जलगाँव शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर एरंडोल तहसील में स्थित पदमालय गणेश मंदिर गणेशोत्सव के अवसर पर श्रद्धालुओं का एक बड़ा केंद्र बन जाता है. वर्षभर यहाँ दर्शनार्थियों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन गणेशोत्सव पर यहाँ का महत्व और भी बढ़ जाता है.
खानदेश के इस प्राचीन मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ एक ही सिंहासन पर बाईं और दाईं सूँड़ वाले गणेशजी विराजमान हैं. रत्नजटित चाँदी के सिंहासन पर बैठी इन मूर्तियों की महिमा ऐसी मानी जाती है कि इनका दर्शन करना ही भक्तों के लिए वरदान समान है.
अष्टविनायक जैसी मान्यता : ढाई पीठ का आधा पीठ
पदमालय मंदिर संस्थान,एरंडोल के विश्वस्तों के अनुसार, महाराष्ट्र के अष्टविनायक मंदिरों की तरह ही इस पदमालय गणेश मंदिर की मान्यता है. इसे ढाई पीठ के आधे पीठ के रूप में जाना जाता है. गणेशजी की मूर्तियाँ स्वयंभू मानी जाती हैं, जिन्हें किसी ने गढ़ा नहीं बल्कि वे स्वयं प्रकट हुईं.
सहस्त्रार्जुन और पदमालय गणेश मंदिर की कथा
किंवदंतियों के अनुसार, जब शेषनाग ने धरती को थामने का प्रयास किया, तब उन्होंने गणेशजी से दाईं ओर से दर्शन देने की प्रार्थना की. गणेशजी ने यह वरदान देते हुए पदमालय क्षेत्र में स्वयंभू प्रवाल रूप धारण किया.
एक अन्य कथा में कहा जाता है कि राजा कृतवीर्य को पुत्र प्राप्त हुआ, जो हाथ-पैर विहीन था. इस पुत्र कार्तवीर्य ने बारह वर्ष की आयु में गणेशजी की तपस्या की और ‘नमो हेरंब’ मंत्र का जाप किया. तपस्या से प्रसन्न होकर गणेशजी ने उसे हजार हाथों का वरदान दिया. वही कार्तवीर्य आगे चलकर सहस्त्रार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
सिंधु राक्षस वध और पदमालय का नामकरण
एक और कथा में वर्णित है कि सिंधु राक्षस, जिसे शिवजी ने अमरता का वरदान दिया था, देवताओं को सताने लगा. गणेशजी ने उससे घनघोर युद्ध कर उसके शरीर के तीन टुकड़े किए और अलग-अलग दिशाओं में फेंक दिया. पैरों का भाग इस क्षेत्र में गिरा और यही स्थान कालांतर में पदभाग तथा बाद में पदमालय कहलाया.
पदमालय गणेश मंदिर की विशेषताएँ
- यहाँ के पदमालय तालाब में वर्षभर कमल के फूल खिलते रहते हैं, चाहे तालाब सूखने की स्थिति में क्यों न हो.
- मंदिर में 11 मन वजन का पंचधातु का घंटा स्थापित है.
- परिसर में मुख्य मंदिर के चारों ओर छोटे-छोटे मंदिर हैं, जो इस स्थल को और भी धार्मिक बनाते हैं.
महाभारत काल की मान्यता के अनुसार, जब पांडव अज्ञातवास में थे, तब भीम ने बकासुर का वध इसी परिसर में किया था. आज भी एक शिला पर दिखने वाले निशान को भक्त भीम के घुटने और पंजे का चिन्ह मानकर श्रद्धा प्रकट करते हैं.
पदमालय गणेश मंदिर का ऐतिहासिक संरक्षण
इतिहास भी इस तीर्थ की महिमा का साक्षी है. श्रीछत्रपति शिवाजी महाराज के समय के पंतप्रधान माधवराव बल्लाल पेशवे ने शके 1690 (सन 1768) में मंदिर की पूजा-अर्चा और सुरक्षा हेतु खान्देश के 37 परगनों की आधी आय इस देवस्थान को प्रदान की थी.
बाद में अंग्रेज सरकार ने भी यह व्यवस्था कायम रखते हुए देवस्थान की पूजा हेतु खजाने से प्रतिवर्ष ₹668 देना जारी रखा. यह तथ्य बताता है कि आस्था के इस केंद्र को राज्य और सत्ता दोनों का संरक्षण मिलता रहा है.

आस्था और श्रद्धा का जीवंत केंद्र
आज पदमालय गणेश मंदिर न केवल महाराष्ट्र, बल्कि मध्यप्रदेश और गुजरात से आने वाले भक्तों की आस्था का केंद्र है. गणेशोत्सव पर यहाँ लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुँचते हैं. भक्त अपनी मनोकामनाएँ पूरी करने, मुंडन और पारिवारिक आयोजनों के लिए भी यहाँ आते हैं.
यहाँ की आस्था और पौराणिक महत्व ने पदमालय को सदियों से भक्तों की श्रद्धा, भक्ति और साधना का अद्वितीय केंद्र बना रखा है.