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नेताओं के गांवों में प्रतिबन्ध के साथ चुनाव का बहिष्कार

Tez Samachar by Tez Samachar
April 17, 2019
in Featured, अकोला, प्रदेश
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नेताओं के गांवों में प्रतिबन्ध के साथ चुनाव का बहिष्कार

सतपुड़ा की वादी मे बसे यह गांव आज भी आजादी के 7 दशकों बाद भी बुनियादी सुविधाओं से हैं वंचित

अपनी रास्त मांगों को लेकर किया ग्राम वासियों ने लोकसभा चुनाव 2019 के बहिष्कार का ऐलान

कब जागेगा शासन कुंभकरणीय नींद से

मोहम्मद फारूक की विशेष रिपोर्ट 

खामगांव :- आजादी के साथ दशक बाद भी आज बुलढाणा जिले में आज भी ऐसे अनेकों गाँव हैं जहां पहुँच पाना बेहद कठिन और दुश्वार है इन गांवों तक आज भी सुगम आवागमन के लिये पक्की सड़क का निर्माण नहीं हो सका है जिससे ग्रामीण विकास की मुख्य धारा से कटे हुये हैं बुनियादी और आवागमन सुविधाओं से वंचित गांवों की फेहरिस्त में जलगांव जामोद तहसील के भिंगारा , चालीस टापरी , गोमाल – 1और गोमाल – 2 यह गांव शामिल है जहां के निवासियों की जिन्दगी कठिनाईयों और मुसीबतों की पर्याय बन चुकी हैं.

उल्लेखनीय है कि बुलढाणा जिले के जलगांव जामोद तहसील के अंतर्गत आने वाले भिंगारा , चालीस टापरी गोमाल -1 और गोमाल-2 के निवासी आज भी आवागमन की सुविधा के लिये तरस रहे हैं वर्षों से ग्रामवासी सड़क के निर्माण कार्य , बिजली , पानी , जाता प्रमाण पत्र , जमीन पंट्टा और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर डाक्टर आदी की माँग करते आ रहे हैं लेकिन उनकी यह माँगें आज तक पूरी नहीं हो सकी है

सतपुड़ाभिंगारा , चालीस टापरी , गोमाल आदिवासी गांव

जलगांव जामोद से लगभग 22 किमी. दूर बसे गांव भिंगारा में आदीवासी , पावरा , भिलाला समाज के लोग रहते हैं गांव में लगभग 325 परिवारों की आबादी तकरीबन 1900 है भिंगारा से दो किलोमीटर दूर चालीस टापरी में लगभग 140 परिवारों की आबादी 780 तथा चालीसटापरी से दो किलोमीटर दूर गोमाल 1और गोमाल – 2 में लगभग 225 परिवारों की आबादी 1500 है लेकिन अफसोस की बात है कि हिंदुस्तान को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुए सात दशक का समय बीत चुका फिर भी सातपुडा की वादी में बसे यह आदिवासी गांव मूलभूत सुविधाओ से कोसों दुर है.

गांववासी आज भी मूलभूत सुविधाओं में बिजली , पानी और सड़क के लिए तरस रहे हैं आज जहां हम विकास विकास और विकास की बात करते हैं वहीं पर हम जब इन गांव को देखते हैं तो हमारा सिर शर्म झुक जाता है लेकिन ना ही प्रशासन और ना ही जनप्रतिनिधि इस ओर ध्यान दे रहे हैं.

इन गांव में आदिवासी समाज बरसों से रह रहा है लेकिन उन्हें आज तक औपचारिक रूप से नागरिकता भी नहीं दी गई है भिंगारा में केवल 40 परिवारों के पास ही जमीन पट्टा है शेष लगभग 200 परिवार आज भी पट्टे से महरूम है इसी तरह चालीसटापरी तथा गोमाल इन गांवों की परिस्थिति है ग्रामवासी फॉरेस्ट डिपार्टमेंट और राजस्व विभाग के आपसी विवाद के दलदल में जैसे आटा चक्की के दोनों पाटो के बीच पीसे जा रहे हैं और यही वजह है कि आज तक इन गांव में किसी प्रकार का भी कोई विकास काम नहीं हुआ है बिजली पानी और सड़क के साथ साथ तमाम ग्रामवासियों को आज तक उनके जात प्रमाणपत्र भी नहीं दिए गए और ना ही उन्हें जमीन पट्टा दिया गया उनका कहना है कि वर्षों से उनके आबा व अजदाद तथा उनके बुजुर्ग रहते चले आ रहे हैं तब से लेकर आज तक यहां एक प्रतिशत भी काम नहीं हो पाया हमारे परिजन और बुजुर्ग आज तक वर्षों से गुलामगिरी ही करते आ रहे हैं लेकिन विकास से मेहरूम है. दर असल जल ही जीवन है जल है तो कल है जल बिन सब सुना है भिंगारा , चालीस टापरी और गोमाल इन तीनों गांव में पानी की समस्या ने विकराल रूप धारण कर रखा है ग्राम वासियों को 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर दरी से पानी लाना पड़ता है खुद के खर्चे से यहां एक छोटे कुए का रूप दिया है और ग्रामवासी इसी में से पानी भरे दो तीन कलश सिर पर रखकर लाते हैं.

