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मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव : बनते-बिगड़ते समीकरण

Tez Samachar by Tez Samachar
November 20, 2018
in Featured, विविधा
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मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव : बनते-बिगड़ते समीकरण

हम बचपन में अपने दोस्तों के साथ खेल खेलते थे। जब किसी दोस्त को उस खेल का हिस्सा नहीं बनाया जाता तो वह खेल बिगाडऩे की जुगत में ही लगा रहता था। खेल बिगाडऩे वाला भले ही सफल नहीं हो पाए, लेकिन दूसरों लोगों को अवश्य ही असफल कर देता था। आजकल जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें कमोवेश ऐसे ही हालात दिखाई दे रहे हैं। कई स्थानों पर खेल बिगाडऩे की राजनीति की जा रही है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस खेल बिगाडऩे की जुगत में अपने ही शामिल हो जाएं, तो खेल तो बिगड़ेगा ही, साथ ही राजनीतिक लाभ भी किसी और को ही मिलेगा। इस प्रकार की राजनीति यह प्रमाणित करने के लिए काफी है कि आजकल राजनीति में सिद्धांत नाम की कोई चीज ही नहीं है। सिद्धांतों पर कफन डालने जैसी राजनीति से देश में एक नए प्रकार का वातावरण भी उपस्थित होता दिखाई दे रहा है। जिसके अंतर्गत आम जनता का राजनीति से भरोसा उठता जा रहा है। कई बार तो यह भी सुनने में आने लगा है कि राजनीति केवल अवसरवाद का रुप ले चुकी है।
– अंतर विरोध की बलिवेदी पर कठिन परीक्षा
मध्यप्रदेश की राजनीति में जय पराजय के बीच समीकरण बन भी रहे हैं और बिगड़ भी रहे हैं। इन समीकरणों के बीच मुख्य राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अंतर विरोध को भी व्यापक रुप से झेल रहे हैं। कहीं भाजपा के बागियों ने शामत खड़ी कर रखी है तो कहीं इन बागियों को कांग्रेस के भीतरघात का लाभ मिल रहा है। राजनीतिक दृष्टि से आंकलन किया जाए तो दोनों ही दल अंतर विरोध की बलिबेदी पर कठिन परीक्षा से दौर से गुजर रहे हैं। भाजपा के लिए एक बात सबसे बड़ी आश्वस्ति प्रदान कर रही है, वह यह कि उनके पास मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित उम्मीदवार के रुप में शिवराज सिंह चौहान हैं। वहीं कांग्रेस के लिए दुविधा वाली बात यही मानी जा रही है कि उनके पास प्रदेश के अंचलों में अलग-अलग नेताओं के नाम मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तुत किए जा रहे हैं। अगर कांग्रेस के पास सत्ता प्राप्त करने लायक संख्या बल आता है तो स्वाभाविक रुप से यही कहना होगा कि केवल एक ही नेता मुख्यमंत्री बनेगा। फिर जो स्थिति बनेगी उससे निपटना कांग्रेस के लिए टेड़ी खीर ही प्रमाणित होगी।
– अवसर नहीं मिला तो बागी हो गए
मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान जिस प्रकार की राजनीति देखी जा रही है। वह निश्चित रुप से भूलभुलैया जैसी स्थितियां निर्मित कर रही है। प्रदेश में पन्द्रह वर्षों से सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी वैसे तो अपनी सत्ता वापिसी के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त दिखाई दे रही है, लेकिन उसके लिए वे नेता बहुत बड़े अवरोध बनते दिखाई दे रहे हैं, जो कभी भाजपा के लिए ही जीने मरने की कसम खाते थे। इस श्रेणी में पांच बार भाजपा से सांसद रहे दो नेता इस बार भाजपा के विरोध में चुनावी मैदान में हैं। यहां एक सवाल यह भी आता है कि इन राजनेताओं के सिद्धांत क्या हैं? जब तक भाजपा इनको चुनाव लड़ाती रही, तब तक यह पूरी तरह से सिद्धांतवादी ही माने जाते थे, लेकिन जैसे ही किसी अन्य कार्यकर्ता को अवसर दिया तो इन्होंने पाला ही बदल दिया। प्रश्न यह भी है कि जिस पार्टी ने इन्हें सांसद, विधायक और मंत्री जैसे पदों पर स्थापित किया, वे उस पार्टी को अन्य कार्यकर्ताओं को मौका देना क्यों नहीं चाहते? अनुशासनहीनता के दौर से गुजर रही देश की राजनीति ने आम जनता को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि वह किस पर विश्वास करे। जहां भाजपा अपने पन्द्रह वर्षीय शासन काल में किए गए विकास कार्यों की दम पर वोट मांग रही है, वहीं कांग्रेस के पास ऐसा कुछ नहीं है जो अपनी उपलब्धि के आधार पर वोट मांग सके। कांग्रेस का पूरा प्रचार भाजपा केन्द्रित होकर रह गया है। मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में जिस प्रकार का चुनाव प्रचार किया जा रहा है, उसके केन्द्र में भाजपा ही है। चाहे समर्थन में हो या फिर विरोध में। बिना भाजपा के किसी का भी प्रचार अधूरा ही है।
– छोटे दल बन रहे कांग्रेस के अवरोधक
मध्यप्रदेश में चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बनने वाले छोटे राजनीतिक दल भी इस सत्य से पूरी तरह से वाकिफ हैं कि प्रदेश में सत्ता भाजपा या कांग्रेस की ही बनेगी, फिर भी वे कहीं न कहीं खेल बिगाडऩे वाला प्रदर्शन कर रहे हैं। उत्तरप्रदेश से लगे हुए मध्यप्रदेश के विधानसभा क्षेत्रों में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी अपना जोर लगा रही है। प्राय: समझा जाता है कि उत्तरप्रदेश में व्यापक राजनीतिक प्रभाव रखने वाले यह दोनों ही दल मध्यप्रदेश में कांग्रेस को कमजोर कर रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक यही संभावना व्यक्त करने लगे हैं कि कांग्रेस की सरकार बनने के लिए छोटे दल बहुत बड़ा अवरोध स्थापित करने का काम कर रहे हैं। कांग्रेस के लिए दूसरी सबसे कमजोर कड़ी यह भी मानी जा रही है कि उसके पास राष्ट्रीय स्तर के सितारा प्रचारकों का बहुत ही अभाव है। कांग्रेस के जो नेता प्रचार कर रहे हैं, उन्होंने किसी न किसी रुप में अपने आपको प्रदेश की राजनीति तक ही सीमित कर लिया है। जबकि भाजपा के पास सितारा प्रचारकों की लम्बी फौज है। ऐसे में अब देखना यही होगा कि जो प्रत्याशी खेल बिगाडऩे के लिए मैदान में खड़े हैं वे किसका खेल बिगाड़ सकते हैं? यह भी हो सकता है कि उनका अपना ही खेल बिगड़ जाए।

Tags: BJPCongressGwaliorMP Assembly election-2018MP NewsMP samacharparty changershivraj shigh chauhanSuresh Hindustanitezsamachar
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