नई दिल्ली (तेज समाचार डेस्क). मोहम्मद बिन सलमान द्वारा नकारे जाने पर इस्लामाबाद ने सऊदी राजघराने के विरोधी गुटों के साथ कूटनीतिक खेल खेलना शुरू कर दिया है. अब वह सऊदी अरब में तख़्तापलट की तैयारी कर रहा है. स्टेट्समैन की रिपोर्ट के अनुसार, रियाद से सूत्रों ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि पारंपरिक शैली में सऊदी के सुल्तान अपने भाइयों में ही विरासत को आगे बढ़ाते हैं. परंतु 2007 में सुल्तान अब्दुल्लाह ने एक Allegiance काउंसिल स्थापित कर सऊदी के भावी सुल्तान चुने जाने की प्रक्रिया स्थापित की, जिससे शाही घराने में दरार पड़ गई. ऐसे में संदेश स्पष्ट है कि सऊदी राजघराने के विरोधी गुट के बल पर पाकिस्तान राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान को अपदस्थ करने के सपने देख रहा है.
– पाकिस्तान और सीरिया मौसेरे भाई
सीरिया और पाकिस्तान इन दोनों देशों में कई सारी समानताएं हैं. दोनों ही देश अपने पड़ोसियों यानी पाकिस्तान भारत से और सीरिया इज़रायल से दुश्मनी पाले हुए है. इसके अलावा एक और समानता ये भी है कि पाकिस्तान और सीरिया में लोकतान्त्रिक चुनाव ईद के चाँद की तरह होते हैं, जबकि असल सत्ता वहां की सेना के हाथ में रहती है. लेकिन इस बार पाकिस्तान ने सऊदी अरब के आंतरिक मामलों में दखल देकर अपनी औकात से ज़्यादा का पंगा मोल लिया है.
– सऊदी अरब की पाकिस्तान से नाराजगी
सऊदी अरब आखिर पाकिस्तान पर इतना भड़का क्यों हुआ है? पाक चाहता था कि सऊदी की अध्यक्षता वाले संगठन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन यानि ओआईसी कश्मीर मुद्दे पर भारत का विरोध करे और पाकिस्तान के रुख का समर्थन करे. पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इसके लिए सऊदी को एक अल्टिमेटम भी दे दिया कि यदि ओआईसी ने उनकी बात नहीं मानी, तो पाकिस्तान ओआईसी से अलग गुट बनाकर कश्मीर के मुद्दे को उठाने के लिए बाध्य हो जाएगा.
– पाकिस्तानी दौरे के बाद बिगड़े हालात
इसके अलावा सऊदी राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान भी पाकिस्तानी प्रशासन से काफी खफा हैं. 2019 में उनके पाकिस्तानी दौरे पर इमरान खान के साथ किसी बात पर कहासुनी हुई थी, जिसके कारण सऊदी अरब के पाकिस्तान से सम्बन्धों में दरार आनी प्रारम्भ हुई. लेकिन रही सही कसर शाह महमूद कुरैशी ने सऊदी को चुनौती देते हुए पूरी कर दी. इसके कारण पाकिस्तान को न सिर्फ सऊदी के हाथों वित्तीय सहायता से हाथ धोना पड़ा, बल्कि जब पाकिस्तानी सैन्य प्रमुख जनरल बाजवा सुलह कराने के लिए सऊदी अरब आए, तो उन्हे मोहम्मद बिन सलमान से बिना मिले वापिस लौटना पड़ा.
– पाकिस्तान की तुर्की से नजदीकियां
इसके अलावा पाकिस्तान तुर्की से भी काफी नज़दीकियां बढ़ा रहा है, जो सऊदी अरब के इस्लामिक जगत में वर्चस्व को खुलेआम चुनौती दे रहा है. परंतु क्या ये पहली बार है कि पाकिस्तान ने अपनी औकात से ज़्यादा ऊपर उठकर किसी शक्तिशाली देश को चुनौती देने का सोचा हो? ये पहला ऐसा अवसर नहीं है, क्योंकि जब 1967 में मिस्र, सीरिया, लेबनान समेत छह देशों ने इज़रायल पर आक्रमण किया था, तो पाकिस्तान ने भी इस इस्लामिक जिहाद में सहयोग करने के लिए अमेरिका से भीख में मिले अपने लड़ाकू विमान मोर्चे पर भेजे थे. परिणाम यह निकला कि इज़रायल ने उन छह देशों को हराया ही, और साथ ही साथ पाकिस्तान की भी सार्वजनिक बेइज्जती हुई.
– 1967 ओर 1971 भांती मूंह की खाएगा पाकिस्तान
लगता है पाकिस्तान एक बार फिर 1967 और 1971 की भांति सार्वजनिक बेइज्जती कराना चाहता है, तभी वह सऊदी अरब में तख्तापलट के खयाली पुलाव पका रहा है.