शाकाहार की अलख जगाने वाले गृहस्थ संत, सदाचार – शाकाहार के प्रणेता, श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ जलगांव के कार्याध्यक्ष श्री रतनलालजी सी. बाफना का स्वप्न था कि शाकाहार देश भर में एक व्यापक जन आन्दोलन बने। इसके लिए उनके बहुत ही अध्धयनपूर्ण प्रयास थे । स्वयं श्री बाफना जी ने वर्ष 2015 में सबको प्यारे प्राण के अंतर्गत अपनी भावनाओं को उजागर करते हुए लेख लिखा था ।श्री रतनलालजी सी. बाफना के परलोकगमन पर श्रद्धांजलि स्वरुप उनके हस्ताक्षर का विशेष लेख तेजसमाचार.कॉम के पाठकों के लिए !!
परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज के देवलोक गमन के पश्चात् उनकी पुनीत स्मृति में मैंने अहिंसा-प्रचार के कार्य को मिशन के रूप में लिया। अहिंसा और शाकाहार के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए मैंने 20 कलमी कार्यक्रम बनाया। इस क्रम में मैंने करीब 1500 विद्यालयों, 25 महाविद्यालयों तथा 1000 गाँवों/कस्बों में जाकर भाषण दिये तथा शाकाहार विषयक साहित्य वितरित किया। अनेक शाकाहार सम्मेलन आयोजित किये। लोगों द्वारा पूछे गये शाकाहार विषयक अनेक प्रकार के प्रश्नों का पूर्ण समाधान किया। इस प्रकार करीब बारह वर्षो तक मैंने गाँव-गाँव जाकर अहिंसा, शाकाहार और व्यसन-मुक्ति का सघन प्रचार किया। मेरे सुदीर्घ प्रयासों का सुफल मुझे मिला और लाखों व्यक्तियों ने शाकाहार के संकल्प किये। शाकाहार-संकल्प करने वालों में बड़ी संख्या विद्यार्थी वर्ग और युवावर्ग की रही। मेरा मानना है कि यदि देश की नई पीढ़ी शाकाहार के प्रति पूर्ण निष्ठा रखे और शाकाहार को जन आन्दोलन बनाने का बीड़ा उठाए तो संस्कृति और प्रकृति के हित में बहुत बड़ा कार्य हो सकता है।
आहार का हमारे जीवन तथा जगत पर गहरा असर होता है। शाकाहार व्यक्तिगत रूप से जितना लाभदायक है, उतना ही सामाजिक और वैश्विक रूप से भी लाभदायक है। शरीर पर उम्र का प्रभाव पड़ता ही है। मेरा शरीर भी उससे अप्रभावित नहीं रहा। गाँव-गाँव जाकर शाकाहार प्रचार करने के कार्य में मेरी सक्रियता जब कम होने लगी तो मैंने अहिंसा-तीर्थ का निर्माण किया। यह तीर्थ गोसेवा, जीवदया और पश-पक्षियों के प्रति प्रेम का जीता-जागता उदाहरण बन गया है। अहिंसा-तीर्थ के अन्तर्गत ही शाकाहार की महिमा बताने वाला यू-टर्न म्युजियम’ बनाया। इस म्युजियम (संग्रहालय) को देखकर अगणित व्यक्तियों ने मांसाहार का त्याग किया है। शाकाहार म्युजियम के माध्यम से मांसाहार त्याग करने वालों का क्रम निरन्तर जारी है और भविष्य में भी जारी रहेगा।
शाकाहार की उपयोगिता और मांसाहार की वीभत्सता को अनेक उपायों तथा आयामों से प्रस्तुत किया जा सकता है। देश के प्रसिद्ध तीर्थस्थानों और धर्मस्थलों पर अहिंसा, करुणा, जीव दया और शाकाहार के ऐसे संग्रहालय बनाये जाने चाहिये। अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग शैली, तकनीक और सामग्री का उपयोग किया जा सकता है, जिससे शाकाहार की महत्ता के विविध आयाम लोगों के समक्ष आ सके। जन-जन में अहिंसा, शान्ति और पर्यावरण का सन्देश पहुँचाने के लिए यह एक प्रभावशाली उपाय हो सकता है। अब यह अच्छी तरह जान लेना चाहिये कि मांसाहार मानव का आहार नहीं है। मांसाहार की वजह से मानव, मानवता और दुनिया ने तरह-तरह के संकट झेले हैं। हिंसा, आतंक, प्रदूषण आदि विश्वव्यापी समस्याओं के लिए मांसाहार जिम्मेदार है। अपने पेट की अस्थायी तृप्ति के लिए, स्थायी रूप से किसी निष्पाप प्राणी का पेट काट देना! निर्दोष प्राणियों पर इससे बड़ाजुल्म और क्या होगा ? रोज-रोज भारी संख्या में होने वाले इन जुल्मों की घातक तरंगें धरती और धरतीवासियों के लिए किसी-न-किसी रूप में अभिशाप बनी हुई है।
हमारी इस धरती को आतंक-मुक्त, प्रदूषण-मुक्त, युद्ध-मुक्त और आपदामुक्त बनाने के लिए सर्वत्र अहिंसा और करुणा का वातावरण बनाना बेहद जरूरी है। ऐसे वातावरण के लिए शाकाहारी जीवन शैली अपनाना सर्वाधिक जरूरी है। प्राणियों के लिए मृत्यु का भय सबसे भयंकर होता है। चलते-फिरते जीवों को जब नियोजित तरीकों से क्रूरतापूर्वक मारा जाता है तो मरने वाले प्राणी और पूरा वातावरण भयाक्रान्त हो जाते हैं। मौत के इस भय को मूक प्राणी भी मानव की भाँति ही महसूस करते हैं तथावे भी मौत से बचने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। उन्हें मौत के भय से मुक्त करना/कराना अभयदान है। अभयदान (जीवनदान) को सूत्रकृतांग में सर्वश्रेष्ठ दान कहा गया है – दाणण सेट्ठ अभयप्पयाणं। शाकाहार से स्वास्थ्य-रक्षा के साथ ही प्राणियों को सहज हीअभयदान मिल जाता है। इसी प्रकार ग्रंथों में अनुकम्पा को सम्यक्त्व का, मनुष्यत्व का लक्षण बताया गया है। मरते-तड़पते प्राणी को देखकर सहृदय व्यक्तियों का हृदय काँप उठता है, उनकी यह मानवीय अनुभूति ही अनुकम्पा है, जो मानव मात्र में प्रेम और करुणा का संचार करती है। शाकाहारी जीवन शैली के प्रति आकर्षण का एक मुख्य कारण अनुकम्पा की भावना भी है।
शाकाहार प्रचार को सुव्यवस्थित गति देने के लिए मैंने सैकड़ों पुस्तकों का अध्ययन किया। जहाँ कहीं उपयोगी सामग्री मिली, उसे मैं मेरी डायरियों में यत्र-तत्र लिखता गया। सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल के अध्यक्ष श्री पी. एस. सुराणा साहब की इच्छा रही कि मेरी डायरियों में संकलित सामग्री पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित हो तो जन-जन लाभान्वित हो सकता है।