कोलकाता (तेज समाचार डेस्क). कभी-कभी कुछ लोग गलती से किसी अच्छे इंसान के साथ काम करके सफल हो जाते हैं, तो खुद को सर्वोच्च मानने लगते हैं. चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी उनमें से ही हैं जिन्हें आज भी भ्रम है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी की 2014 के लोकसभा चुनावों में जीत उन्हीं के कारण हुई थी. उनके इस मठाधीश बनने के दावे को किसी ने भाव नहीं दिया है. इसीलिए वह खुद को बेहतरीन साबित करने के लिए बीजेपी विरोधी पार्टियों के लिए जीत की रणनीति तैयार करने की कोशिश करते रहते हैं जिससे उन्हें लोग मान्यता और श्रेय देने लगें.
– 2014 की रणनीति मैंने ही बनाई थी
प्रशांत किशोर का कहना है कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी जरूरत थी और उनकी चुनावी रणनीति के कारण ही बीजेपी 2014 का चुनाव जीती, वरना यह मुमकिन नहीं था. उनका कहना है कि इसी तरीके से वह 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भी टीएमसी के लिए रणनीति तैयार करके बीजेपी को हराएंगे, और यदि बीजेपी दहाई अंकों से ज्यादा सीटें ले आई तो वह राजनीतिक रणनीति बनाने के अपने करियर को त्याग देंगे. प्रशांत किशोर के मन में हमेशा ही एक खीझ रही है कि उन्हें कभी 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत का श्रेय नहीं मिला.
– जीत का श्रेय नहीं मिला, तो उखड़ गए
प्रशांत किशोर ने बेशक बीजेपी के लिए 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रचार का जिम्मा संभाला था और रणनीति बनाई थी, लेकिन जीत के बाद जब उन्हें ये लगा कि उन्हें इस जीत में कोई श्रेय ही नहीं मिला है तो वो उखड़ गए और तब से लेकर आज तक मोदी विरोधी पार्टियों के लिए चुनाव की रणनीति बना रहे हैं जिससे वो साबित कर सकें कि असल जादू 2014 में भी उन्हीं का था.
– 2013 से ही चलने लगा था मोदी का जादू
प्रशांत किशोर की अपेक्षा बीजेपी का जादू 2013 से ही चलने लगा था, जब पार्टी ने गुजरात चुनाव जीत लिया था उसके बाद से पार्टी में मोदी को दिल्ली लाने की बाते चलने लगी थीं. बीजेपी के कार्यकर्ता से लेकर बड़े स्तर तक के नेता भी नरेंद्र मोदी के नाम और उनके गुजरात के विकास को देख उनके पीछे चलने को तैयार थे.
– मोदी की जीत के पीछे सबसे बड़ा हाथ अमित शाह का
मोदी की जीत के पीछे शाह की रणनीति भी थी जो कि 2014 चुनाव के दो साल पहले ही गुजरात से दूर लखनऊ में चुनाव की रणनीति बनाने लगे थे. इसी का नतीजा था कि बीजेपी की बंपर जीत हुई.
– पूरा श्रेय चाहते थे पीके
इसमें कोई शक नहीं कि प्रशांत किशोर ने भी मोदी की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन यह कहना कि नरेंद्र मोदी की जीत का सारा श्रेय प्रशांत किशोर के हिस्से ही आना चाहिए, यह बिल्कुल गलत होगा क्योंकि बीजेपी के पास संगठन से लेकर करिश्माई चेहरे तक किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी. इसके इतर प्रशांत किशोर को आज भी घमंड है कि वो बीजेपी को अपने रणनीति से बंगाल के विधानसभा में हरा देंगे. खास बात ये भी है कि 2019 लोकसभा चुनावों से लेकर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव तक में पीके ने बीजेपी विरोध की चुनावी रणनीति बनाई लेकिन उन्हें कभी भी सफलता नहीं हाथ लगी; जो कि उनके रणनीतिक कौशल का अपने आप में विशेष परिचय है.
– मोदी की वजह से लोगों में बनी पहचान
बीजेपी के बढ़ते जनाधार और मिलते जनसमर्थन को देखकर यह कहा जा सकता है कि 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर का चुनावी राजनीतिक करियर खात्मे की ओर है. यह दिलचस्प होगा कि जिस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से प्रशांत किशोर का करियरग्राफ अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ स्तर पर गया था उन्हीं मोदी के प्रभाव के कारण प्रशांत किशोर का करियर गर्त में चला जाएगा.