऑक्साइड से बनती है. यह कार्सिनोजेनिक होती है, जो कैंसर का कारण बन सकती है. हवा की जांच करके इसके स्तर को समझा जाता है.
पराबैंगनी किरणों से बीमारियों का खतरा
इस लेयर में छेद होने पर सूर्य की पराबैंगनी किरणें सीधे धरती तक पहुंचेंगी. ये किरणें स्किन कैंसर, मलेरिया, मोतियाबिंद और संक्रमक रोगों का खतरा बढ़ाती हैं. अगर ओजोन लेयर का दाकयरा 1 फीसदी भी घटता है और 2 फीसदी तक पराबैंगनी किरणें इंसानों तक पहुंचती हैं तो बीमारियों का खतरा काफी हद तक बढ़ सकता है.
इस कारण डेमेज होती है ओजोन लेयर
ऐसे कॉस्मेटिक प्रोडक्ट और स्प्रे का इस्तेमाल हो रहा जिसमें क्लोरोफ्लोरो कार्बन पाए जाते हैं. ये ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाते हैं. स्मोक टेस्ट के मानकों पर न खरे उतरने वाले वाहनों से निकलता धुआं. इसमें कार्बन अधिक पाया जाता जो क्षरण का कारण बनता है. फसल कटाई के बाद बचे हुए हिस्सों को जलाने से निकलने वाला कार्बन स्थिति को और बिगाड़ रहा है. इसके अलावा प्लास्टिक व रबड़ के टायर और कचरे को जलाने से भी इस लेयर को नुकसान पहुंच रहा है. अधिक नमी वाला कोयला जलाने पर सबसे बुरा असर पड़ रहा है. ओजोन लेकयर को नुकसान पहुंचाने वाले कण वातावरण में नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन जब सूर्य की किरणों के साथ रिएक्शन करते हैं तो ओजोन प्रदूषक कणों का निर्माण होता है. वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलने वाली कार्बन-मोनो-ऑक्साइड व दूसरी गैसों की रासायनिक क्रिया भी ओजोन प्रदूषक कणों की मात्रा को बढ़ाती हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक, 8 घंटे के औसत में ओजोन प्रदूषक की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए.
16 सितंबर 1987 में कई देशों में हुआ था समझौता
ओजोन परत में हो रहे क्षरण को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने पहल की. कनाडा के मॉन्ट्रियल में 16 सितंबर, 1987 को कई देशों के बीच एक समझौता हुआ, जिसे मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल कहा जाता है. इसकी शुरुआत 1 जनवरी, 1989 को हुई. इस प्रोटोकॉल का लक्ष्य वर्ष 2050 तक ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों को कंट्रोल करना था. प्रोटोकॉल के मुताबिक, यह भी तय किया गया कि ओजोन परत को नष्ट करने वाले क्लोरोफ्लोरो कार्बन जैसी गैसों के उत्पादन और उपयोग को सीमित किया जाएगा. इसमें भारत भी शामिल था. इस साल वर्ल्ड ओजोन डे की थीम है ‘ओजोन फॉर लाइफ’ यानी धरती पर जीवन के लिए इसका होना जरूरी है.
_ लॉकडाउन में घटा 50 प्रतिशत प्रदूषण
6 महीने के लॉकडाउन में 50 फीसदी से अधिक प्रदूषण का स्तर घटा है, लेकिन ओजोन गैस का स्तर सिर्फ 20 फीसदी तक ही कम हुआ है. इसका स्तर इतना ही क्यों हुआ इसके जवाब में शम्स परवेज कहते हैं, लॉकडाउन के दौरान जगहों को सैनेटाइज करने में लिए सोडियम हायपो-क्लोराइड का इस्तेमाल हुआ. इससे ब्रीदिंग लेवल पर बनने वाली ओजोन गैस का स्तर उतना नहीं गिरा, जितना गिरना चाहिए था.
साउथ एशियाई देशों में प्रदूषण की अधिकता
दुनिया में बढ़ता तापमान और इस लेयर के बीच कोई संबंध नहीं है. वायुमंडल का तापमान तब बढ़ता है, जब प्रदूषण के कारण पर्यावरण में मौजूद कण सूरज की गर्मी को अवशोषित करते हैं. इनमें सबसे ज्यादा कार्बन होते हैं. साउथ एशियाई देशों में प्रदूषण अधिक होने के कारण तापमान और भी बढ़ रहा है.
Previous Post

इंदौर : गृहमंत्री अमित शाह के जल्द स्वस्थ होने की जा रही प्रार्थना

Next Post

राजस्थान : ट्रक ने मारी कार को टक्कर; भाजपा नेता की पत्नी सहित मौत

Next Post
राजस्थान : ट्रक ने मारी कार को टक्कर; भाजपा नेता की पत्नी सहित मौत

राजस्थान : ट्रक ने मारी कार को टक्कर; भाजपा नेता की पत्नी सहित मौत

  • Disclaimer
  • Privacy
  • Advertisement
  • Contact Us

© 2025 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.

No Result
View All Result
  • Home
  • देश
  • दुनिया
  • प्रदेश
  • खेल
  • मनोरंजन
  • लाईफस्टाईल
  • विविधा

© 2025 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.