तारीख 24 नवंबर, 2004 । देश के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का घर 9, मोती लाल नेहरू मार्ग । यह घर अब अकसर खाली ही रहता है। क्योंकि राव बीमार हैं। वे जून 2004 से ही एम्स में भर्ती हैं। किडनी, दिल और फेफड़ों में शिकायत। स्पेशल वॉर्ड में इलाज जारी है। घर वालों के अलावा यहां उनसे मिलने कुछ खास लोग ही आते है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उनमें से एक है। राव के राज में ताकतवर रहे मनिंदर जीत सिंह बिट्टा भी अकसर आते है।
ऊपर जो नवंबर की तारीख लिखी है,उसके बाद राव ज्यादा बीमार हो गए । उनकी पेशाब नली में इनफेक्शन हो गया था। डॉक्टरों ने तगड़ी दवाई दी। इस चक्कर में उनके दिमाग पर असर हुआ। वह बचपन बीतने के बाद पहली बार मूडी और चिड़चिड़े हो गए। उन्होंने खाना बंद कर दिया। बेटी वाणी से बोले, “ऐसे जीने का क्या फायदा? तुम लोग क्यों इसे जबरन खींच रहे हो?”
जानकारी के लिए राव देश के ऐसे इकलौते प्रधानमंत्री रहे जो कार्यकाल के दौरान अदालत में पेशी पर जाते थे।इल्ज़ाम था कि 1993 में अपनी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट डालने के लिए राव ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को घूस दी थी। तब राव की सरकार बच गई थी। बाद में राव भी बरी हो गए।
बेटी से चर्चा के बाद राव अस्पताल के अपने वॉर्ड में ही एक किस्म के सत्याग्रह पर बैठ गए। बिस्तर के बगल में कुर्सी पर। न कुछ खाया न पीया।
ये खबर दिल्ली में फैल गई। इधर उनके परिवार को गृह मंत्री शिवराज पाटिल का फोन आया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी विजिट करना चाहती हैं।
सोनिया आईं। साथ में पाटिल और अहमद पटेल भी थे। पटेल ने राव को पानी का गिलास दिया। राव गुस्से में बोले – “तुम लोग मुझ पर मस्जिद तुड़वाने का इल्जाम लगाते हो और अब पानी पिलाते हो । यह क्या नाटक है?” सोनिया कनखियों से अहमद पटेल को देखती है। पटेल चुप रहने का इशारा करते हैं।
राव रुक-रुककर बोलते रहे। उन्होंने कहा- ” किससे गलतियां नहीं होतीं। मगर मुझे ऐसी गलती के लिए जिम्मेदार क्यों ठहराया जा रहा है जो मैंने की ही नहीं। ये किसकी साजिश है , मुझे पता है “
सोनिया गांधी रात 2.30 बजे अस्पताल से रवाना होती हैं। फिर राव को नींद का इंजेक्शन दिया जाता है। अगली सुबह वह उठते है तो बस एक बात बोलेते हैे, “कल रात मैं कुछ ज्यादा तो नहीं बोल गया”
तारीख 10 दिसंबर, 2004 ।नरसिम्हा राव की तबीयत और भी ज्यादा खराब। अब गए कि तब गए वाली हालत बताई जाने लग। सोनिया गांधी का एक सहयोगी एम्स पहुंचा। घरवालों से पूछने के लिए – “अंतिम संस्कार कहां करवाना चाहेंगे?”
परिवार वाले बिफर गए। बोले-“अभी राव जिंदा हैं”
तारीख 20 दिसंबर, 2004। राव अभी भी बस एक डोर भर से जिंदगी से बंधे हैं।उनसे मिलने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आते हैं। राव ज्यादा कुछ नहीं बोलते। मगर एक कांग्रेसी नेता आता है तो राव चैतन्य हो जाते हैं। नेता जो उनके पीएम रहते उनकी राह में सबसे ज्यादा कांटे बोता था। नेता जिसका नाम अर्जुन सिंह था। नेता जो अब मनमोहन सिंह की सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री था। अर्जुन सिंह को देखकर राव बोले,
‘अर्जुन सिंह जी. आपके घर आऊंगा। वहीं तसल्ली से बात होगी ,मुलाकात होगी। ‘अर्जुन सिंह के माथे पर भरी सर्दी के बावजूद पसीने की बूंदे उभर आती हैं।
तारीख 21 दिसंबर, 2004। जिंदगी तसल्ली भर बीत चुकी थी। अब राव के जाने की वेला थी। वह आखिरी बार बोले-” मैं कहा हूं?”
बेटा राजेश्वर कुछ जवाब देता उसके पहले खुद ही बोले पड़े-” वंगारा में हूं। मां के कमरे में”
वंगारा, उनका गांव। मां का कमरा, उनका पालना। जहां से 28 जून 1921 को वह पहली बार बोले थे।
तारीख 23 दिसंबर, 2004। राव का देहांत हो गया। नरसिम्हा के पार्थिव शरीर पर फूल चढ़ाने सोनिया गांधी भी आती हैं । लेकिन राव केे पार्थिव शरीर के साथ क्या होता है , वो जानिए।
कांग्रेस नेता मार्गरेट अल्वा के मुताबिक निधन के बाद पूर्व पीएम के पार्थिव शरीर को कांग्रेस दफ्तर के कम्पाउंड में नहीं ले जाने दिया गया। वे अपनी किताब Courage and Commitment में लिखती हैं, “उनका शरीर एआईसीसी कैंपस में भी नहीं जाने दिया गया। गेट के बाहर फुटपाथ पर गन कैरिज पार्क किया गया। जो भी मतभेद थे वे अपनी जगह थे लेकिन राव प्रधान मंत्री थे। वह कांग्रेस अध्यक्ष रहे थे। वह मुख्यमंत्री थे। वह पार्टी के महासचिव थे। जब कोई आदमी मर जाता है तो आप उससे इस तरह से व्यवहार नहीं करते हैं। उनके पार्थिव शरीर को कार्यालय के बाहर फुटपाथ पर नही रखते ”
राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा होती है। फिर चर्चा समाप्त । एक अध्याय भी समाप्त।मगर एक बात ध्यान रखनी होगी इतिहास किसी पार्टी का रेहन नही होता।
राव की पुण्य तिथि पर उनकी पुनीत आत्मा को शत शत नमन । विनम्र श्रद्धांजलि।
– सुधांशु टाक
(नोट:- विनय सीतापति की किताब ‘हाफ लायन’ से प्रेरित)