जिस तरह फिल्मी दुनिया में पहले ट्रेलर रिलीज होता है, फिर सेंसर बोर्ड से पारित होने के बाद ही वह फिल्मके पर्दे पर दिखाई जाती है. कुछ वैसा ही महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर हो रहा है. मराठा समाज को 16 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश वाली रिपोर्ट फडणवीस सरकार को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने सौंप तो दी है, मगर अभी भी उसे लागू होने में कई ‘किंतु-परंतु’ बाकी हैं. पहले यह राज्य मंत्रिमंडल में मंजूर होगी, फिर सदन में. फिर उसके लिए खूब कोर्ट-कचहरी होगी. कुछ असंतुष्ट संगठन हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे. और तब, हो सकता है कि मामला लटक जाए. इसलिए मुख्यमंत्री फडणवीस के आवाहन पर 1 दिसंबर को मनाए जाने वाले जश्न का भी कोई अर्थ नहीं होगा. इसलिए कहता हूं कि पूरी पिक्चर अभी बाकी है दोस्त!
एक ओर राज्य सरकार मराठा समाज को 16 फीसदी तक स्वतंत्र आरक्षण देने का मन बना चुकी है लेकिन यहां महत्वपूर्ण सवाल यह है कि वह इसे किस प्रकार से कानूनी सांचे में ढालेगी? क्योंकि राज्य में 52 प्रतिशत आरक्षण पहले से ही लागू है. यदि 16 प्रतिशत आरक्षण अलग से दिया जाता है, तो कुल आरक्षण 68 प्रतिशत हो जाएगा. जबकि आरक्षण की कुल सीमा 50 फीसदी ही है. यदि सुप्रीम कोर्ट ने ‘स्टे’ नहीं दिया, तो महाराष्ट्र में भी तमिलनाडु (69प्रश) की तरह आरक्षण रखा जा सकता है. फिर यह सवाल भी उठता है कि ओबीसी आयोग की रिपोर्ट सरकार को सौंपने से पहले ही वह मीडिया में लीक कैसे हो गई? या फिर जानबूझकर ऐसा करवाया गया, ताकि समरसता का माहौल बन जाए.
यह सच है कि महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा नेताओं का ही वर्चस्व रहा है. आज तक बने मुख्यमंत्रियों में ज्यादातर इसी समाज के थे, मगर विडंबना यही कि फिर भी यह समाज औरों से पिछड़ गया. ओबीसी आयोग ने पाया कि इस समाज की आर्थिक, शैक्षणिक व सामाजिक स्थिति में कुछ वर्षों में काफी गिरावट आयी है. वह तमाम तथ्यों व सबूतों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मराठा समाज सचमुच पिछड़ा हुआ है. आयोग ने पाया कि 37.28 प्रश मराठा आज भी गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं. इनके 70.56 प्रश लोग कच्चे मकानों में रहते हैं. 63 प्रश परिवार अल्पभूधारी हैं. सिर्फ 47 प्रश परिवारों के पास ही टीवी हैं. 53 प्रश परिवारों के पास तो फ्रिज, वाशिंग मशीन और कंप्यूटर भी नहीं हैं. 22 प्रतिशत परिवारों की वार्षिक आमदनी 24 हजार रुपए से भी कम हैं! सबसे दुखद तथ्य यह है कि राज्य में एक वर्ष में हुई 345 किसानों की आत्महत्याओं में से 277 मराठा ही थे! सोचिए जरा…!
अब सवाल है कि आगे क्या होगा? ओबीसी आयोग की सभी सिफारिशें मान ली गयीं, तो मराठा समाज को सरकारी नौकरियों और शिक्षा क्षेत्र में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार को नया कानून बनाना होगा. इससे पहले कांग्रेस-राकांपा की आघाड़ी सरकार ने भी मराठा आरक्षण की व्यवस्था की थी. किंतु वह हाईकोर्ट के अंतरिम स्थगनादेश के कारण लटक गयी. इसलिए सरकार को पुराना कानून रद्द करके नया कानून बनाना होगा. मगर इसकी कोई गारंटी नहीं कि इसे सक्षम अदालतों में चुनौती नहीं दी जाएगी!
इसके अलावा राज्य सरकार को यह भी ध्यान रखना होगा कि मराठा और ओबीसी समाज में टकराव की कोई स्थिति न बनने पाए. सीएम फडणवीस ने साफ कह दिया है कि मराठों को आरक्षण देते हुए अन्य समाज (खासकर ओबीसी) के आरक्षण को नहीं छेड़ा जाएगा. बहरहाल, आम चुनाव से ठीक पहले महाराष्ट्र में आरक्षण का ‘जिन्न’ जिस प्रकार बोतल से बाहर निकला है, उसी प्रकार गुजरात (पाटीदार), राजस्थान (मीणा), आंध्रप्रदेश (कापु) और हरियाणा-यूपी (जाट) में भी मांग बढ़ सकती है. इसके अलावा महाराष्ट्र में धनगर, मुस्लिम और हलबा समाज भी अपने-अपने लिए आरक्षण मांग ही रहा है. ऐसे में लगता है कि पूरे देश को ही आरक्षित किए जाने की जरूरत है! जय हो आरक्षण की…!
सुदर्शन चक्रधर (संपर्क 96899 26102)