छत्तीसगढ़ के बस्तर की वादियों में बसे बारसूर गांव का मामा-भांजा मंदिर अपनी अनोखी कहानी और भव्य वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि यह मंदिर केवल एक ही दिन में बनाया गया था.
बारसूर गांव के इस मामा भांजा मंदिर के गर्भगृह में तथा द्वार शाखा पर गणेश जी महाराज की प्रतिमा ही विद्यमान है. मंदिर की पश्चिमी भित्ति के सहारे ललितासन में द्विभुजी गणेश प्रतिमा स्थापित है. इस प्रतिमा का नाप 44X30X12 सेंटीमीटर है. गणेश के दायें हाथ में परशु ( फरसा ) तथा बायें हाथ में मोदक पात्र विद्यमान है. प्रतिमा में गणेश जी ने यज्ञोपवीत धारण किया हुआ है. इस प्रतिमा के बायी ओर चतुर्भुजी नरसिंह की प्रतिमा रखी हुई है. यद्यपि यह दोनों ही प्रतिमायें बाद में रखी हुई प्रतीत होती हैं किंतु इससे प्रतिमाओं का महत्व कदाचित कम नहीं हो जाता. गर्भगृह की द्वार शाखा के ललाट बिम्ब में चतुर्भुजी गणेश बैठे हुए प्रदर्शित हैं. इस प्रतिमा का अनुमाप 30X21 से.मी. है. इस प्रतिमा में गणेश के उपरी दायें हाथ में परशु ( फरसा ) तथा निचला हाथ अभय मुद्रा में है इसी तरह उपरी बायें हाथ में गदा तथा निचले बायें हाथ में वे मोदक धारण किये हुए हैं. प्रतिमा के ठीक नीचे चलती हुई मुद्रा में मूषक अंकित किया गया है.
प्राचीन इतिहास और अनोखी कथा
दंतेवाड़ा जिले के बारसूर में स्थित मामा-भांजा मंदिर (Mama-Bhanja Temple) 11वीं शताब्दी में छिंदक नागवंशी शासक बाणासुर के शासनकाल में निर्मित हुआ था. इस मंदिर का नाम दो शिल्पकारों—मामा और भांजा—के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने मिलकर इसे सिर्फ एक ही दिन में बनाया.
मान्यता है कि राजा बाणासुर, जो भगवान शिव के परम भक्त थे, ने अपनी भक्ति और यश को चारों दिशाओं में फैलाने के लिए इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया. कहा जाता है कि इस कार्य के लिए बुलाए गए शिल्पकार सामान्य मानव नहीं, बल्कि देव लोक से आए दिव्य कारीगर थे.
अद्वितीय वास्तुकला और कलाकारी
इस मंदिर का निर्माण बलुई पत्थरों से किया गया है, जो इसे मजबूती और सुंदरता प्रदान करते हैं. मंदिर की ऊँचाई प्रभावशाली है और दीवारों पर बने शिल्प उस युग की अद्वितीय कारीगरी का प्रमाण हैं.
मंदिर के शीर्ष के नीचे मामा और भांजा—दोनों शिल्पकारों की मूर्तियाँ स्थापित हैं. गर्भगृह में भगवान शिव, भगवान गणेश और भगवान नरसिंह की प्रतिमाएँ हैं, जो इसे धार्मिक दृष्टि से और भी विशेष बनाती हैं.
धार्मिक और पर्यटन महत्व
मामा-भांजा मंदिर मुख्य रूप से भगवान शिव और गणेश को समर्पित है. यह स्थान इतिहास, आस्था और कला का संगम प्रस्तुत करता है. चित्रकोट और तीरथगढ़ जैसे लोकप्रिय झरनों की तरह, यह मंदिर भी बस्तर आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुका है.
मामा-भांजा मंदिर का नाम इससे जुड़ी एक अन्य दंतकथा के कारण बताया जाता है. कहते हैं कि गंगवंशीय राजा का भांजा उत्कल देश से कारीगरों को बुलवा कर इस मंदिर को बनवा रहा था. मंदिर की सुन्दरता ने राजा के मन में जलन की भावना पैदा कर दी. इस मंदिर के स्वामित्व को ले कर मामा-भांजा में युद्ध हुआ. मामा को जान से हाथ धोना पड़ा. भांजे ने पत्थर से मामा का सिर बनवा कर मंदिर में लगवा दिया फिर भीतर अपनी मूर्ति भी रखवा दी.
इस मंदिर के पीछे एक और किवदंती जुड़ी हुई है. वह यह है कि इस मंदिर में मामा भांजा एक साथ प्रवेश नहीं कर सकते,क्योंकि कहा जाता है कि अगर मामा भांजा एक साथ इस मंदिर में दर्शन करेंगे तो उनमें मतभेद होगा. उनके रिश्तों में खटास आएगी. इतिहासकारों और आसपास के ग्रामीणों का मानना है कि इस मंदिर में छत्तीसगढ़वासी इस नियम को मानकर मामा-भांजा एक साथ मंदिर में दर्शन के लिए नहीं जाते हैं.