यहां पानी का कोई माकूल स्त्रोत नहीं है

भिंगारा , चालीस टापरी तथा गोलमाल इन गांवो में हालांकि यहां महसूल नहीं है फिर भी ग्रामपंचायत पानी पट्टी , घर पट्टी वसूल करते है लेकिन पानी उपलब्ध नहीं करा कर देती है घरपट्टी के बारे में कहते हैं तो जवाब मिलता है की तुम्हारे नाम पर घर है और जब विकास की बात करते हैं तो वह कहते हैं कि आपका गांव फॉरेस्ट में आता है ऐसा कह कर इस समस्या की ओर अनदेखी करते हैं. वर्षों से यही चलता आ रहा है इसलिए हम मजबूर हैं हमारे पास आधार कार्ड है राशन कार्ड है इलेक्शन कार्ड है और जात प्रमाणपत्र भी है लेकिन यह सब कुछ तमाम ग्रामवासियों को उपलब्ध नहीं कराया गया कुछ ही परिवार को दिए गए हैं.

सरपंच भिन्गारा गाँव – सुरेश सदु मुजल्दा

क्योंकि गांव में कच्चे मार्ग है पक्की सड़क का नामोनिशान ही नहीं बारिश में तो और बुरा हाल हो जाता है आसमान से हो रही तेज बारिशृ और सिर पर पानी भरे कलश लेकर दलदल भरे कच्चे मार्ग पर चलना सर्कस के करतब दिखाने बराबर होता है हमने हमारी समस्याओं को हल करने के लिए तमाम दलों के जिम्मेदार लोगों से विनंती की लेकिन किसी भी दल ने आज तक हमारी इन समस्याओं का हल नहीं किया.

यहां केवल कच्चे मार्ग है,

आदीवासी बताते है कि बारिश के चार माह हमारे लिये काला पानी की सजा से कम नहीं इन गांव में सांसद , विधायक , तथा राजनेता केवल चुनाव के समय 5 साल में एक बार ही नजर आते हैं विकास की दुहाई और झुटे वायदे कर वोट प्राप्त कर लेते हैं और फिर 5 साल तक नजर ही नहीं आते ना ही इन गांव की तरफ रुख़ करते हैं

इन गांवों में पहुंच पाना काफी मुश्किल और दुश्वार है क्योंकि हमारे गांव में ऐसी पक्की सड़कें है ही नहीं जिस पर हम बाईक (दो पहिय्या) या फोर व्हीलर (चार पहिय्या )द्वारा आवाजाही कर सके इन रास्तों पर साइकिल चलाना भी मुश्किल है ऐसी जानकारी भिंगारा गांव के निवासी राधेश्याम खरात ने दी है उन्होंने लगभग 6 महीने पूर्व का एक किस्सा सुनाया जिसे सुनकर तथा पुराना वीडियो और फोटो देखकर बदन के रौंगटे खड़े हो जाते हैं राधेश्याम पालसा खरात के बड़े पिता रेहमा खजरा खरात (68 वर्ष)उन दिनों बीमार हो गए थे उपचार हेतु उन्हें जलगांव जामोद ले जाने के लिए दो व्यक्ति अपने कंधों पर बांस के ऊपर चादरों का झूला बनाकर उसमे उन्हे सुलाकर ले गए थे उपचार के पश्चात उन की बीमारी ठीक हो गई और वह फिलहाल स्वास्थ्य है आज भी मरीजों को इसी तरह ले जाना पड़ता है हम मजबूर हैं और शासन से गुहार लगाते हैं कि हमारी इन समस्याओं को ध्यान में रखकर कायम स्वरूपी हल निकाला जाए हालांकि भिंगारा गांव में स्वास्थ्य केंद्र की इमारत शासन द्वारा निर्मित की गई है लेकिन यहां ना कोई डॉक्टर है और ना ही कोई कर्मचारी कार्यरत है

6 से 14 साल की उम्र के हरेक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है चालीस टापरी में टिन के शेड की शाला इमारत है वह भी खस्ताहाल है उच्च शिक्षा की चाहत में इन तीनों गांव के विद्यार्थियों ने बड़ी मेहनत और मशक्कत करके तथा परेशानियों का सामना करते हुए बाहर गांव जा कर उच्च शिक्षा प्राप्ति की है गांव के लड़के और लड़कियों ने बाहर गांव जा कर बी ए , बीएससी , बीकॉम , डी एड , बीएड , एमएससी एम कॉम तथा एम आदि उच्च शिक्षा प्राप्त कर रोजगार की तलाश में गांव गांव भटकते रहे और आखिरकार मजबूरन नौकरियां नहीं मिलने पर फिलहाल वह अपने खेतों में खेती का काम कर रहे हैं और अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं

