ग्वालियर (तेज समाचार डेस्क). मध्यप्रदेश का मुरैना शहर पूरी दुनिया में यहां की खस्ता गजक के लिए मशहूर है. यह गुड़ और तिल से बनी एक मिठाई है, जिसे अमूमन सर्दियों के दिनों में ही खाया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि गुड़ और तिल दोनों की तारीस गरम होती है, जो सर्दियों में शरीर को भी गर्मी प्रदान करती है. मुरैना की इस गजक का स्वाद ऐसा है कि जिसने भी इसे एक बार चखा, वह फिर इसका मुरीद हो जाता है. मुरैना की यह गजक अब ग्लोबल ब्राण्ड बनने जा रही है. कमलनाथ सरकार के पहले बजट में मुरैना की इस लजीज मिठाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय ब्राण्ड बनाने के लिए खास प्रावधान किया गया है. मध्यप्रदेश सरकार के बजट में मुरैना की गजक को प्रोत्साहित करने एवं इसे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तृत बाजार उपलब्ध कराने के प्रयासों का जिस तरह संकल्प जताया गया है, उसके बाद चंबल की पहचान बन चुकी यह मिठाई एक बार फिर चर्चा में है.
– सर्दियों में बनाई और बेची जाती है गजक
मूल रूप से गजक तिल और गुड़ से बनाई जाती है. तिल और गुड़ की तारीस काफी गर्म होती है, इसलिए इसे सर्दियों में ही खाया जा सकता है. गर्मी में यह शरीर के लिए नुकसान दायक हो सकती है और बारिश में यह खुश्की पैदा कर सकती है. इसलिए इसे सर्दियों में ही खाया जा सकता है. सर्दियों में भी गजक का सीजन दिसंबर से फरवरी तक रहता है. इस सीजन में अकेले ग्वालियर में ही गजक का व्यापार 10 करोड़ तक पार कर जाता है. इस दरम्यान मुरैना जिले में रोजाना 25 से 30 लाख तक की गजक बिकती है. मुरैना में करीब 170 फैक्ट्रियों में गजक का निर्माण किया जाता है. मुरैना की गजक को जिनमें करीब डेढ़ हजार कारीगर काम करते हैं. सर्दी के महीनों में ही गजक की खपत ज्यादा होती है. इस तरह मुरैना की गजक लोगों को स्वाद के साथ रोजगार भी दे रही है.
– कैनडा में सबसे ज्यादा मांग
सबसे ज्यादा डिमांड कैनडा में इस समय मुरैना व ग्वालियर में गजक का कारोबार 50 से 60 करोड़ तक पहुंच गया है. यहां की गजक की सबसे ज्यादा डिमांड कैनडा में है. इसके अलावा अमेरिका, आस्ट्रेलिया, दुबई तक गजक का निर्यात किया जाता है.
इंटरनेट के जरिए ऑर्डर मिलने के बाद बैंक में अग्रिम भुगतान आते ही पार्सल के माध्यम से गजक बाहर भेज दी जाती है. इस तरह चंबल क्षेत्र में बनी गजक विदेश तक पहुंचती है. खास बात यह है कि ग्वालियर-मुरैना से गजक सीधे विदेश निर्यात नहीं होती है बल्कि यहां के गजक निर्माताओं से निर्यातक कंपनियां खरीदती हैं. मुरैना के गजक निर्माताओं को इस तरह की सुविधा, संसाधन व प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि वे सीधे विदेश तक गजक भेज सकें मीडिएटर को मिलने वाला मुनाफा सीधे उन्हें हासिल हो सके.
– पहले भी हो चुके ग्लोबल पहचान दिलाने के प्रयास
कमलनाथ सरकार से पहले शिवराज सरकार के कार्यकाल में भी एमएसएमई यानि माइक्रो स्माल एण्ड मीडियम इंटरप्राइजेज डवलपमेंट इंस्टी. ने मुरैना की गजक को ग्लोबल पहचान देने की दिशा में प्रयास किए थे. जियोग्राफिकल इंडीकेशन अर्थात जीआई पेटेंट कराने के प्रयास हुए थे. गजक बनाने की देशी तकनीक को हाईटेक करने की भी कवायद हुई थी. अभी तक गजक की तिली को कूटने, पीटने, खींचने की प्रक्रिया देसी तरीके से हाथ पांव से की जाती है. एमएसएमई ने विभागीय स्टडी में यह पता लगाने की कोशिश की थी कि कितने तापमान, प्रेशर और टाइम में तिली को मशीन के माध्यम से लजीज व बेहतर बनाया जा सकता है. इस दिशा में ज्यादा काम नहीं हो सका था, अब मुरैना के गजक निर्माताओं को कमलनाथ सरकार से उम्मीद है.
– 1946 से जारी है शिवहरे परिवार की खस्ता गजक की परंपरा
मुरैना की गजक के वर्तमान स्वरूप का आविष्कार 1946 में सीताराम शिवहरे ने किया था. उन्होंने चंबल के शुद्ध जल से सिंचित तिली से खस्ता गजक को जन्म दिया. इसी के बाद आगरा, अलीगढ़, जयपुर, मेरठ के कारीगरों ने गजक बनाना सीखा. सीताराम की दुकान को आज उनके बेटे संभाल रहे हैं.