वाह! इंडिया वाह ! कमाल है… यहां पापी चेहरों को नंगा करने की भेड़चाल है. गांधी के देश में ‘मी टू’ की आंधी आयी है… और ‘मैं भी हुई बर्बाद’ कहने वालियां सुर्खियों में छायी हैं. बड़े-बड़े वीवीआइपी बंदों के गंदे धंधे सामने आ रहे हैं. कुछ माफी मांग रहे हैं. कुछ मुंह छुपा रहे हैं. नवरात्रि के दिनों में देश की असंख्य महिलाओं ने रणचंडी का का रूप धर लिया है. अश्लीलता के भूखे-भेड़ियों, कामुकता के महिषासुरों और अपवित्र हरकतों के पापी रावणों को बेनकाब कर उनका संहार करने निकल पड़ी हैं. दशहरा से पहले कई बड़े और नामी चेहरों के पीछे एक ‘रावण’ जिंदा दिखने लगा है …और सभ्यता-पवित्रता का ‘राम’ उनके अधूरे कत्ल के जुर्म में शर्मिंदा होने लगा है! तो ऐसा ये ‘मी टू’ अभियान है, जहां सौ में से 90 बेईमान हैं! फिर भी मेरा भारत महान है!
देश में एक तरफ आया ‘तितली तूफान’ है, …मगर उससे भी ज्यादा तेज चल रहा ‘मी टू’ अभियान है. पता नहीं यह और कितने वीवीआइपी मर्दों के अंतर्वस्त्र उतार देगा? टीवी, फिल्म, पत्रकारिता और राजनीतिक क्षेत्र की एक से बढ़कर एक नामी हस्तियां इस अभियान से बेनकाब हो रही हैं. उनकी सभ्यता का आवरण खुल गया है. उनकी गंदी सोच और गलत हरकतें बेपर्दा हो चुकी हैं. उनकी तारीफ में भारतीय समाज अब तक कसीदे पढ़ रहा था, मगर अब उन्हें गालियां देने में कोई संकोच भी नहीं कर रहा है. अगर ऐसे ही बड़े-बड़े नामों का खुलासा ‘मी टू’ अभियान के तहत होता रहा, तो हमें डर है कि शायद ही कोई सफेदपोश बच पाएगा! ‘मी टू’ अभियान की आंधी में एक से बढ़कर एक नेता, अभिनेता, संपादक, पत्रकार, अधिकारी, उद्योगपति और कुछ न्यायधीश भी फंस सकते हैं, क्योंकि इस भारत महान में सौ में से 90 बेईमान हैं!
मोदी सरकार के विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर, चर्चित अभिनेता नाना पाटेकर, ‘संस्कारी बाबूजी’ आलोकनाथ, फिल्म निर्देशक सुभाष घई, साजिद खान व विकास बहल, गायक अभिजीत भट्टाचार्य व कैलाश खेर सहित रोहित राय, रजत कपूर, मलयाली अभिनेता मुकेश, उत्सव चक्रवर्ती, वरुण ग्रोवर, अनुराग कश्यप सहित पत्रकार मयंक जैन और अनेक वीवीआइपी चेहरे की ‘मी टू’ की दलदल में धंस चुके हैं, फंस चुके हैं. इन पर यौन उत्पीड़न (सेक्सुअल हराशमेंट) या यौन शोषण (रेप) का आरोप लगाने वाली महिलाओं में अभिनेत्री तनुश्री दत्ता, कंगना रनौत, पत्रकार गजाला वहाब, प्रिया रमानी, लेखिका-निर्माता विनीता नंदा, नयना दीक्षित, फ्लोरा सैनी और फोटोग्राफर नताशा हेमराजानी आदि शामिल हैं. और भी अनेक महिलाएं सामने आ रही हैं.
यह सच है कि ‘मी टू’ के 90 प्रतिशत मामले 10 से लेकर 15-20 साल पुराने हैं. इसीलिए पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता वाले लोग पूछ रहे हैं कि ये महिलाएं इतने बरस खामोश क्यों रहीं? इसमें तर्क यह है कि इन महिलाओं का कैरियर उन दिनों चरम पर था. तब संबंधित पुरुष से उन्हें काम निकालना था. मुंह खोलने की स्थिति में तब उनका कैरियर डावांडोल होने का भय उन्हें सता रहा होगा, लेकिन तनुश्री दत्ता ने नाना पाटेकर पर तो 10 साल पहले ही उत्पीड़न के आरोप लगाए थे. तब उनकी कहीं भी सुनवाई नहीं हुई थी. मतलब यह कि तनुश्री या कुछ अन्यों ने तब भी हालातों से समझौता नहीं किया था, किंतु बाकी महिलाएं अगर तभी अपनी आवाज उठातीं, तो इसका असर ज्यादा प्रभावी होता. फिर भी इन पीड़ित नारियों की हिम्मत की दाद देनी चाहिए, जिन्होंने ऐसे सफेदपोश एवं बेईमान मर्दों के लिबास को टर्रा कर उन्हें नंगा कर दिया, जो समाज में बड़े ही इज्जतदार होने का ढोंग करते घूम रहे थे.
यह ‘मी टू’ अभियान भारत में भले ही अभी धूम मचा रहा हो, लेकिन इसे वर्ष 2006 में अमेरिकी सोशल एक्टिविस्ट तराना मर्रे ने पीड़ित महिलाओं को प्लेटफार्म देने ट्विटर पर लांच किया था. मगर इतिहास गवाह है कि भारत में छेड़छाड़ की सबसे पहली शिकायत 50-60 साल पहले मीना कुमारी ने ‘इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा…’ गाने के साथ फिल्म ‘पाकीजा’ में की थी. तब वह अपने साथ तीन गवाह (बदरवा, रंगरजवा और सिपहिया) भी लाई थीं. फिर भी कोई कार्रवाई किसी के खिलाफ नहीं हुई. मतलब साफ है कि भारत में ऐसे नामुराद मर्दों का कुछ नहीं बिगड़ता. तो क्या यहां की महिलाएं सिर्फ ‘आंचल में दूध और आंखों में पानी’ तक ही सीमित रहेंगी? जी नहीं, महिलाएं अब कमजोर नहीं रहीं, वे अब शस्त्र उठाने लगी हैं. चंडिका-रूप धारण करने लगी हैं. अगर तनुश्री या कंगना की तरह गुजरात की अनारा, दिल्ली की स्मृति और यूपी की अनुराधा जैसी मोहतरमाएं अभी ‘मी टू’ अभियान में शामिल होकर अपना मुंह खोल दें, तो हमारे ‘चौकीदार’ की भी बोलती बंद हो सकती है! समझे मित्रों…?
-सुदर्शन चक्रधर (संपर्क : 96899 26102)