मांगों को लेकर ग्राम वासियों ने लिया लोकसभा चुनाव 2019 के बहिष्कार का निर्णय

लोकसभा चुनाव 2019 में मतदान के लिए हम सब ग्रामवासियों ने चुनाव का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है ग्राम वासियों ने चुनाव के बहिष्कार के लिए तहसीलदार जलगांव जामोद को एक ज्ञापन सौंपा है जिसमें चुनाव के बहिष्कार का उल्लेख किया गया है

हालांकि वोट देना हमारा अधिकार है और हमने अपने वोट का हक जरूर अदा करना चाहिए लेकिन यह सियासी लोग ऐसे हैं कि वह हमसे वोट तो जरूर लेते हैं लेकिन किए गए वायदे निभाते नहीं है इसीलिए जब तक हमारे गांव का विकास नहीं होता तब तक हम ने चुनाव पर बहिष्कार डाला हैं पहले विकास काम होनाउस के फिर मतदान करेंगे

उपरोक्त तीनों गांव में सड़क , बिजली कनेक्शन लेना , अस्पताल में डॉक्टर उपलब्ध करा कर देना , पेयजल उपलब्ध करा कर देना तथा नल कनेक्शन कराकर देना , अस्पताल में डॉक्टर उपलब्ध करा कर देना ,उपविभागीय अधिकारी कार्यालय जलगांव जामोद 48 लोगों के तैयार हुए जमीन पट्टे देना आदि मांगों का समावेश है

ग्रामवासियों ने एक बैनर भी लगा रखा है जिस में उल्लेख किया गया है कि नेताओं को गांव में आना मना है

मातृभूमि फाउंडेशन बुलढाणा की ओर से इलाके में बहुत से सामाजिक कार्य विधायक हर्षवर्धन सपकाल के नेतृत्व में किए जाते हैं …. मूलभूत सुविधाएं ना होने की वजह से यहां पर रोजगार को लेकर भी बहुत परेशानियां है …

अभी उन्होंने पावर ऑफ पावरा के नाम से होम मेड शुद्ध खाद्य पदार्थ बनाना भी शुरू किया है जिसमें पपड़, खारोडी , कुरबई , और विविध तरीके के पदार्थ जो आजकल विदेशी खाद्य पदार्थों की वजह से हमारी संस्कृति से दूर हो चुके हैं ऐसे पदार्थ कम(वाजिब) कीमत में उपलब्ध कराएं जा रहे है , अगर लोग इन पदार्थों को खरीदते हैं तो उन्हें शुद्ध पदार्थ खाने को भी मिलेंगे और इन लोगों को रोजगार भी मिलेगा.

संस्कृती परीवार बुलडाणा द्वारा आवाहन:

सातपुडा के दामन में बसे हुए भिंगारा, चालीस टापरी, गोमाल इन अती दुर्गम तथा वादी में बसे पावरा जमाती के आदिवासी गावों को आज भी रास्ते , बिजली , पानी , और स्वास्थ्य की फिलहाल मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं , शुद्ध आदिवासी होते हुए भी जाती के हक्क के जात-प्रमाणपत्र नही. सुखी खेत जमीन व्यतिरिक्त दुसरे काम भी नही. हंगाम छोड़ कर कुछ भी काम नही उपजीविका एक बड़ा संघर्ष, एक भी किसान आत्महत्या ना होने देना और मृत्यू से रोज ही दो दो हाँथ का संघर्ष एव अन्न, वस्त्र, कुपोषण से लढाई . उन की इसी लढाई में हम मदद कर सकते इन आदिवासी बंधुओ ने गर्मी में उडद , मुंग पापड़ , सांडया, बिबड्या, कुरडया, तिल्ली की कुरडया, खारोड्या, मुंगवडी, आलु के चिप्स, उपवास के पप्पड-चकली इत्यादी पदार्थ क्षय तैयार करना सीख कर मेहनतकश बंधूओ ने स्वच्छ व उत्कृष्ट प्रती की वस्तूए उपलब्ध है. यदि इस वर्ष हम उनके द्वारा तैयार किए गए पदार्थ खरिदते है तो उन्हें काम मिल जाएगा और उन में जगने का आत्मविश्वास बढेगा . तो चले उनके द्वारा निर्मित किए गए पदार्थ खरीदी करते हैं ताकी उन कि जिंदगी जगने में मदद कर सके.सभी पदार्थों के एकत्रित नमूने पैकिंग में उपलब्ध है आप से उपरोक्त पदार्थ खरीदी करने की अपील मनाली सरकार ने किया है तैयार किए गए पदार्थ खरीदी के लिए जगदीश खरात , विशाल आढाव ,  अमोल देशमुख , प्रिया निरज ठोसर आदी से संपर्क कर सकते हैं.

Tags: #khamgaon news#buladana news#trending news#khandesh samachar
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